नई दिल्ली। श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद पर सर्वोच्च न्यायलय ने विवादित परिसर के सर्वे के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश में दख़ल देने से इंकार कर दिया है। अदालत ने कहा कि उसके सामने मस्ज़िद पक्ष की वह याचिका है जिसमें श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद से जुड़े मुकदमों को इलाहाबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर करने को चुनौती दी गई है। इस पर वह आगामी 9 जनवरी को सुनवाई करेगा।
बता दें कि बीते दिन मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह मामले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई हुई थी जिसमें कोर्ट ने विवादित परिसर ने सर्वे करने की मंजूरी दे दी है। साथ ही हिंदू पक्ष की याचिका को भी स्वीकार कर लिया है। वहीं दूसरी तरफ ईदगाह कमेटी और वक्फ बोर्ड की दलीलों को कोर्ट ने खारिज कर दिया है। बता दें कि हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन ने पक्षों को सुनने के बाद 16 नवंबर को आदेश सुरक्षित रख लिया था, जिसे आज सुनाया गया।
गौरतलब है कि मथुरा शहर में स्थित शाही ईदगाह मस्जिद, श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर से सटी हुई है। 12 अक्तूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ एक समझौता किया था, जिसमें 13.37 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों के बने रहने की बात की गई है।
अब ये पूरा विवाद इसी 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है। इस जमीन के 10.9 एकड़ के हिस्से पर श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन पर शाही ईदगाह मस्जिद का कब्जा है। इस समझौते में मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी थी। इसके बदले में मुस्लिम पक्ष को पास में ही कुछ और जमीन दी गई थी। अब हिन्दू पक्ष पूरी 13.37 एकड़ जमीन पर कब्जे की मांग कर रहा है।
ये है इतिहास
इतिहासकारों का कहना है कि औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्म स्थली पर बने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को नष्ट करके उस स्थान पर 1669-70 में शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था। इसके बाद 1770 में गोवर्धन में मुगलों और मराठाओं में जंग हुई, जिसमें मराठा जीते। इस जीत के बाद मराठाओं ने फिर से मंदिर का निर्माण कराया। साल 1935 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 13.37 एकड़ की भूमि बनारस के राजा कृष्ण दास को आवंटित कर दी। इसके पश्चात् 1951 में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने ये भूमि अधिग्रहीत कर ली थी।
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