बीते दिनों पंजाब के अबोहर जिले के गांव तेलूपुरा में दो सगे भइआ एक साथ नशे की भेट चढ़ गए। 25 साल के राहुल और 26 साल के सुशील के पिता ओमप्रकाश का कहना था कि उनके दोनों बेटों की मौत नशे की ओवरडोज की वजह से हुई है। ये दोनों लगभग 10 साल से नशे के आदी है। ये दो लड़के तो महज बानगी भर है। सच तो ये है कि यहां ‘उड़ते पंजाब’ में मौत के आंकड़े डरावनी हदें लांघने लगे हैं, लेकिन सरकार इसे रोकने के कुछ खास सफलता नहीं हासिल कर सकी है। बीते दो दशक से हर चुनाव में हर पार्टी का मुख्य एजेंडा तो तो है नशा मुक्त पंजाब का लेकिन जैसे ही चुनाव ख़त्म होता है ये एजेंडा भी खत्म हो जाता है। ऐसा भी कह सकते हैं कि हर आती सरकार नशामुक्ति के वादे-दर-वादे तो करती है, लेकिन न नशा से पिंड छूट पता है और न ही मौत के आंकड़ों में कमी आती है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के ताजा आंकड़ों पर गौर करें तो वह बेहद डराने वाले हैं। ड्रग्स ओवरडोज से पंजाब में सबसे ज्यादा 144 मौतें हुईं। वहीं दूसरे नंबर पर राजस्थान में 117 और तीसरे स्थान पर रहे मध्य प्रदेश में 74 मौतें दर्ज की गईं। बेहद प्रतिष्ठित पीजीआई चंडीगढ़ के एक शोध में पाया गया कि पंजाब में 14.7 फीसदी (31 लाख) आबादी किसी न किसी नशे की चपेट में है। पंजाब के सभी 22 जिलों में किए गए सर्वे में सबसे ज्यादा मानसा जिले की 39 फीसदी आबादी नशे का शिकार है। इसमें लगभग 78 फीसदी लोग ड्रग्स डीलरों से नशा खरीदते हैं और 22 फीसदी लोग दवा की दुकानों से। नशे की भेंट चढ़े अधिकतर लोगों की सरकारी अस्पतालों में हुई पोस्टमार्टम की रिपोर्ट जो चीजें सामने आई हैं उसमें 90 फीसदी मृतक 18 से 35 वर्ष आयु वर्ग के थे। पंजाब में आने वाली हर सरकार द्वारा नशा मुक्त प्रदेश की बात तो कही जाती है लेकिन अभी तक यहां के सिर्फ 3 गांव ही नशामुक्त घोषित हुए हैं। यहां के तरनतारन ही ऐसा जिला है जिसके तीन गांव मस्तगढ़, मनावा और कलंजर पूरी तरह से नशामुक्त हो गए हैं। ये गांव पूरे राज्य के लिए रोल मॉडल हैं।
आइये अब नजर डालते हैं यहां की सियासत पर…पंजाब में बीते दो दशक से ड्रग्स पर बकायदा सियासत होती है। यहां से चुनाव लड़ने वाला हर नेता नशे की मुक्ति के वादे के सहारे अपनी चुनावी नैया पार करने की कोशिश करता है। यहां के नेताओं के लिए नशामुक्ति महज एक इवेंट है जो चुनाव के समय में आता है। सरकार से लेकर गैर-सरकारी संगठन, पुलिस-प्रशासन सब नशामुक्ति से जुड़े आयोजनों में जुड़े रहते हैं। कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल, भाजपा जैसी रिवायती पार्टियों के साथ ही 20 महीने पहले सत्ता में आई आम आदमी पार्टी की भगवंत मान सरकार भी नशे के मोर्चे पर ‘ईवेंट’ दोहरा रही है।
इन पर करना होगा काम
नशे पर नकेल कसने के लिए बनाया गया एनडीपीएस (नार्कोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टांस) एक्ट महज कागजी कानून ही साबित हो रहा है। हालांकि यहां के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एनडीपीएस एक्ट में संशोधन कर फांसी दिए जाने की मांग की है। इस एक्ट के तहत फिलहाल पहली बार पकड़े जाने पर 10 साल की कैद और दूसरी बार पकड़े जाने पर फांसी की सजा का प्रावधान है। हां ये बात और है कि बीते 29 वर्षों में देश भर में नशे की चलते किसी को फांसी की सजा नहीं हुई है।
पंजाब में नशे से मुक्ति दिलाने के लिए कोई मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है। कहने हो तो यहां 37 सरकारी व 96 निजी ड्रग्स डीएडिक्शन सेंटर और 22 सरकारी और 77 निजी री-हेबिलिटेशन सेंटर्स लेकिन ये सभी नाकफी साबित हो रहे हैं क्योंकि पंजाब के 30 लाख से अधिक लोग किसी न किसी नशे की चपेट में हैं। इतनी बड़ी संख्या में नशे के आदि लोगों के इलाज के लिए ये इंफ्रास्ट्रक्चर ऊंट के मुंह में जीरा है। यहां 2.65 लाख से अधिक रोगियों को सरकारी नशामुक्ति केंद्रों और ओओएटी क्लीनिकों में पंजीकृत किया गया है, जबकि 6.2 लाख से अधिक लोगों ने निजी नशामुक्ति केंद्रों में नामांकन कराया है। नशे के उपचार के लिए ओओएटी क्लीनिकों द्वारा मुफ्त में दी जाने वाली दवा बुप्रेनोरफिन कारगर साबित नहीं हो रही है क्योंकि बुप्रेनोरफिन अफीम की एक औषधीय दवा है जिसे ओपियोइड प्रतिस्थापन थेरेपी (ओएसटी) के तहत घर ले जाने वाली खुराक के रूप में दिया जा रहा है।
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