लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। अदालत ने पाया है कि कानून ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम की धारा 22 का उल्लंघन किया है। कोर्ट ने कहा कि मदरसा एक्ट को रद्द करने से राज्य में मदरसों में पढ़ने वाले बड़ी संख्या में छात्र प्रभावित होंगे इसलिए, राज्य सरकार को उन्हें प्राथमिक, उच्च विद्यालय और माध्यमिक विद्यालय शासी निकाय से संबद्ध सार्वजनिक स्कूलों में रखना चाहिए। न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने अंशुमान सिंह राठौड़ द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश पारित किया।
क्या है यूपी मदरसा बोर्ड शिक्षा अधिनियम?
उत्तर प्रदेश में मदरसा शिक्षा प्रदान करने के लिए यह अधिनियम 2004 में पारित किया गया था। इनमें अरबी, उर्दू, फ़ारसी, इस्लामी अध्ययन, तिब्ब (पारंपरिक चिकित्सा), दर्शन और अन्य विषयों की कक्षाएं शामिल थीं। इस परिषद को बाद में पुनर्गठित किया गया और इसमें अध्यक्ष, प्राचार्य, राजकीय ओरिएंटल कॉलेज, रामपुर के प्राचार्य, क्रमशः सुन्नी और शिया संप्रदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक विधायक, एनसीईआरटी के एक प्रतिनिधि, सुन्नी और शिया संस्थानों के प्रमुख और विज्ञान के एक प्रतिनिधि और तिब्बत के शिक्षक शामिल थे।
बोर्ड का मकसद
मदरसा शिक्षा अधिनियम के अनुसार, बोर्ड का कार्य यूजी (कामिल) और पीजी (फज्र), डिप्लोमा (काली), प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम और अन्य शैक्षणिक गतिविधियों की पेशकश करना है। इसके अलावा, बोर्ड सचिवीय और कार्यालय प्रशासन (10वीं कक्षा) और आलिम (12वीं कक्षा) पाठ्यक्रमों के लिए परीक्षा आयोजित करने के लिए भी जिम्मेदार है। बोर्ड को तेहतनिया, फुलकानिया, मंशी, मौलवी, आलम, कामिल और फज्र के लिए पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तकें, संदर्भ पुस्तकें और अन्य शिक्षण सामग्री निर्धारित करने का भी निर्देश दिया गया है।
स्कूली शिक्षा कैसे बदल गई है?
दरअसल, 2017 में बनी योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार एनसीईआरटी आधारित पाठ्यक्रम को बढ़ावा दे रही है। सरकार ने स्कूलों के नवीनीकरण पर विशेष जोर दिया है। पिछले साल तक 1,275 स्कूलों में कंप्यूटर लगाए जा चुके थे। 7,442 संस्थानों में बुक बैंक स्थापित किये गये। इसके अलावा, वैज्ञानिक और गणितीय किट भी व्यापक रूप से वितरित किए गए।
2004 से पहले कैसी थी स्कूल व्यवस्था?
यूपी में सदियों से स्कूल समितियों की देखरेख में धार्मिक शिक्षा प्रदान करते हुए सक्रिय रहे हैं। 1995 तक ये स्कूल शिक्षा मंत्रालय की देखरेख में थे। इसके बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सभी स्कूलों का प्रबंधन अल्पसंख्यक कल्याण विभाग को सौंप दिया।
इलाहाबाद HC ने कानून क्यों रद्द किया?
यूपी मदरसा शिक्षा कानून को दो मुख्य आधारों पर असंवैधानिक घोषित किया गया था। सबसे पहले, यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है। इस निर्णय तक पहुंचने में, अदालत ने याचिकाकर्ता के इस तर्क को ध्यान में रखा कि मदरसा अधिनियम का डिज़ाइन और उद्देश्य केवल इस्लाम, उसके उपदेशों, निर्देशों और दर्शन के क्षेत्र में शिक्षा को बढ़ावा देना है। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले को इस तर्क पर आधारित किया कि मदरसा बोर्ड के पास डिग्री प्रदान करने की शक्ति है, जो यूजीसी का दायरा है।
मदरसा शिक्षा पर प्रभाव
इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस आदेश से यूपी के 13,329 पंजीकृत मदरसों में पढ़ने वाले 15.75 मिलियन छात्र प्रभावित होंगे। बोर्ड के मुताबिक, मदरसे से 33,689 शिक्षक जुड़े हैं, जिनमें से 9,646 सरकारी वित्त पोषित हैं। राज्य में मदरसों में 13,239 गैर-शिक्षण कर्मचारी कार्यरत हैं।
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