आजमगढ़। पूर्वांचल का आज़मगढ़ इलाका अपनी ‘प्रकृति’ के कारण हमेशा सुर्खियों में रहता है। आज़मगढ़ ने कई प्रसिद्ध हस्तियों को जन्म दिया है। हालांकि एक समय था जब इस जिले को एक समय आतंकवाद का गढ़ कहा जाता था, लेकिन अब तस्वीर बहुत बदल गई है। अगर कुछ नहीं बदला तो समाजवादी पार्टी का इस जिले से लगाव। आज भी आज़मगढ़ की लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी परंपरागत सीट मानी जाती है।मोदी लहर के बाद भी 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा ने यहां से जीत हासिल की थी। इस सीट से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने चुनाव लड़ा था और सांसद बने थे। सपा मुखिया ने भाजपा प्रत्याशी और भोजपुरी फिल्म अभिनेता दिनेश लाल यादव निरुआ को 2,000 (59,000) वोटों के अंतर से हराया।
बाद में उन्होंने इस सीट से त्यागपत्र दे दिया। इसके जब उपचुनाव हुआ तो जनता ने अपनी नाराजगी जताते हुए समाजवादी पार्टी के खिलाफ अपना वोट दिया। वह बात और है कि बीजेपी ने बेहद मामूली अंतर से उपचुनाव जीता और दिनेश लाल निरहुआ संसद पहुंचे। आपको बता दें कि आज़मगढ़ वह जिला है जो पूर्वांचल की दशा और दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाता है। ऐसे में अटकलें लगाई जा रही है कि पार्टी से सैफई के परिवार का कोई सदस्य इस सीट से चुनाव मैदान में उतार सकता है। अखिलेश यादव और उनके चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव के नाम पर चर्चा चल रही थी। इसी बीच समाजवादी पार्टी ने इस सीट से धर्मेंद्र यादव के नाम का ऐलान कर स्थिति स्पष्ट कर दी।
उलेखनीय है कि सैफाई परिवार से धर्मेंद्र यादव 2004 में मुलायम सिंह यादव सरकार में पहली बार मैनपुरी से संसद पहुंचे थे। 2007 में समाजवादी पार्टी सत्ता बाहर हो गई और बसपा की सरकार बनी तो मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी से चुनाव लड़ा। वहीं धर्मेन्द्र यादव को बदायूं भेजा गया। 2009 के लोकसभा चुनाव में धर्मेंद्र यादव बदायूं लोकसभा सीट से दूसरी बार लोकसभा के लिए चुने गए। उन्होंने 2014 में बदायूं से जीत हासिल की। 2019 में बीजेपी ने स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा को मैदान में उतारा, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
2014 में मोदी सरकार के दौरान भी नेताजी मुलायम सिंह यादव ने आज़मगढ़ सीट से जीत हासिल की थी। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय नेता अखिलेश यादव ने 2019 में सीट जीती और सपा का आधार बरकरार रखा। विधानसभा चुनाव के बाद अखिलेश यादव ने आज़मगढ़ सीट छोड़ दी। अखिलेश द्वारा खाली की गई इस सीट पर सपा ने 2022 में आज़मगढ़ लोकसभा उपचुनाव में धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा, लेकिन उस चुनाव में धर्मेंद्र यादव को हार का सामना करना पड़ा। बीजेपी के दिनेश लाल यादव ने करीब 8,000 वोटों के अंतर से जीत हासिल की। वहीं इस पिच पर बसपा से गुड्डू जमाली मैदान में उतरे। माना जाता है कि गुडू जमाली द्वारा मुस्लिम वोटों के प्रति घोर उपेक्षा के कारण ही धर्मेंद्र यादव यहां हार गए और उन्हें वापस लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस सीट को मजबूत करने के लिए समाजवादी पार्टी ने इस बार बसपा के गुडू जमाली को अपने साथ जोड़ा है।
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