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शेल कंपनियों के जरिये रियल स्टेट के बेताज बादशाह बने पतंजलि के रामदेव

Patanjali Group Baba Ramdev,

नई दिल्ली। साल 2014 के चुनाव से पहले तक काला धन वापस लाने को लेकर खुला बयान देने वाले योग गुरु और कारोबारी बाबा रामदेव जिस पतंजलि ग्रुप के मालिक है, वह ग्रुप खुद काली कमाई के ढेर पर खड़ा है। इसकी काली कमाई को लेकर द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने कई बड़े हैरान करने वाले खुलासे किए हैं। आइये जानते हैं क्या कहती है कलेक्टिव के सदस्य श्रीगिरीश जलिहाल और तपस्या की ये रिपोर्ट…

कलेक्टिव के सदस्य श्रीगिरीश जलिहाल और तपस्या द्वारा किये गए खुलासे पर गौर करें तो रामदेव के परिवार के लोगों और करीबियों ने शेल कंपनियों के माध्यम से हरियाणा में कई एकड़ जमीन की खरीदफरोख्त की और बाबा रामदेव को रियल एस्टेट की दुनिया का बेताज बादशाह बना दिया। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि वैसे तो बाबा रामदेव की पहचान देश और दुनिया में योग गुरु के तौर पर है लेकिन दिल्ली से सटे मांगर नाम के गांव में उन्हें रियल एस्टेट के बादशाह के तौर पर जाना जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक वहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि बाबा के लिए काम करने वालों ने यहां पर उनके नाम से रियल स्टेट का एक ऐसा कारोबार खड़ा किया हैं जो उन्हें इस बिजनेस का बेताज बादशाह बनाता है। ऐसे के ये सवाल उठना लाजमी हो जाता है कि आखिर कैसे हुआ ये सब … तो आपको बता दें कि इस काम में
शेल कंपनियों ने बेहद अहम भूमिका निभाई है।

जानें कैसे काम करती है शेल कंपनियां

आपको बता दें कि ये शेल कंपनियां सिर्फ कागज के पन्नों पर होती हैं। इनके जरिये लेनदेन तो होता है लेकिन इनका असली मालिक कौन होता है और इनसे किसे फायदा पहुंच रहा है, ये कोई नहीं जनता है। इन कंपनियों को बनाने का असली मकसद भी यही होता है कि सब कुछ बैंकिंग चैनल के माध्यम से होता रहे और किसी को ये न पता चले कि इसके तहत आने वाला पैसा किसके पास जा रहा है। आपको बता दें कि बड़े-बड़े कारोबारी टैक्स से बचने के लिए ऐसी कंपनियां बनाते हैं, जिससे सरकार और लोगों को यह बताने से बचा जा सके कि उन्होंने पैसा कहां से कमाया और कहां पर लगा रहे हैं। इसे इस तरह से समझ सकते हैं कि ये वही काला धन, जिसकी चर्चा बाबा रामदेव साल 2014 से पहले खूब किया करते थे।

शेल कंपनियों में छिपाया जाता है काला धन 

कलेक्टिव की टीम ने  जब इस मामले में और ज्यादा पड़ताल की तो पता चल कि पतंजलि ग्रुप से कई सारी शेल कंपनियां जुडी हुई हैं। ये कंपनियां कागज पर जिस बिजनेस को करने का दावा करती हैं, असल दुनिया में व उनसे एकदम दूर होती हैं। किसी को नहीं पता होता है कि इन शेल कंपनियों में किसके पैसे लग रहे हैं। साफ शब्दों में कहें तो यहां काली कमाई को छिपाने के लिए पैसा डाला जाता है। इसी पैसे से इन शेल कंपनियों ने दशकों से दिल्ली के लिए फेफड़ों के तौर पर काम करने अरावली के मांगर के इलाके में कई एकड़ जमीन की खरीदारी की फिर इन्हें बेचा गया है। इससे जो पैसा मिला है, उसे दूसरी शेल कंपनी में लगाया है और उससे फिर से अरावली के इलाके में जमीन खरीदने बेचने का काम किया गया।संक्षेप में कहें तो मोदी सरकार में काले धन से मुक्ति दिलवाने के दावे करने वाले रामदेव ऐसी कंपनी के संस्थापक सदस्यों में से एक और ब्रांड प्रमोटर है, जो काला धन बनाने और बढ़ाने के काम में माहिर है।

दिल्ली से सटा हुआ इलाका है मांगर 

आपको बता दें कि मांगर दिल्ली से सटा हुआ इलाका है और ये हरियाणा के फरीदाबाद जिले में पड़ता है। राष्ट्रीय राजधानी से सटा हुआ होने की वजह से यहां की जमीनों के रेटआसमान छू रहे हैं। ये पूरा इलाका जंगलों से भरा हुआ है और अरावली की पहाड़ियों में आता है। अगर आदर्श तौर पर नियम कानून बनते और लागू होते, तो इस गांव को फॉरेस्ट लैंड यानी वन भूमि का दर्जा मिलना चाहिए थे। दरअसल, वन संरक्षण अधिनियम के तहत इस इलाके को सुरक्षा मिलती लेकिन ये इलाका दिल्ली के नजदीक है और रियल स्टेट के कारोबारियों के लिए यह इलाका पैसा छापने वाली मशीन का काम कर रहा है।बता दें कि अगस्त 2023 में मोदी सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम में इस तरीके का बदलाव किया जिसकी वजह से अनधिकृत ही सही, मगर संभावित वन भूमि की श्रेणी में आने वाले इस इलाके को इस कानून के तहत जो थोड़ी-बहुत सुरक्षा मिलती थी, वह भी जाती रही। अर्थ यह कि अब यह इलाका व्यावसायिक फायदे के लिए पूरी तरह से खुला हुआ है और जो थोड़ा बहुत रही-सही कसर थी वह हरियाणा की भाजपा सरकार ने पूरा कर दी।

