डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
बाघ बकरी कंपनी के मालिक 49 वर्षीय पराग देसाई की स्ट्रीट डॉग्स (लावारिस कुत्तों) के हमले से हुई मौत से देश में नई बहस शुरू हो गई है। ऐसी घटनाओं से भारत ही नहीं अपितु दुनिया के अधिकांश देश दो-चार होते आ रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय संस्था लैंसेट की हालिया रिपोर्ट की माने तो दुनिया के तमाम देशों में हर साल लावारिस कुत्तों के कारण 59 हजार लोग अपनी जान गंवाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों को भी इस संदर्भ में देखा जाए तो केवल लावारिस कुत्तों के हमलों से जान गंवाने वालों में हमारे देश की भागीदारी लैसेंट के आंकड़ों में 36 फीसदी के लगभग है। कोरोना काल को अलग कर भी दिया जाए तो 2021 की तुलना में 2022 में ऐसी घटनाओं में इजाफा हुआ है। भारत सरकार के संसद में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार 2019 से 2022 के बीच लावारिस कुत्तों के काटने के डेढ़ करोड़ से अधिक मामले सामने आये हैं। यह तो वह आंकड़े हैं जो पंजीकृत हुए हैं। असल आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा होगा।
दरअसल गली-कूचों में घूमने वाले कुत्तों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई होती है तो उस पर धारा 428 व 429 के तहत सजा का प्रावधान है। इसके साथ ही पशु प्रताड़ना का मामला बन जाता है। कुत्तों को प्रताड़ित करने, मारने, जहर देने या अन्य तरह से प्रताड़ित करने पर पांच साल तक की जेल तक हो सकती है। ऐसे में सवाल यह उठ जाता है कि लावारिस कुत्तों से बचाव का क्या रास्ता हो सकता है। देखा जाए तो स्थानीय प्रशासन यानी कि नगर निगम, नगर परिषद, नगर पालिका जैसी संस्थाओं के पास ऐसे कुत्तों को पकड़ने की जिम्मेदारी होती है। कभी गलियों में घूमने वाली लावारिस गायों को पकड़ने की तरह ही स्ट्रीट डॉग्स को पकड़ने का अभियान भी चलता रहा है। पर अब ऐसे अभियान नहीं दिखते।
सवाल लावारिस कुत्तों का ही नहीं अपितु पालतू कुत्तों को लेकर भी इसी तरह से गंभीर है। देश के कई कोनों में पालतू कुत्तों द्वारा लोगों पर आक्रमण करने और काट खाने की घटनाएं भी आए-दिन देखने को मिल रही हैं। समस्या केवल एक जगह की नहीं है। दरअसल कुत्तों को पालना आज फैशन भी बनता जा रहा है। लोग ऐसी नस्ल के कुत्ते पालने लगे हैं जिनको देखने मात्र से सिहरन होने लगती है। यह स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है। कुत्तों को पालना या नहीं पालना निजी मामला है और इस पर किसी तरह के कमेंट करना भी गलत होगा पर पालतू कुत्तों को खुला छोड़ना और आते-जाते लोगों को काटना गंभीर हो जाता है। यह भी सब जानते हैं कि कुत्तों के काटने पर समय पर इलाज नहीं कराने पर यह जानलेवा हो जाता है। इससे समस्या की गंभीरता को समझा जा सकता है।
देश में हर पांचवें साल मवेशियों और लावारिस जानवरों की गणना होती है। 2019 की गणना के अनुसार देश में लावारिस कुत्तों की संख्या करीब एक करोड़ 53 लाख है। पशुपालन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार कर्नाटक, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक लावारिस कुत्ते हैं। जहां तक काटने की घटनाओं की बात करें तो 2021 में देश में 17 लाख एक हजार 33 मामले सामने आये। 2022 में यह आंकड़ा 19 लाख 16 हजार 863 रहा। यह अपने आप में चेताने वाले आंकड़े हैं। कुत्तों के हमलों से बचने के लिए डॉग्स के मनोविज्ञान को भी समझना होगा। होता यह है कि जब आते-जाते व्यक्ति पर कुत्ते आक्रमण करते हैं और आप दोपहिया वाहन चला रहे हैं तो आप वाहन की स्पीड तेज कर देते हैं और इस कारण से कुत्ता भी उसी गति से तेज भागने लगता है और ऐसे में या तो बैलेंस बिगड़ जाने से गिर जाते हैं या कुत्ता आपको पकड़ लेता है और काट खाता है। ऐसे में मनोविज्ञान यह कहता है कि कुत्ता भौंकने लगे तो स्पीड कम करते हुए उसे डराने का प्रयास किया जाना चाहिए। इससे सामान्यतः कुत्ता शांत हो जाएगा और आपके पीछे भागना बंद कर देगा। यह एक सामान्य धारणा है। एक बात यह भी साफ हो जानी चाहिए कि कुत्ता काट खाये तो तत्काल डॉक्टर के पास जाएं और जरूरी इलाज कराने में किसी तरह की लापरवाही नहीं बरते। क्योंकि छोटी सी लापरवाही जानलेवा हो सकती है।
इस समस्या के समाधान के लिए स्थानीय प्रशासन को भी गंभीर होना होगा। समय-समय पर कुत्तों को पकड़ने का अभियान चलाना होगा। दूसरी ओर कुत्तों को पालने वालों के प्रति भी सरकार को सख्ती बरतनी होगी। पालतू कुत्तों को सार्वजनिक स्थल या गली-मोहल्ले में घुमाने के दौरान सावधानी बरतना सुनिश्चित कराना होगा ताकि वह हिंसक होकर किसी पर आक्रमण न कर सकें। सावधानी ही बचाव का एकमात्र रास्ता है। इसके अलावा पालतू कुत्तों को भी समय-समय पर टीका लगे, इस पर भी नजर रखने की जरूरत है। स्थानीय प्रशासन को अवेयरनेस कार्यक्रम भी चलाना चाहिए।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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