लोकसभा चुनाव में अब कुछ ही महीने शेष रह गए हैं। ऐसे में सभी राजनीतिक दल जनता को रिझाने और वोटरों को अपने पक्ष में करने में जुट गए हैं। सत्ता पक्ष इस बार के चुनाव को जीत कर अपने मंसूबों को पूरा करना चाहता है। वहीं विपक्ष के लिए इस बार का चुनाव करो या मरो वाली स्थिति का है। विपक्ष के सामने अपनी पुरानी सीटों को बचाने और नई सीटों पर बढ़त बनाने की चुनौती है। इसके लिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार कड़ी मेहनत कर रहे हैं और पार्टी का खोया हुआ जनाधार वापस लाने के लिए पैदल यात्रा कर रहे हैं। पहले उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा की जो 7 सितंबर, 2022 को कन्याकुमारी से शुरू हुई थी और 26 जनवरी 2023 को श्रीनगर में ख़त्म हुई थी।
इस यात्रा में वे 3,570 किमी तक लगातार पैदल चले थे और देश भर के 12 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेश को कवर किया था। इस यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने लगातार जनता से संवाद किया था और कई जन सभाएं भी संबोधित की थी। साथ ही उन्होंने अस्थाई आवास में रात्रि विश्राम किया। वहीं अब वे भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर हैं। उनकी ये यात्रा हिंसा ग्रस्त मणिपुर की राजधानी इंफाल से शुरू हुई है और मुंबई में जाकर खत्म होगी। बीती 14 जनवरी 2024 को शुरू हुई यात्रा में कांग्रेस नेता 6,700 किलोमीटर की दूरी तय करेंगे और 15 राज्यों की कवर करेंगे। इस यात्रा में वे आम लोगों से मिलते हुए उन्हें न्याय का संदेश देंगे और उन्हें उनके हक़ की लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित करेंगे। अपनी भारत जोड़ो यात्रा में राहुल ने नरेंद्र मोदी की भय, नफरत और विभाजन की राजनीति के बरक्स सौहार्द और प्रेम का संदेश दिया। उनकी इसी यात्रा के बाद सत्ता पक्ष के खिलाफ विपक्ष एकजुट होने लगा और इण्डिया गठबंधन बनाया, जिसकी पहली बैठक मई 2023 में पटना में हुई थी।
इसके बाद दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु में भी विपक्ष एकजुट हुआ। हालांकि गठबंधन में पीएम के चेहरे को लेकर लगातार विवाद बना रहा और हर पार्टी के कार्यकर्ता अपने मुखिया को पीएम का चेहरा बताने लगे। इसे लेकर गठबंधन में विवाद भी रह-रह उभरने लगा। आलम ये रहा कि जनवरी 2024 आते-आते गठबंधन में फूट पड़ने लगी। वजह साफ थी अलायंस में शामिल सभी पार्टियों के राजनीतिक स्वार्थ टकराने लगे और सीटों के बंटवारे को लेकर भी आपस में विवाद होने लगा। पहले पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर पार्टियों में विवाद हुआ और अब इण्डिया गठबंधन के कई नेता अपने स्वार्थ के चलते बीजेपी के शामिल हो गए हैं। जैसे कि गठबंधन की शुरुआत करने वाले खुद नीतीश कुमार एक बार फिर से नरेंद्र मोदी के पाले में जा चुके हैं और एनडीए के सहयोग से बिहार के सीएम बन गए हैं। इसके बाद जयंत चौधरी ने भी बीजेपी का दामन थाम लिया। वहीं अभी भी गठबंधन में शामिल पार्टियों के बीच सीट बंटवारे को लेकर बात नहीं बन पा रही है।
उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस के बीच पेंच फंसा हो तो वहीं पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, कांग्रेस को 42 सीटों में से महज दो सीटें ही देने को तैयार हैं। और तो और आम आदमी पार्टी ने पंजाब की हर सीट पर अपने प्रत्याशी उतारने का फैसला लिया है। वह कांगेस के साथ सीटों का बंटवारा करने के मूड में नहीं है। आपको बता दें कि जब गठबंधन बना था तब कयास लगाये जाने लगे थे कि सत्ता पक्ष को लोकसभा चुनाव के कड़ी टक्कर मिलेगी लेकिन अब जिस तरह से इण्डिया अलायंस में फूट पड़ी है और इसके कई नेता बीजेपी में हितुवा बना गये हैं। ऐसे में विपक्ष का ये गठबंधन भाजपा को कितनी कड़ी टक्कर दे पायेगा ये देखना समय के गर्भ में होगा।
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