Follow us

डॉक्टरों पर हमला करने वालों को भेजो जेल

Assault with Doctors

आर.के. सिन्हा

पिछले दिनों राजधानी में सैकड़ों डॉक्टर राजघाट पर एकत्र हुए। ये वही डॉक्टर हैं, जो जानलेवा कोरोना की दूसरी लहर के समय भगवान के दूत बनकर रोगियों का इलाज कर रहे थे। लेकिन, अब ये डरे-सहमे हुए हैं। इनके डर की वजह यह है कि इन पर होने वाले हमलों और दुर्व्यवहार के मामलों की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हो रही है । केन्द्र सरकार से यह मांग कर रहे हैं कि वो तुरंत ही कोई सख्त कानून लेकर आए ताकि डॉक्टर बिना किसी भय भाव के काम सकें। फिलहाल तो डॉक्टरों पर हमले लगातार बढ़ते ही चले जा रहे हैं। आप स्वयं गूगल करके देख लें। आपको डॉक्टरों पर हमलों के अनगिनत मामले मिलेंगे। बेशक, डाक्टरों के साथ बदतमीजी या मारपीट करना किसी भी सभ्य समाज में सही नहीं माना जा सकता। इसकी भरपूर निंदा तो होनी ही चाहिए और जो इस तरह की अक्षम्य हरकतें करते हैं, उन्हें कठोर दंड भी मिलना चाहिए। बेशक, देशभर में हजारों-लाखों निष्ठावान डॉक्टर हैं। वे रोगी का पूरे मन से इलाज करके उन्हें स्वस्थ करते हैं। आपको पटना से लेकर लखनऊ और दिल्ली से मुंबई समेत देश के हरेक शहर और गांव में सुबह से देर रात तक कड़ी मेहनत करते हुए हजारों डॉक्टर बंधु मिल जाएंगे।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विनय अग्रवाल भी राजघाट तक के मार्च में शामिल थे। उनकी मांग है कि डॉक्टरों पर हमले करने वालों पर पांच लाख रुपये तक का जुर्माना और तीन साल तक की कैद हो। ये सारे कदम इसलिए उठाए जाने की जरूरत है ताकि डॉक्टरों पर हमले करने के बारे में कोई सपने में भी न सोचे। ड़ॉ. विनय अग्रावल कोरोना काल में किसी फरिश्ते की तरह कोरोना की चपेट में आए लोगों को अस्पताल में बेड दिलवा रहे थे। यह उन दिनों की बातें हैं जब कोरोना के रोगियों के संबंधी अस्पतालों में बेड तलाश रहे थे। निश्चय ही उस डरावने दौर को याद करते ही दिल बैठने लगता है जब कोरोना के कारण प्रलय वाली स्थिति बन गई थी। तब कोरोना के रोगियों के इलाज करने के लिए सिर्फ डॉक्टर और उनका स्टाफ ही सामने आ रहे थे। उस भयानक दौर में डॉ. विनय अग्रवाल और उनके साथी डॉक्टर दिन-रात रोगियों का इलाज कर रहे थे। उन्होंने उस दौरान सैकड़ों कोरोना रोगियों के लिए बेड की व्यवस्था करवाई थी। आज वे ही डॉक्टर अपनी जान की रक्षा करने के लिए सरकार से गुजारिश कर रहे हैं। यह वास्तव में बेहद दुखद स्थिति है।

आप कभी राजधानी में देश के चोटी के डॉ. राममनोहर लोहिया अस्पताल यानी आरएमएल में जाइये। वहां की इमरजेंसी सेवाओं में हर समय करीब एक दर्जन बलिष्ठ भुजाओं वाले बाउंसर तैनात मिलते हैं। यहां पर मरीजों के दोस्तों और रिश्तेदारों के डॉक्टरों के साथ कई बार हाथापाई करने के बाद अस्पताल मैनेजमेंट ने बाउंसरों को तैनात कर दिया है। जब से यहां पर बाउंसर रहने लगे हैं तब से अस्पताल में शांति है। वरना तो लगातार डॉक्टरों के साथ बदसलूकी और मारपीट के मामले सामने आते थे। कई बार डॉक्टरों को इलाज में कथित देरी या किसी अन्य कारण के चलते कुछ सिरफिरे लोग मारने-पीटने भी लगते थे। यहां पर कुछ महिला बाउंसर भी हैं। याद रख लें कि अगर डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भी डॉक्टर सुरक्षित नहीं हैं तो फिर बाकी जगहों की बात करना बेकार है। इस अस्पताल में सरकारी बाबुओं से लेकर देश के सांसदों और मंत्रियों तक का इलाज होता है। कोरोना काल में यहां के डॉक्टरों ने अनगिनत लोगों की जान बचाई थी। राजधानी के ही लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल ने भी अपने डॉक्टरों को बचाने के लिए बाउंसर रख दिए हैं। करीब दो साल पहले लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल में गार्ड की तीमारदारों ने मारपीट की थी। दिल्ली पुलिस के जवान जब तक बचाने आते तब तक सुरक्षाकर्मी को तीमारदार मारपीट कर चुके थे। यह हाल उस सुरक्षाकर्मी का था जिसके कंधे पर डॉक्टरों को बचाने की जिम्मेदारी थी। उसका हाथ तक टूट गया था। इस घटना के बाद लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल ने बाउंसरों को लगाया। इन दोनों अस्पतालों में सारे देश से रोगी पहुंचते हैं।

