सुल्तानपुर। सियासत के रंग सिर्फ अवध में ही दिखते हैं। सेनाएं तैयार की जाती हैं और सैन्य रणनीतियां बनाई जाती हैं। सावधानी से चलना अच्छी बात है, लेकिन धैर्य की कमी राजा को शीघ्र ही गिरा सकती है। यह सब यहां के 14 स्थानों को विशेष बनाता है। वे एक अलग माहौल बनाते हैं। जीत और हार का महत्व एक स्थान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पार्टी की नीतियों और पार्टी नेताओं की सार्वजनिक स्वीकार्यता को भी आकार देता है। राम मंदिर के साथ-साथ फैजाबाद में जीत जहां पार्टी के हिंदुत्व चेहरे की पुष्टि करती है। वहीं कांग्रेस के नेताओं गांधी परिवार की स्थिति रायबरेली और अमेठी से तय होगी।
ऐसे में सबसे अहम सीट फैजाबाद की रामनगरी है, जहां तीनों प्रमुख पार्टियों ने उम्मीदवार उतारकर बढ़त बना ली है। बीजेपी ने एक बार फिर मौजूदा सांसद लाल सिंह पर भरोसा जताया है। वहीं सपा ने अपने पुराने तानाशाह अवधेश प्रसाद को दांव पर लगा दिया। इधर बसपा ने अपने पत्ते दिखाते हुए सच्चिदानंद पांडे को अपना उम्मीदवार बनाया है। इसके अलावा 14 में से 13 जगहों पर राजनीतिक तस्वीर अभी भी स्पष्ट नहीं है। केंद्रीय मंत्री के तौर पर बीजेपी ने एक बार फिर स्मृति ईरानी को अमेठी से मैदान में उतारा है, लेकिन क्या कांग्रेस नेता राहुल गांधी उनसे लड़ेंगे या नहीं? इसका उत्तर एक रहस्य बना हुआ है। बसपा ने भी यहां एक भी प्रत्याशी घोषित नहीं किया है।
सोनिया गांधी के चुनाव लड़ने से इनकार करने के बाद, रायबरेली में भी धुंध छाई है। यहां न केवल कांग्रेस बल्कि भाजपा और बसपा भी अभी तक उम्मीदवार पर फैसला नहीं कर पाई हैं। कुछ यही स्थिति सुल्तानपुर की भी बनी हुई है, जहां कद्दावर नेता मेनका गांधी के टिकट को भी बीजेपी ने होल्ड किया हुआ है। माना जा रहा है पीलीभीत की स्थिति साफ होते ही सुल्तानपुर की भी तस्वीर स्पष्ट हो जाएगी। अगर बीजेपी ने वरुण गांधी की पीलीभीत में एंट्री रद्द कर दी तो मेनका और बीजेपी की राहें जुदा हो सकती हैं, लेकिन बीएसपी यहां भी खामोश है।
इसी तरह मौजूदा बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह के कब्जे वाली कैसरगंज सीट भी चर्चा का विषय बनी हुई है। पार्टी महिला पहलवानों पर अविश्वास से घिरी हुई है और उन्हें लेकर दोराहे पर है। अब माना जा रहा है कि अगर बृजभूषण को या उनके परिवार को टिकट नहीं मिला तो वह चुनाव जरूर लड़ेंगे और सभी राजनीतिक दलों के उम्मीदवार पर्दे के पीछे से इसकी तैयारी भी कर रहे हैं।
इस वजह से हो रही देरी
अवध क्षेत्र की 14 सीटों पर चौथे से छठे चरण के बीच चुनाव होना है। यही वजह है कि पार्टियां यहां टिकट तय करने में कोई जल्दबाजी नहीं कर रही हैं। वे एक-दूसरे की रणनीतियों से वाकिफ हैं। उम्मीदवारों की घोषणा के बाद भी कई सीटों पर पलायन और दंगे का खतरा है, इसलिए पार्टी यहां रुकी हुई है।
सिटिंग सीटों पर बसपा-कांग्रेस ने साधी चुप्पी
अवध की 14 में से 11 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी, जबकि श्रावस्ती में बसपा के राम शिरोमणि वर्मा और अंबेडकर नगर में रितेश पांडे जीते थे। कांग्रेस को सफलता सिर्फ रायबरेली की वजह से मिली। इस बार गठबंधन में कांग्रेस के पास प्रदेश की चार सीटें हैं लेकिन उसने अभी तक एक भी सीट पर उम्मीदवार का नाम तय नहीं किया है। इसी तरह अंबेडकर नगर में बीएसपी से मौजूदा सांसद रितेश पांडे इस बार बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में बसपा ने न तो अंबेकरनगर से और न ही श्रावस्ती से किसी को अभी तक मैदान में उतारा है।
श्रावस्ती सीट भी हुई अहम
श्रावस्ती बसपा के राम शिरोमणि वर्मा सांसद हैं। पिछला चुनाव उन्होंने करीब छह हजार वोटों से जीता था। यहां से बीजेपी ने देश के सबसे ताकतवर नौकरशाहों में से एक और राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष पूर्व आईएएस नृपेंद्र मिश्रा के बेटे साकेत मिश्रा को मैदान में उतारा, इसलिए सपा और बसपा भी यहां उम्मीदवार उतारने को लेकर काफी सोच-विचार कर रही हैं।
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