गोरखपुर। गोरखपुर में बीते14 दिसंबर माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के कर्ज में फंसी प्रवासी मजदूर की पत्नी 30 वर्षीय आरती ने जहर खाकरआत्महत्या कर ली थी। दरअसल, कर्ज देने वाली माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के एजेंट इसी दिन सुबह सबेरे महिला के घर पहुंच गए और फिर उसके मायके पहुंचकर पैसे देने का दबाव बनाने लगे। उत्पीड़न से तंग आकर महिला घर से निकल गई और जहर खा लिया। इसके बाद उसने अपने पति को फोन कर कहा कि कर्ज की किश्त न दे पाने की वजह से उसकी बेइज्जती हो रही है, इसलिए अपनी जान दे रही है।
ये वाकया उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के सेवरही क्षेत्र के मिश्रौली गांव का है। प्रवासी मजदूर की पत्नी की आत्महत्या के मामले में परिजनों ने माइक्रोफाइनेंस कंपनी के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाते हुए स्थानीय थाने में तहरीर दी।
इसके बाद जब इस मामले में पड़ताल की गई तो मिश्रौली गांव सहित कई गांवों में गरीब महिलाओं के माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के कर्जजाल में फंसने और कर्ज अदायगी के लिए जेवर-जमीन गिरवी रखने की बातें सामने आईं। यह भी पता चला है कि माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के एजेंट रिर्जव बैंक द्वारा जारी किये गए दिशा निर्देशों को दर किनार कर कर्ज वसूली के लिए उत्पीड़नात्मक कार्रवाई कर रहे हैं। साथ ही एक ही व्यक्ति को को कई-कई माइक्रोफाइनेंस कंपनियां ऊंचे ब्याज दर पर कर्ज दे रही हैं।
आरती के सुसाइड केस में सामने आया कि उसे भी पांच माइक्रोफाइनेंस कंपनियों ने कृषि कार्य एवं मवेशी खरीदने के लिए कर्ज दिए थे। ये भी पता चला था कि आरती ने कर्ज की रकम प्रधानमंत्री आवास के तहत बन रहे आवास के निर्माण में लगा दी थी क्योंकि आवास निर्माण के लिए सरकार से मिले 1.20 लाख रुपये कम पद गए थे। इसके अब एक कंपनी का कर्ज चुकाने के लिए उसने दूसरी कंपनी और फिर तीसरी कंपनी से कर्ज लिया और फिर वह कर्जजाल के ऐसे दुष्चक्र में फंसीं कि बाहर निकलने का रास्ता उसे कोई रास्ता ही नहीं नजर आया और उसने खुदकुशी कर ली।
आरती के पति धर्मनाथ यादव दिल्ली के नजफगढ़ में शराब की खाली बोतलों को साफ करने का काम करते हैं। चार-चार घंटे का ओवरटाइम करने के बाद भी वे महीने के 15-16 हजार रुपये ही कमा पाते हैं। उनकी इस कमाई का अधिकतर हिस्सा कर्ज चुकाने में ही खत्म हो जाता है, जिससे परिवार हमेशा ही तंगहाली की स्थिति में रहता है।धर्मनाथ ने बताया कि फोन पर पत्नी के जहर खाने की बात सुनते ही वह तुरंत घर के लिए चल पड़ा। उस वक्त उसकी जेब में सिर्फ सौ रुपये थे। ऐसे में उसने साथी मजदूर से पांच सौ रुपये मांगे और अगले दिन मिश्रौली पहुंचे। आरती और धर्मनाथ की वर्ष 2014 में शादी हुई थी। आरती अपने पीछे पति के साथ तीन छोटे बच्चों को छोड़ गई हैं. सबसे बड़ा बेटा सात वर्ष का है. उससे छोटी दो बेटियां- चार व दो वर्ष की हैं।
बताया जा रहा है कि धर्मनाथ नदी कटान से विस्थापित हैं। डेढ़ वर्ष पहले प्रधानमंत्री आवास योजना में उसने आवेदन किया था। इसके बाद उसे आवास बनवाने के लिए 1.20 लाख रुपये मिल गए तो उन्होंने घर बनवाना शुरू किया। गड्ढेदार जमीन की वजह से नींव भरने में उसका काफी खर्च हो गया। इसी दौरान आरती माइक्रोफाइनेंस कंपनियों द्वारा बनाए गए महिलाओं के समूह के संपर्क में आईं और उसने मकान बनाने की आस में पहले 30 हजार रुपये का कर्ज लिया। हालांकि यह कर्ज उसे कृषि कार्य के नाम पर दिया गया। इसके बाद उसने एक-एक कर पांच माइक्रोफाइनेंस कंपनियों- चैतन्य इंडिया फिन क्रेडिट प्राइवेट लिमिटेड, भारत फाइनेंशियल इनक्लूजन लिमिटेड, सूर्योदय स्माल फाइनेंस बैंक लिमिटेड, आईआईएफएल समस्ता फाइनेंस लिमिटेड, उत्कर्ष स्माल फाइनेंस बैंक लिमिटेड से कर्ज लिया।
सूर्योदय स्माल फाइनेंस बैंक लिमिटेड ने आरती को भैंस खरीदने के नाम पर 16 फरवरी 2021 को 28 हजार रुपये का कर्ज दिया। इस कर्ज को 14 फीसदी फ्लैट ब्याज पर दिया गया था जिसे तीन मई 2023 को 1,500 रुपये की 24 किश्त में चुकाना था।आरती के घर से मिले इस कर्ज के दस्तावेज में सितंबर 2022 तक किश्तों के भुगतान की जानकारी मिलती है. इसके बाद अन्य किश्तों का भुगतान हुआ या आरती इसे चुका नहीं पायी, इस बारे में धर्मनाथ जानकारी नहीं दे पाए। वहीं एक अन्य दस्तावेज से पता चलता है कि आरती को सूर्योदय स्माल फाइनेंस बैंक लिमिटेड ने आठ सितंबर 2022 को ‘एग्री एएच काउ’ के नाम पर 50 हजार रुपये का कर्ज दिया गया जिसे 2,700 रुपये की 24 किश्तों में अदा किया जाना था।
आरती ने बीते छह दिसंबर को इस कर्ज की 2,700 रुपये की किश्त जमा की थी। ऐसे ही और फाइनेंस कंपनियों के कर्ज थे जिसे आरती की चुकाने थे। हालांकि कर्ज की रकम के बारे में आरती के पति धर्मनाथ ठीक-ठीक बता नहीं सके। बात दें कि आरती की जेठानी मीना और देवरानी राजल ने भी माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से कर्ज लिया है। आज उन पर करीब दो लाख रुपये का कर्ज है और उन्हें 6,700 रुपये हर महीने किश्त देने पड़ रहे। ये भी पता चला है कि मिश्रौली गांव में एक समूह से जुड़ी 32 महिलाएं माइक्रोफाइनेंस कंपनियों की जाल में फंसी हैं। बता दें कि मिश्रौली गांव के लोग नदी कटान की त्रासदी के बाद अब कर्जजाल की त्रासदी का सामना कर रहे हैं।
अगर उन्हें नदी कटान से विस्थापित होने के बाद सरकार की मदद मिली होती तो वे शायद वे इस कर्जजाल में नहीं फंसते और उन्हें अपमानित होकर खुकुशी जैसे कदम नहीं उठाना पड़ता। आरती की खुदकुशी और मिश्रौली गांव की महिलाओं के कर्जजाल में फंसने की यह कहानी माइक्रोफाइनेंस के जरिये महिलाओं के सशक्तिकरण और उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के तमाम दावों पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगा रही है।
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