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क्या कमलनाथ को भी दिखाया गया था एजेंसियों का डर?

Operation Kamal Nath

निशा शुक्ला

भारतीय जनता पार्टी को ‘ऑपरेशन कमलनाथ’ में मुंह की कहानी पड़ी, जिससे उसे बड़ा सदमा लगा है। इससे पहले उसे राजस्थान के ‘पायलट प्रोजेक्ट’ में भी असफलता मिली थी। वहीं बिहार की राजनीति में भी बीते दिनों काफी गहमागहमी देखने को मिली। आलम ये रहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन से किनारा कर लिया और एनडीए गठबंधन में शामिल होकर फिर से सीएम की कुर्सी संभाल ली। इधर उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी ने इंडिया गठबंधन में सेंधमारी की और पूर्व प्रधानमंत्री व किसानों के मसीहा कहे जाने वाले चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देकर राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी को अपनी तरफ मिला लिया। दरअसल जयंत चौधरी की पश्चिमी यूपी के जाट वोटर्स के बीच अच्छी पैठ है। ऐसे में जंयत चौधरी के एनडीए में शामिल होने से जाट वोट भी काफी हद तक उधर ही खिसकेंगे।

राजनीतिक स्वार्थ देख रहे इंडिया गठबंधन के नेता

आपको बता दें कि जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है। वैसे-वैसे पार्टियों में भी तोड़-फोड़ देखने को मिल रही है। बीजेपी इंडिया गठबंधन को कमजोर करने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है और वह इसमें काफी हद तक सफल भी हो रही है। इसकी मुख्य वजह है कि इंडिया गठबंधन में शामिल अधिकतर नेता सिर्फ और सिर्फ अपना राजनीतिक स्वार्थ देख रहे हैं। अब बात करते है कमलनाथ की तो बीते दिनों कमलनाथ और उनके बेटे नकुलनाथ के बीजेपी में शामिल होने की खबरें तेजी से आ रही थी, लेकिन लास्ट मूवमेंट पर सब कैंसिल हो गया और कमलनाथ की तरफ से बयान आया कि वह कही नहीं जा रहे हैं, वे कांग्रेस में ही रहेंगे। हालांकि उन्हें कांग्रेस में क्यों रुकना पड़ा, इसका खुलासा अभी तक नहीं हो पाया, लेकिन इससे खुद पीएम मोदी और बीजेपी के चुनावी रणनीति कारों को सदमा जरूर लगा होगा। साथ ही पार्टी की छवि पर भी असर पड़ा होगा।

छिन्दवाड़ा सीट पर है संशय

वहीं राजनीति के जानकारों का मानना है कि भाजपा को लगा था कि जैसे उसने महाराष्ट्र में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को तुरत-फ़ुरत पार्टी में शामिल करा कर राज्यसभा के लिए नामांकन करवा दिया था, वैसे ही ‘ऑपरेशन कमलनाथ’ में भी उसके सक्सेज मिल जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इन सब घटनाक्रम से पहले मध्यप्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को शानदार जीत मिली थी। इसके बाद कांग्रेस नेता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने खुद शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात की थी और उन्हें बधाई दी थी। इसमें दो मत नहीं कि श्यामाप्रसाद मुखर्जी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के निमित्त पीएम के लिए ज़रूरी हो गया है कि लोकसभा चुनावों में पार्टी 370 के आँकड़े को प्राप्त करके देश को दिखा दें। एमपी में पिछली बार सिर्फ़ छिन्दवाड़ा की सीट रह गई थी। कमलनाथ के भाजपा-प्रवेश के बाद वह सीट भी निश्चित हो जाती, लेकिन अब इस पर संशय हो गया है।

बीजेपी की छवि को लगा धक्का

इधर कमलनाथ प्रसंग पर कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह का भी बयान आया, जिसने बीजेपी की छवि को काफी धक्का पहुंचाया। दरअसल दिग्विजय सिंह ने कहा कि जिस तरह से जांच एजेंसियों का दबाव अन्य नेताओं पर है वैसा ही कमलनाथ पर भी है। यही वजह है कि वे बीजेपी में जाने को राजी हो गए थे। उन्होंने कहा कि समूचा कमलनाथ प्रसंग इसी अहंकार की उपज था कि सांप्रदायिक विभाजन और चुनाव जीतने के कामों में सब कुछ जायज़ है। दूसरे यह कि चुनाव जीतने के काम में पार्टी कार्यकर्ताओं के समर्पण के मुक़ाबले जाँच एजेंसियों का इस्तेमाल ज़्यादा प्रभावकारी साबित होता है और भाजपा इसका बखूबी इस्तेमाल कर रही है।

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Author: nyaay24news

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