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सपा में बगावतः क्या अखिलेश को महंगी पड़ी पिछड़ों की अनदेखी?

अखिलेश यादव

उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों उथल पुथल मची हुई है। अखिलेश यादव का किला अब पूरी तरह से दरकता हुआ नजर आ रहा है। बीते कुछ दिनों से प्रदेश की राजनीति में जो हो रहा है, उसने सपा मुखिया की नींद उड़ा दी है। वहीं जो रही सही कसर थी वह गत दिवस राज्य सभा चुनाव के दौरान हुए घटनाक्रम ने पूरी कर दी। अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को बहुत बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ सकता है।

डिनर पार्टी से दूरी बनाकर दिया क्रास वोटिंग का संदेश

हालांकि राज्य सभा चुनाव से एक दिन पहले अखिलेश यादव ने विधायकों को डिनर पार्टी पर बुलाकर एकजुटता का संदेश देने की कोशिश की थी, लेकिन चीफ व्हिप मनोज कुमार पांडे, राकेश पांडे, विनोद चतुर्वेदी, अभय सिंह, राकेश प्रताप सिंह, मुकेश वर्मा, महराजी प्रजापति और पूजा पाल ने इस डिनर प्रोग्राम से दूरी बनाकर क्रास वोटिंग का संदेश दे दिया। इसके बाद राज्य सभा चुनाव के दिन यानी मंगलवार को ही सपा के मुख्य सचेतक मनोज पांडेय ने अखिलेश यादव को अपना इस्तीफा भेज दिया। साथ ही ये संदेश भी दिया कि वे और पार्टी के अन्य तीन विधायक राकेश पांडे, विनोद चतुर्वेदी, अभय सिंह अब भाजपा प्रत्याशी को अपना वोट देंगे। मनोज पांडेय के इस कदम से सपा सुप्रीमो को बड़ा झटका लगा। बता दें कि मनोज पांडेय को अखिलेश यादव का बेहद करीबी माना जाता था। पार्टी में उनकी अच्छी खासी धाक थी, लेकिन कही न कही उन्हें पार्टी के ही एक अन्य नेता स्वामी प्रसाद मौर्य से विरोध का सामना करना पड़ रहा था, जिससे वे असंतुष्ट थे।

हिन्दू विरोधी बयानों से असंतुष्ट से मनोज पांडेय

दरअसल स्वामी प्रसाद मौर्य लगातार हिन्दू विरोधी बयान दे रहे थे, जिसका मनोज पांडेय ने सार्वजनिक रूप से विरोध करना शुरू कर दिया। इसमें उन्हें सपा मुखिया अखिलेश यादव का भी साथ मिला, नतीजा ये रहा कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने नाराजगी जताते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अखिलेश यादव पर अनदेखी का आरोप लगाया, लेकिन अब मनोज पांडेय समेत कई अन्य सवर्ण नेताओं का पार्टी से किनारा करना समाजवादी पार्टी के अस्तित्व की संकट में डालने जैसा है। बता दें कि गत दिवस हुए राज्य सभा चुनाव में पार्टी के कई अगड़े विधायकों ने बीजेपी प्रत्याशी को वोट किया। इस दौरान वे ये कहते नजर आये कि वे अपनी अंतरात्मा की आवाज पर वोट कर रहे हैं। यहां सवाल ये उठता कि सपा की सीट से चुनाव जीत कर विधायक बने कई अगड़े नेता आखिर क्यों उसकी विधारधारा से नहीं जुड़ पा रहे हैं।

बीजेपी ने आंबेडकर नगर में ऐसे लगाई सेंध

मनोज पांडेय के अलावा राकेश प्रताप सिंह भी अखिलेश के डिनर कार्यक्रम में नहीं पहुंचे। उन्होंने मीडिया को दिए के बयान में कहा कि “राम कण-कण में हैं, राम मन-मन में हैं।” वहीं अयोध्या की गोसाईगंज विधानसभा सीट से सपा विधायक अभय सिंह ने कहा कि वो वोट डालने से पहले यह नहीं बताएंगे कि उन्होंने किसे वोट दिया है, लेकिन जिस तरह से उन्होंने राम का नाम लिया और कहा कि राम हमारे आराध्य हैं, हम तो उन्हीं कुल खंडन के हैं उनके परिवार को कैसे धोखा दे सकते हैं। इससे कहीं न कहीं ये साफ़ जाहिर होता दिखा कि वह भी भारतीय जनता पार्टी को ही सपोर्ट करेंगे। वहीं राज्यसभा चुनाव से पहले रविवार को अंबेडकर नगर के विधायक रितेश पांडे ने भी बसपा छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया है। रितेश पांडे के पिता राकेश पांडे सपा विधायक (जलालपुर) हैं। दरअसल, अंबेडकर नगर में पांच विधान सभा सीटें हैं। इन सभी पांच सीटों पर सपा का ही कब्जा है। यूं कहें कि अंबेडकर नगर सपा का सबसे मजबूत गढ़ है, लेकिन भाजपा ने यहां भी सेंध लगा दी है। यहां उसने पांडेय खानदान में सेंध मारी की और पिता बेटे दोनों भाजपा के खेमे में आ चुके हैं। इस टारगेट को उसने मनोज पांडे के जरिए हासिल किया।

रितेश पांडेय के रूप में बीजेपी को मिला मजबूत प्रत्याशी

बीते कुछ दिनों से प्रदेश की राजनीति में जिस तरह से घटनाक्रम चल रहे हैं उसे देखकर साफ़ कहा जा सकता है कि भाजपा हर हालत में लोकसभा चुनाव जीतना चाहती है। वह इसके लिए साम, दाम, दंड, भेद सभी तरीके अपना रही है। दरअसल आंबेडकर नगर से भाजपा के पास कोई मजबूत प्रत्याशी नहीं था, लेकिन अब रितेश पांडेय के रूप में उसे वह प्रत्याशी मिल गया है। इसी के साथ ही समाजवादी पार्टी का सबसे मजबूत किला भी हिल गया है। हालांकि अखिलेश ने राज्यसभा चुनाव में अगड़ों को साधने की पूरी कोशिश की थी। उन्होंने अल्पसंख्यक और ओबीसी को नाराज करते हुए अगड़ी जाति के दो लोगों को टिकट दिया था, और तीसरे प्रत्याशी के तौर पर दलित नेता रामजी लाल सुमन को मैदान में उतारा था लेकिन उसका भी असर पड़ता हुआ नजर नहीं आया और अगड़ी जाति के नेता उनसे दूरी बनाते नजर आ रहे हैं।

अखिलेश के फैसले पर सलीम शेरवानी ने जताई नाराजगी

इधर अखिलेश के इस कदम का उनकी ही पार्टी के नेता सलीम शेरवानी ने सवाल उठाये और कहा आखिर अखिलेश किस तरह की राजनीति करना चाह रहे हैं। उन्होंने कहा, अगर अखिलेश इस तरह से अल्पसंख्यकों की अनदेखी करेंगे तो वह उनके साथ क्यों रहेगा। आपको बता दें कि 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को भले ही सत्ता नहीं मिली लेकिन पार्टी के 35 अल्पसंख्यक विधायकों के साथ उसने शानदार प्रदर्शन किया था। इधर राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा भी कई बार होती रहती है कि प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी के मुखिया होने के बावजूद वह बाबा के बुलडोजर की खिलाफत नहीं कर पा रहे हैं। अखिलेश यादव सिर्फ घर में बैठकर ट्वीट करके ही अपनी जिम्मेदारियों की इतिश्री कर ले रहे हैं।

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