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बीजेपी के लिए कितनी अहम साबित हुई योगी की सत्ता

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विगत 19 फरवरी को सूबे की राजधानी लखनऊ में ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी का आयोजन हुआ था। इस कार्यक्रम में पीएम मोदी ने भी शिरकत की थी। इस दौरान उन्होंने कहा था कि “हर भारतीय को गर्व महसूस होता है जब हम सुनते हैं कि यूपी ने एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का फैसला किया है। उन्होंने आगे कहा कि  ‘मैं देश के सभी राज्यों से अपील करूंगा कि राजनीति अपनी जगह छोड़िए, जरा यूपी से सीखिए।’  योगी की नीति और उत्तर प्रदेश की प्रगति पर प्रधानमंत्री नरेंद्र  मोदी की ये टिप्पणी सियासी एजेंडे में प्रदेश की अहमियत को बखूबी दर्शाती है। बता दें कि बीजेपी इस समय नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सत्ता की हैट्रिक लगाने की कवायद में जुटी है। वहीं ये वह समय है जब योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में बीजेपी की सरकार ने प्रदेश में सात साल पूरे किए हैं। योगी की ये ‘सत्ता’ भाजपा की सियासी बिसात के लिए बेहद अहम भी साबित हुई है।

काम में बाधा नहीं बन पाई अनुभव की कमी 

उल्लेखनीय है कि साल 2017 में जब मोदी और शाह ने योगी को चुना था, तब  राजनीतिक विश्लेषकों को आश्चर्य हुआ था। वहीं पार्टी के भितरखाने में भी संदेह और चिंताएं बढ़ गई थी। योगी को उत्तर प्रदेश की बागडोर सौंपने  के  दो साल बाद खुद अमित शाह ने जवाब दिया, ”लोगों ने मुझसे पूछा कि हम इतना बड़ा प्रदेश उन्हें क्यों सौंप रहे हैं’ लेकिन पीएम मोदी और मैंने उन्हें यूपी का सीएम बनाने का फैसला कर लिया था क्योंकि वे एक मेहनती और कर्मठ कार्यकर्ता हैं। उन्होंने अपने अनुभव की कमी को कभी भी अपने कार्य में बाधा नहीं बनने दिया। वे हमेशा से कड़ी मेहनत करते रहे हैं।’ इसके बाद 2022 में योगी आदित्यनाथ ने सीएम के चेहरे के रूप में चुनाव लड़ा और दो-तिहाई बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की। उनका इस तरह से सत्ता में आना कुशल नेतृत्व और लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने का संकेत माना गया। बीते सात वर्षों में यूपी सरकार के खाते  में सैकड़ों उपलब्धियों के साथ ही ढेरों सवाल भी आए, लेकिन जनादेश के मोर्चे पर पंचायत से संसद तक पार्टी को सिर्फ सफलता ही मिली है, जिससे सवालों की धार कमजोर ही रही।

पीएम की उम्मीदों को बखूबी पूरा किया 

पीएम मोदी और अमित शाह को इस बात का इल्म अच्छे से है कि यूपी सियासत की अंगद है। अगर खुद को लंबे समय तक सत्ता में स्थापित करना है तो उत्तर भारत की राजनीति में खुद को मजबूती के साथ स्थापित करना बेहद अहम है, ऐसे में जातीय गणित की काट निकालनी होगी। वहीं विगत एक दशक में प्रधानमंत्री मोदी ने गरीबों और जरूरतमंदों के लिए योजनाओं का एक ऐसा गुलदस्ता तैयार किया, जिसने सभी को आकर्षित किया और बीजेपी पर लोगों का भरोसा बढ़ा। इनमें से उज्ज्वला योजना, पीएम आवास योजना, पीएम कृषि सिंचाई योजना और किसान सम्मान निधि सहित कई प्रमुख परियोजनाएं उत्तर प्रदेश की धरती पर भी उतारी गईं। पीएम मोदी की इन उम्मीदों को योगी ने सात साल में बखूबी पूरा किया है। बीजेपी ने 2019 में यूपी में एसपी-बीएसपी गठबंधन को बेअसर कर दिया। वहीं अब 2024 के चुनाव अभियान में सरकारी योजनाओं के लाभार्थी बीजेपी का मुख्य हथियार हैं, जिसे  विकसित भारत यात्रा और लाभार्थी संपर्क यात्रा जैसे कार्यक्रमों का आयोजन कर धार दी गई।

