देश में आम चुनाव का बिगुल बज चुका है। राजनीतिक दल चुनावी अखाड़े में अपने-अपने प्रत्याशी उतार चुके हैं। वहीं कुछ ऐसी सीटें हैं जिन पर अभी तक दिग्गजों ने दांव आजमाया था, लेकिन इस बाद अभी तक न तो प्रत्याशी उतारे गए हैं और न ही योद्धा चुनाव प्रचार के लिए मैदान में उतरे हैं।
रायबरेली गांधी के गढ़ में गफलत

उत्तर प्रदेश की सबसे प्रमुख लोकसभा सीटों में शुमार रायबरेली में तक कांग्रेस, सपा, बसपा और बीजेपी ने उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया है। हालांकि गठबंधन के अनुसार सपा ने ये सीट कांग्रेस को सौंप दी है लेकिन कांग्रेस ने भी अभी तक इस सीट से किसी को टिकट नहीं दिया है। ऐसे में प्रत्याशी को लेकर अभी यहां ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है।वैसे तो रायबरेली लोकसभा का चुनाव हमेशा से दिलचस्प रहा है। इस सीट पर 1952 से हुए अब तक के चुनाव में कांग्रेस हमेशा से भारी रही है। यहां से गांधी परिवार ही चुनाव लड़ता रहा है और जनता उस पर लगातार प्यार बरसाती आई है।
वर्ष 2004 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की बहू सोनिया गांधी ने यहां की राजनीति संभाली। सोनिया को भी रायबरेली की जनता से सिर आंखों पर बैठाया। रायबरेली से सोनिया 5 बार सांसद चुनी गई लेकिन उनके राज्यसभा जाने से गांधी परिवार की इस विरासत पर अभी असमंजस की स्थिति है। अभी हालात बदले हैं सपा के काठावर मनोज पांडे भाजपा के साथ हैं। इस सब के बीच प्रत्याशियों का ऐलान नहीं होने से अटकलों का बाजार गर्म है।
अमेठी: भाजपा की स्मृति ईरानी हैं मैदान में

वैसे तो अमेठी मे कांग्रेस से राहुल गांधी चुनाव लड़ते आए हैं, लेकिन इस बार पार्टी ने अभी तक किसी नाम का ऐलान नहीं किया है। यहां से अभी तक भाजपा ने अपना उम्मीदवार घोषित किया है। बीजेपी से स्मृति जुबिन ईरानी मैदान में हैं। स्मृति वर्ष 2014 व 2019 में भी अमेठी सेचुनाव लड़ चुकी हैं। पहली बाद हार के बाद दूसरी बार उन्होंने राहुल गांधी को हराया।
वर्ष 2024 के सियासी रण के लिए स्मृति के नाम की पार्टी ने पहले ही सूची में घोषणा कर दी। अमेठी की सीट सपा कांग्रेस गठबंधन के बाद कांग्रेस के खाते में है। कांग्रेस यहां पर अभी तक चुप्पी साधे हुए हैं। स्थानीय कांग्रेसी यहां से राहुल गांधी के चुनाव लड़ने की मांग कर रहे हैं, लेकिन शीर्ष नेतृत्व अभी इस पर कोई निर्णय नहीं ले पाया है। यहां कई नाम चर्चा में हैं लेकिन हर किसी की नजर गांधी परिवार पर टिकी है। अकेले दम पर चुनाव लड़ने का दावा कर चुकी बसपा भी इस सीट से प्रत्याशी उतारने की तैयारी कर रही है। हालांकि नेताओं के नाम को लेकर पार्टी में अभी खामोशी बनी है।
सुल्तानपुर: सिर्फ सपा ने खोले हैं पत्ते

लोकसभा चुनाव का ऐलान होते ही समाजवादी पार्टी ने सुल्तानपुर में अपने पत्ते खोल दिए। पार्टी ने अंबेडकर नगर निवासी भी निषाद को मैदान में उतार दिया। मूल रूप से भी आजमगढ़ के रहने वाले हैं। सुलतानपुर सीट से भाजपा ने मौजूदा सांसद मेनका गांधी का टिकट होल्ड किया है।
ऐसे में सपा ने भी निषाद के रूप में मोर्चे बंदी में बाजी मारी है, लेकिन इस वीआईपी सीट पर भाजपा की खामोशी कई सवाल खड़े कर रही है। बसपा की चुप्पी भी समीकरण की ही अहम कड़ी मानी जा रही है। ऐसे मे अब ये देखना दिलचस्प होगा यहां कौन किसे टक्कर देगा। फिलहाल भाजपा में ही आठ ऐसे दावेदार ऐसे हैं जो टिकट के लिए दिल्ली में ही जमे हुए हैं। इनमें से कुछ विधायक हैं, तो कुछ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी के खासम खास।
सूना पड़ा कैसरगंज का अखाड़ा
चुनाव की तारीखों का ऐलान होते ही राजनीति के रण में रोमांचकारी मुकाबले की पूरी तैयारी हो चुकी है, लेकिन गोंडा की सबसे चर्चित कैसरगंज लोकसभा सीट को लेकर अभी असमंजस की स्थिति बनी हुई है, यहां से अभी तक किसी पार्टी ने उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया है। रेसलर विवाद के बाद करीब साल भर से सुर्खियों में रही कैसरगंज लोकसभा सीट अब राजनीतिक कारणों से चर्चा में बनी हुई है।
राजनीतिक दल यहां किस पर भरोसा जताएंगे, इसे लेकर राजनीतिक गलियारों में अटकलों का दौर शुरू हो चुका हैं। सपा और बसपा भी अभी इस सीट पर चुप्पी साधे हुए है। सभी दल एक दूसरे की चाल को गंभीरता से परख रहे हैं। इस सीट से वर्ष 2014 व 2019 में बृजभूषण शरण सिंह भाजपा से सांसद चुने गए थे। कैसरगंज लोकसभा सीट से अभी जिले के ही दो विधायकों की उम्मीदवारी को लेकर चर्चा है। भाजपा पैनल ने शीर्ष नेतृत्व को उनका नाम भी भेजा है। उम्मीदवार कोई भी इस लेकिन इस सीट पर मुकाबला बेहद दिलचस्प होगा।
इसे भी पढ़ें- पीएम मोदी के इस फैसले पर BJP सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने जताई ख़ुशी
इसे भी पढ़ें- पीएम मोदी के इस फैसले पर BJP सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने जताई ख़ुशी
