नई दिल्ली। चुनाव आयोग ने पहले ही राजनीतिक दलों के लिए चुनावी खर्च की सीमा तय कर रखी हो लेकिन राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं को लुभाने के लिए खुले हाथों से खर्च करने में तनिक भी गुरेज नहीं करती है। यहां तक की अपनी योजनाओं के प्रचार प्रसार पर करोड़ों रूपये लुटा देती है। निर्वाचन आयोग को दी अपनी ऑडिट रिपोर्ट में राजनीतिक दलों ने खुद इस बात को स्वीकार किया है। वर्ष 2015 से 2020 तक हुए विभिन्न चुनाव में राजनीतिक दलों ने 6,500 करोड रुपए खर्च किए हैं इनमें 11 दल क्षेत्रीय जबकि 7 राष्ट्रीय हैं।
चुनाव आयोग को दिए गए ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक साथ राष्ट्रीय पार्टियों में बीजेपी, कांग्रेस, बसपा, एनसीपी, सीपीआई, तृणमूल कांग्रेस व अन्य हैं। उपरोक्त रकम में से करीब 3,400 करोड़ यानी 54 फीसदी रकम राजनीतिक दलों ने विज्ञापनों पर खर्च की है। हालांकि इसमें स्थानीय स्तर के भी खर्चे भी शामिल हैं। इस दौरान 5 वर्षों में सत्ता धारी दल ने सबसे अधिक 56 फ़ीसदी यानी 3600 करोड रुपए खर्च किए हैं जबकि कांग्रेस ने 21.2 41 फ़ीसदी रकम खर्च की है। इसका मतलब कुल 18 पार्टियों में से इन दोनों ने अकेले 77 फ़ीसदी से ज्यादा पैसे खर्च किए हैं। उत्तर प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी ने 3.95 फीसदी, डीएमके ने 3.6 फ़ीसदी, वाईएसआर कांग्रेस ने 2.17 फ़ीसदी बसपा ने 2.04 और तृणमूल कांग्रेस ने 1.83 फीसदी रकम खर्च की है।
राजनीतिक पार्टियां अपने प्रत्याशायों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने पर भी जमकर खर्च करती हैं। भाजपा ने पांच वर्षों में कुल खर्च का 11.41 फीसदी अपने प्रत्याशियों को वित्तीय सहायता देने पर खर्च किया है। वहीं एनसीपी ने 7.9 फीसदी , टीएमसी ने 5.1 फीसदी और जनता दल ( यू ) ने 1.7 फीसदी रकम इस मद में खर्च की है ।
वास्तविक खर्च का अनुमान मुश्किल
हर चुनाव में प्रत्याशियों के खर्च की सीमा तय है । बावजूद इसके किसी प्रत्याशी ने कितना खर्च किया, इसका वास्तविक अनुमान लगाना मुश्किल है ।
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