आपको पिछले कुछ महीने पहले राजस्थान के दौसा जिले की उस घटना की याद होगी जब एक महिला डॉक्टर डॉ. अर्चना शर्मा ने आत्महत्या कर ली थी। उस घटना से देशभर के डॉक्टर सहम गए थे। वह घटना चीख-चीख कर इस चिंता की पुष्टि कर रही थी कि वक्त आ गया है कि देश के डॉक्टरों को पर्याप्त सुरक्षा दी जाए। अगर यह नहीं किया गया तो डॉक्टर बनने से पहले नौजवान कई-कई बार सोचेंगे। बता दें दौसा में डॉ.अर्चना शर्मा का एक अस्पताल था। उनके पास लालूराम बैरवा नाम का एक शख्स अपनी पत्नी आशा देवी को डिलीवरी के लिए लेकर आया। डिलीवरी के दौरान प्रसूता (आशा देवी) की मौत हो गई, वहीं नवजात सकुशल है। आशा देवी के निधन के बाद शुरू हो गया हंगामा। आशा देवी की मौत के बाद उसके घरवालों ने मुआवजे की मांग को लेकर अस्पताल के बाहर जमकर बवाल काटा। उन्होंने डॉ. अर्चना शर्मा के खिलाफ हत्या का मामला पुलिस में दर्ज करवा दिया। पुलिस ने इस केस को हत्या के मामले के रूप में दर्ज कर लिया। इससे डॉ. अर्चना बुरी तरह से घबरा गईं और उन्होंने आत्मग्लानि से पीड़ित होकर खुदकुशी ही कर ली। महिला डॉक्टर की आत्महत्या के मामले को लेकर राजस्थान के सभी डॉक्टरों ने हड़ताल भी की थी। डॉ.अर्चना शर्मा गांधीनगर मेडिकल कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर भी रही थीं। पर वह मानती थीं कि हरेक डॉक्टर की जिम्मेदारी है कि वह देश के ग्रामीण इलाकों में रहने वालों की सेवा करें।

दरअसल यह समझने की जरूरत है कि डॉक्टर सिर्फ रोगी को ठीक करने का ईमानदारी प्रयास भर ही कर सकता है। वह कोई भगवान तो नहीं है। इसलिए उसकी सीमाओं को भी समझना होगा। अब इस तरह की खबरें सामान्य होती जा रही हैं जब रोगी के संबंधियों और परिचितों ने डॉक्टरों के साथ बेशर्मी से मारपीट की। यह कोई बहुत पुरानी बात नहीं है जब देशभर के डॉक्टरों, नर्सों और अन्य मेडिकल स्टाफ ने कोरोना वायरस को मात देने के लिए अपने प्राणों को भी दांव पर लगा दिया था। जरा सोचिए कि उस भयावह दौर में अगर यह भी हमारे साथ न होते तो क्या होता। अब हम उन्हीं डॉक्टरों के साथ मारपीट कर रहे हैं। इतनी एहसान फरामोशी कहां से कुछ लोगों में आ जाती है।

  (लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

nyaay24news
Author: nyaay24news

disclaimer

– न्याय 24 न्यूज़ तक अपनी बात, खबर, सूचनाएं, किसी खबर पर अपना पक्ष, लीगल नोटिस इस मेल के जरिए पहुंचाएं। nyaaynews24@gmail.com

– न्याय 24 न्यूज़ पिछले 2 साल से भरोसे का नाम है। अगर खबर भेजने वाले अपने नाम पहचान को गोपनीय रखने का अनुरोध करते हैं तो उनकी निजता की रक्षा हर हाल में की जाती है और उनके भरोसे को कायम रखा जाता है।

– न्याय 24 न्यूज़ की तरफ से किसी जिले में किसी भी व्यक्ति को नियुक्त नहीं किया गया है। कुछ एक जगहों पर अपवाद को छोड़कर, इसलिए अगर कोई खुद को न्याय 24 से जुड़ा हुआ बताता है तो उसके दावे को संदिग्ध मानें और पुष्टि के लिए न्याय 24 को मेल भेजकर पूछ लें।

Leave a Comment

RELATED LATEST NEWS