हर अपेक्षा को परिणाम में बदला

अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाकर बीजेपी ने कोर हिन्दुत्व के एजेंडे को भी साध लिया है। भगवा  वस्त्र पहने योगी ने जब प्रदेश की बागडोर संभाली थी तब भी बीजेपी के हिन्दुत्व के एजेंडे को विस्तार मिला था। सात साल में योगी ने इससे जुड़ी हर अपेक्षा को परिणाम में बदला। राम मंदिर का फैसला आने से पहले ही अयोध्या में दीपोत्सव के जरिए योगी ने ‘ राममय ‘ परिवेश तैयार करने की जबरदस्त कवायद की थी। कांवड़ियों पर पुष्प वर्षा जैसे आयोजनों ने आस्था को सहजता का रंग दे दिया। काशी में विश्वनाथ कॉरिडोर हो या मथुरा में ब्रज तीर्थ विकास परिषद सभी आस्था केंद्रों को विकास की योजनाओं से जोड़कर यूपी में पर्यटन का एक नया मानचित्र उभर तैयार किया, जो इसे शिव, राम, कृष्ण, बुद्ध की धरती की पहचान से जोड़ते हैं। काशी से अयोध्या तक मोदी की उपस्थिति व श्रद्धानवत तस्वीरों ने ‘हिंदू गौरव’ के स्वर को और मुखर कर दिया। भाजपा अपने हर चुनाव मंच से इसे प्रखर बनाने में जुटी हुई है ताकि आस्था का सियासी ‘प्रसाद’ वह एक बार से चख सके। वहीं विपक्ष इसे बहुसंख्यक तुष्टिकरण पर अल्पसंख्यकों की उपेक्षा का राग अलाप रहा है। जवाब में सरकार आंकड़े रख रही है कि प्रदेश में अल्पसंख्यकों की आबादी 20 फीसदी है और लाभार्थीपरक योजना में भागीदारी लगभग 36% हैं।

मोदी-शाह के बाद योगी बने लोगों की पसंद

27 फरवरी 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्तार अंसारी के गढ़ मऊ में सुभासपा के चुनाव चिन्ह का जिक्र करते हुए कहा था, ”यह लाठी नहीं बल्कि कानून का डंडा है, इसकी ताकत 11 मार्च को दिखाई देगी”। विगत सात वर्षों में योगी ने इस ताकत का जमकर इस्तेमाल किया और प्रदेश के कई बाहुबलियों को सत्ता से किनारे कर सलाखों के पीछे पहुंचाया। अतीक अहमद से लेकर मुख्तार अंसारी तक कई बड़े माफिया बाहुबली जो लंबे समय से कानून के शिकंजे में नहीं आ रहे थे, उन पर शिकंजा कस कर उन्हें  जेल भिजवाया। योगी के बुलडोजर और एनकाउंटर  मॉडल ने ऐसी सुर्खियां बटोरीं कि देश के कई अन्य राज्यों ने भी इसे अपनाया। काम और उनके एक्शन पैटर्न ने योगी को मोदी और शाह के बाद पार्टी का स्टार प्रचारक बना दिया। यूपी के मुलायम सिंह यादव और मायावती सीएम पद पर रहते हुए अक्सर चुनाव प्रचार के लिए दूसरे राज्यों में जाते थे, लेकिन वह अपनी पार्टी के मुखिया थे। बीजेपी शासित राज्यों के नेता के तौर पर योगी ने मोदी और शाह के बाद सबसे ज्यादा जनसभाएं  दूसरे राज्यों में की। अब लोकसभा चुनाव आ चुका है, तो एक बार फिर से योगी की मांग तेज हो गई है।

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