पटना। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर बिहार में सरगर्मी बढ़ने लगी है। यहां सीटों के बंटवारे को लेकर सियासत तेज होती जा रही है। दरअसल, बिना सीना सीटों के बंटवारे के ही वाम दलों ने अपनी तैयारी तेज करते हुए दावा जताना शुरू कर दिया है। खास बात ये है कि विपक्षी महागठबंधन में शामिल इन क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा बिहार की तीन से चार लोकसभा सीटों पर ज्यादा है।
बताया जा रहा है कि विपक्षी गठबंधन में शामिल बिहार की क्षेत्रीय पार्टी सीपीआई (माले) ने भी लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है जिससे महागठबंधन दल में खलबली मच गई है। वहीं सीपीआई (माले) ने दो सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए अपनी सघन तैयारी शुरू भी कर दी है। ये सीट आरा और सिवान की है जबकि सीपीआई बेगूसराय, बांका और मधुबनी में अपने पुराने और जिताऊ जनाधार की खोज में जुट गई है।
सीपीआई के राज्य सचिव रामनरेश पांडेय का कहना है कि मधुबनी में छह और बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र में दो बार हमारे पार्टी के प्रत्याशी की जीत हो चुकी है। इन सीटों पर कई बार हमारे उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे हैं। वहीं बांका के दो चुनावों में भाकपा को सम्मानजनक वोट मिल चुके है। ऐसे में इन सीटों पर हमारे दावे का तार्किक आधार बनता है।
रिपोर्ट के मुताबिक सीपीआई (एमएल) ने आरा और सिवान लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव की तैयारी तेज कर दी है। आरा में साल 1989 में उसकी जीत हुई थी। उस समय इंडियन पीपुल्स फ्रंट के नाम से भाकपा माले चुनाव मैदान में थी। इसके बाद साल 2019 में आरा में माले उम्मीदवार राजू यादव को चार लाख 19 हजार वोट मिला था। इसी तरह सिवान भी उसका आधार क्षेत्र रहा है। सिवान में माले की कभी जीत नहीं मिली लेकिन तीन चुनावों में उसके उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहे हैं।
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