सांकेतिक तस्वीर
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मणिपुर में तीन मई से शुरू हुई हिंसा थमने का नाम ही नहीं ले रही है। हालांकि, बीच में केंद्र सरकार की तरफ से दावा किया गया था कि अब वहां पर हत्याएं नहीं हो रही हैं, लेकिन बीच-बीच में ऐसी घटनाएं जारी हैं। मंगलवार सुबह कांगपोकपी जिले में तीन लोगों को गोली मार दी गई। तीनों व्यक्ति कुकी समुदाय से बताए गए हैं, जो एक वाहन में सवार थे। इरेंग नागा गांव के निकट उपद्रवियों ने उन पर हमला कर दिया।
मणिपुर हिंसा में मारे जाने वाले लोगों की संख्या लगभग दो सौ तक जा पहुंची है। दूसरी तरफ राज्य में तैनात सुरक्षा बलों के बीच भी तनाव पैदा हुआ है। कई दफा सुरक्षा बल, एक दूसरे के आमने-सामने आ चुके हैं। बीएसएफ के पूर्व एडीजी एसके सूद कहते हैं, मणिपुर की हिंसा अब कंट्रोल से बाहर जाती दिख रही है। वहां पर आर्मी है, असम राइफल है, सीएपीएफ है और मणिपुर पुलिस है, मगर हिंसा थम नहीं रही है। अगर वाकई मणिपुर में हिंसा को रोकना है, कानून व्यवस्था स्थापित करनी है तो उसके लिए अनुच्छेद ‘356’ का इस्तेमाल ‘बैलिस्टिक शील्ड’ बन सकता है।
शांति स्थापना के लिए बफर जोन सफल नहीं…
पूर्व एडीजी एसके सूद के मुताबिक, दूसरे राज्यों की तरह मणिपुर भी भारत का ही अभिन्न हिस्सा है। केंद्र सरकार को अभी तक वहां पर शांति स्थापित कर देनी चाहिए थी। तीन मई को शुरू हुई हिंसा, अभी तक थम नहीं सकी है। लोग मारे जा रहे हैं। सुरक्षा बलों पर हमले जारी हैं। पिछले कुछ समय से मणिपुर में जो हालात देखने को मिल रहे हैं, वे बहुत खतरनाक हैं। दो समुदायों के बीच बफर जोन बनाकर शांति स्थापित करने का जो प्रयास किया गया, वह सफल नहीं हो सका है। इसके बावजूद हत्याएं हो रही हैं।
उन्होंने कहा, मौजूदा समय में तो वहां पर तैनात सुरक्षा बल ही एक दूसरे के सामने आ रहे हैं। कई ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं, जब सुरक्षा बलों के बीच में टकराव होने के पूरे आसार बन गए थे। कभी तो असम राइफल के सामने मणिपुर पुलिस आ जाती है तो कभी सेना को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है। सीएपीएफ को लेकर भी ऐसी ही खबरें सुनने को मिल रही हैं। जब सशस्त्र बल ही एक दूसरे के सामने आ जाएं तो हालात की गंभीरता को समझा जा सकता है। तीन हजार से ज्यादा घातक हथियार उपद्रवियों के हाथ में हैं। उनके पास भारी मात्रा में गोला बारूद है।
आदिवासी एकता समिति ने सरकार को चेताया…
बतौर एसके सूद, वर्तमान परिस्थितियों में वहां पर अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल कर राष्ट्रपति शासन लगाया जाए। राज्य को प्रयोगशाला न बनाई जाए। कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी से पुलिस को मुक्त किया जाए। पहले कहा गया कि असम राइफल, कुकी समुदाय का समर्थन कर रही है। अब वैसे ही आरोप, आर्मी और सीएपीएफ पर लगाए जा रहे हैं। दो समुदायों की हिंसा के बीच वहां पर तैनात सुरक्षा बलों में आपसी मतभेद और तनाव सामने आना, एक खतरनाक सिग्नल है। सोमवार को लहंगकिचोई गांव के सातनेओ तुबोई, नगामिनलुन ल्हौवम और नगामिनलुन किपगेन को मार दिया गया। गत शुक्रवार को भी पल्लेल इलाके में भारी गोलीबारी हुई थी। उसमें भी दो लोग मारे गए थे। असम राइफल्स का एक और मणिपुर पुलिस के तीन जवान घायल हो गए थे। तीन ग्रामीणों की हत्या को लेकर आदिवासी एकता समिति ने सरकार को चेताया है। अपने एक बयान में समिति का कहना है कि निर्दोष कुकी, जो सामान्य ग्रामीण थे, उनकी निर्मम हत्या बर्दाश्त नहीं की जाएगी। मणिपुर में जब पर्याप्त संख्या में सुरक्षा बल हैं तो ऐसे में किस तरह से दिनदहाड़े हमला हो रहा है। लोगों के घरों को आग के हवाले किया जा रहा है। समिति ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से आग्रह किया कि वे तुरंत घाटी में स्थित सभी जिलों को सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम के तहत ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित करें।
असम राइफल्स के खिलाफ ही एफआईआर दर्ज…