सरकार का भी हेर फेर आया सामने 

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने साल 1996 में आदेश दिया था कि जमीन के किसी भी हिस्से पर यदि जंगल है तो उसे संरक्षित करना किया जाना चाहिए। मांगर की जंगल वाली जमीन की खरीद फरोख्त के लिए सुप्रीम कोर्ट का आदेश अड़चन बन रहा रहा। ऐसे में हरियाणा की सरकार ने इस अड़चन को चुपचाप तरीके से हटाने का काम किया, जिसका अंतिम फायदा पतंजलि ग्रुप और दूसरे रियल एस्टेट के कारोबारियों को मिला। कलेक्टिव की रिपोर्ट कहती है, ‘न्यायिक रिकॉर्ड, सरकारी रिकॉर्ड से पता चलता है कि हरियाणा सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए एक ठोस प्रयास किए है कि इन संवेदनशील अरावली पहाड़ियों को कोई सुरक्षा न मिले। राज्य ने 1996 और 2022 के सुप्रीम कोर्ट के दो महत्वपूर्ण आदेशों, जो इन जंगलों को सुरक्षा प्रदान करते थे, राज्य वनों की कटाई के कानून और एक केंद्र सरकार का कानून जो दिल्ली और उसके आसपास पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण भूमि की रक्षा करता है, को खारिज कर दिया। ’

 पतंजलि से जुली हैं दर्जनभर से अधिक शेल कंपनियां 

रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा कंपनियों, दस्तावेजों के अध्ययन का हवाला देते हुए आगे बताया है कि, ‘राज्य की टालमटोल ने अरावली की वन भूमि में एक अनाम रियल एस्टेट कारोबार को फलने-फूलने का पूरा मौका दिया। इसमें रामदेव का पतंजलि समूह, जो आयुर्वेद, सौंदर्य प्रसाधन, भोजन और एफएमसीजी उत्पादों को बेचता है। इसके मुख्य लाभार्थियों में से एक था। रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि आज भी संदिग्ध संस्थाओं और शेल कंपनियों के माध्यम से अरावली में जमीन के बड़े हिस्से को ख़रीदा और बेंचा जा रहा है। कलेक्टिव की टीम ने कॉरपोरेट रिकॉर्ड की छानबीन कर यह पता लगाया है कि पतंजलि के साम्राज्य से जुड़ी तकरीबन दर्जनभर से ज्यादा ऐसी शेल कंपनियां है जिन्होंने मांगर गांव के इलाके में जमीन खरीदने और बेचने का काम किया है। राज्य के डिजिटल रिकॉर्ड से पता चलता है कि कम से कम 14 शेल कंपनियों के कब्ज़े में मांगर गांव के इलाके की 142 एकड़ जमीन है।

सामने आई चौंकाने वाली जानकारी 

कलेक्टिव की टीम ने पतंजलि समूह से जुड़ी एक शेल कंपनी- पतंजलि कोर्रुपैक प्राइवेट लिमिटेड के पैसे की आवक को लेकर गहन पड़ताल की कुछ चौंकाने वाली जानकारी सामने आई। यह कंपनी साल 2009 में रामदेव के भाई राम भरत और रामदेव के सबसे खास सहयोगी और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के सीईओ आचार्य बालकृष्ण ने बनाई थी। रामदेव और भरत राम का कहना है कि यह कंपनी पैकेजिंग मटेरियल मैन्युफैक्चरिंग करने का काम करती है लेकिन बीते 12 साल के रिकॉर्ड बताते हैं कि इस कंपनी ने पैकेजिंग मैटेरियल मैन्युफैक्चरिंग की दुनिया में एक रुपये का बिजनेस नहीं किया है, सिर्फ जमीन खरीदने और बेचने का काम किया है।

बिना काम किया पैसा कमाती हैं शेल कंपनियां 

द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने पतंजलि से जुड़ी एक और शेल कंपनी का ज़िक्र किया है जो कनखल आयुर्वेद प्राइवेट लिमिटेड के नाम से जानी जाती है। ये कंपनी साल 2006 में आचार्य बालकृष्ण और स्वामी मुक्तानंद द्वारा बनाई गई थी। कागज़ पर तो कंपनी को आयुर्वेदिक, यूनानी, होम्योपैथिक और एलोपैथिक दवाओं को बनाने और बेचने का काम करती है लेकिन बिना यह काम किए ही कंपनी पैसा कमाती गई। बालकृष्ण ने अन्य फर्मों की तरह इसमें धन निवेश किया लेकिन कंपनी अपना ‘असली’ काम करने की बजाय मांगर इलाके में जमीन की खरीदफरोख्त में लगकर मुनाफा कमाती रही। 2009 और 2011 के बीच कनखल आयुर्वेद ने मांगर में 43 एकड़ से अधिक जमीन की खरीदारी की। इसके बाद अगस्त 2011 में उसने 40 एकड़ जमीन दिल्ली की कंस्ट्रक्शन कंपनी टोपाज़ प्रोपबिल्ड प्राइवेट लिमिटेड को बेच दी, जिसमें इसने करीब 365% का मुनाफा कमाया।

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