कांग्रेस पार्टी के मणिपुर प्रभारी भक्त चरण दास पहले ही कह चुके हैं कि वहां पर स्थिति बहुत गंभीर है। वहां की हिंसा सुनियोजित लगती है। राज्य में शांति बहाली सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रपति शासन लगाने की जरूरत है। पुलिस स्टेशनों से लूटे गए घातक हथियार, उपद्रवियों के हाथ में हैं। पिछले दिनों मणिपुर पुलिस ने असम राइफल्स के जवानों के खिलाफ ही एफआईआर दर्ज कर ली थी। असम राइफल्स की 9वीं बटालियन के सुरक्षा कर्मियों के खिलाफ वह एफआईआर, बिष्णुपुर जिले के फोउगाकचाओ इखाई पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई थी। अब सुरक्षा एजेंसियों को ऐसे अलर्ट भी मिल रहे हैं कि वहां भीड़ में प्रतिबंधित आतंकी समूह यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा प्रायोजित आतंकी शामिल होने लगे हैं। तेंगनौपाल जिले के पैलेल में इस तरह की घटना में एक सैन्य अधिकारी पर गोलियां चलाई गईं। वहां पर दो लोगों की मौत हुई तो करीब चार दर्जन लोग घायल हो गए थे।
लूट गए सभी हथियारों की वापसी नहीं…
राज्य में लूटे गए करीब पांच हजार घातक हथियारों में से अभी तक केवल 1550 हथियार ही बरामद हो सके हैं। तीन अगस्त को भी बिश्नुपुर जिले के नरसेना में स्थित इंडिया रिजर्व बटालियन ‘आईआरबी’ 2 के हेडक्वार्टर से 500 उपद्रवियों ने 400 से अधिक घातक हथियार लूट लिए थे। उपद्रवियों ने 22,000 से अधिक गोलियां भी लूटी गई। इनमें एके राइफल, एक्स केलिबर राइफल, घातक राइफल, 5.56 एमएम इनसास राइफल, 5.56 एमएम इनसास एलएमजी, एसएलआर व एमपी-5 कारबाइन सहित दूसरे हथियार शामिल हैं। चुराचांदपुर में एक अनौपचारिक स्वतंत्रता दिवस परेड में लोगों ने अत्याधुनिक हथियारों का प्रदर्शन किया था।
‘नगा’ जनजाति के लोगों ने किया था प्रदर्शन…
मणिपुर में तामेंगलोंग, चंदेल, उखरुल और सेनापति जिलों को नगा जनजाति के बाहुल्य वाला क्षेत्र माना जाता है। पिछले दिनों नगा समुदाय के हजारों लोगों ने प्रदर्शन किया था। दरअसल मणिपुर की मौजूदा परिस्थितियों में नगा समुदाय खुद को असुरक्षित समझने लगा है। जब से वहां पर हिंसा शुरू हुई है, उसी के साथ ही यह खबर फैलती जा रही है कि सरकार पहाड़ के कुछ क्षेत्र में कुकी समुदाय के लिए अलग प्रशासनिक व्यवस्था कर सकती है। इसी डर से नगा समुदाय के लोगों ने अपने प्रदर्शन के माध्यम से केंद्र सरकार तक यह संदेश पहुंचाया है कि मणिपुर के पहाड़ी जिलों के लिए जो भी अलग से प्रशासनिक व्यवस्था तैयार हो, मगर उसमें किसी भी तरह से ‘नगा’ समुदाय के हित प्रभावित नहीं होने चाहिए। केंद्र के साथ नगा समुदाय की जो शांति प्रक्रिया चल रही है, उसकी भावना को ठेस न पहुंचे। दूसरी ओर, हिंसा के बाद कुकी इलाकों में अलग प्रशासनिक व्यवस्था की मांग तेज होती जा रही है। हिंसा के बाद वहां पर लोगों में ही नहीं, बल्कि सरकारी विभागों में भी समुदाय के आधार पर रेखा खिंच चुकी है।
क्यों है ‘नगा’ शांति वार्ता को नुकसान का खतरा…
मणिपुर में ‘नगा’ समुदाय की केंद्र सरकार के साथ शांति वार्ता जारी है। अगर केंद्र सरकार, कुकी जनजाति के लोगों के लिए अलग से प्रशासनिक व्यवस्था करती है तो ‘नगा’ समुदाय को अपने हित कमजोर पड़ने का खतरा नजर आ रहा है। जैसे ही कुकी समुदाय ने अपने लिए अलग प्रशासनिक व्यवस्था लागू करने की मांग रखी, तभी नगा समुदाय के लोग भी सचेत हो गए। उन्होंने भी प्रदर्शन के जरिए दिल्ली तक अपनी बात पहुंचा दी। साथ ही यह संदेश भी दे दिया कि इस तरह की नई प्रशासनिक व्यवस्था में नगा समुदाय के हित प्रभावित हुए तो अंतिम चरण पर पहुंची नगा शांति वार्ता पटरी से उतर सकती है।
मणिपुर में नगा समुदाय की सर्वोच्च संस्था, यूनाइटेड नगा काउंसिल (यूएनसी) एनजी लोरहो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे ज्ञापन में साफतौर पर यह बात कही है कि सरकार किसी भी समुदाय की मांगों पर विचार करते समय यह ध्यान रखे कि उसमें ‘नगा हित’ प्रभावित न हों। नगा बाहुल्य क्षेत्रों की भूमि के साथ कोई छेड़छाड़ न हो। अगस्त 2015 को भारत सरकार और अलगाववादी संगठन एनएससीएन-आईएम (नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड) के इसाक-मुइवा गुट के साथ हुए समझौते में जो बातें हैं, उनसे सरकार को दूर नहीं जाना चाहिए। इससे पहले जून में नगा समुदाय के विधायकों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर अपना पक्ष स्पष्ट कर दिया था।