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लोकसभा चुनाव 2024 : कितनी कायम रहेगी यादव समाज की एकजुटता?

Akhilesh Yadav
समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद पहला लोकसभा चुनाव होने जा रहा है। उनके  समय के कई दिग्गज नेता अब इस दुनिया में नहीं हैं और जो हैं भी उनमें से कई पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं। वहीं यादवों का भी एक बड़ा वर्ग पार्टी की लगातार हार से बेचैन है और वह अपने लिए नया ठिकाना तलाशने में जुटा है। उधर बीजेपी यादव वोट बैंक पर पूरी तरह से नजर गड़ाए बैठी है। वह उन्हें अपने खेमे में लाने की हर जुगत भिड़ा रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि इस बार के चुनाव में यादव वोटरों का रुझान किस तरफ होगा…

उत्तर प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में यादव वोट बैंक पर  नजर डाले तो ये पहले कांग्रेस और फिर जन संघ के साथ रहा। फिर आया चौधरी चरण सिंह का दौर तो ये वर्ग उनके साथ हो चला। इसके बाद यादव वर्ग का झुकाव मुलायम सिंह यादव की तरफ हुआ और फिर उन्हीं का होकर रह गया। सियासी अखाड़े में खुद को मजबूती से खड़ा करने के लिए मुलायम सिंह यादव ने हर विधानसभा क्षेत्र में अपने वोट बैंक के आधार पर एक बड़ा नेता तैयार किया। आधार वोटबैंक को सहेजने के साथ ही उन्होंने अन्य प्रयोग भी करने शुरू किए। पहले उन्होंने मुस्लिमों को पार्टी से जोड़ा और एमवाई यानी मुस्लिम- यादव के गठजोड़ से सियासत चमकाई। सपा संस्थापक यहीं पर नहीं रुके। उन्होंने अन्य पिछड़ी जातियों की गोलबंदी भी तेज करनी शुरू कर दी, लेकिन सामान्य वर्ग के नेताओं को नजरअंदाज नहीं किया। अपनी इसी रणनीति की बदौलत वे या तो सत्ता में बने रहे या फिर मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाई।

यादव वोट बैंक को साधने की जुटी बीजेपी

वर्ष 2001 की सामाजिक न्याय समिति की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में पिछड़े वर्ग के बीच यादव आबादी करीब 19.40 फीसदी है और इनकी एकजुटता सत्ता के समीकरणों को साधने में अहम भूमिका निभाती है, लेकिन अब जो चुनावी नतीजे सामने या रहे हैं वे ये बताते हैं कि  हालत बदल गए हैं। 2019 में हुए  लोकसभा चुनाव के बाद 10 अक्टूबर 2022 को मुलायम सिंह यादव का निधन हो गया। इसके बाद बीजेपी ने यादव  वोट बैंक को साधने के लिए   मुलायम सिंह को पद्म विभूषण से सम्मानित किया। इसके बाद बीते साल एमपी में हुए विधानसभा चुनाव के बाद   मोहन यादव को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया। मोहन यादव अब तक तीन बार उत्तर प्रदेश का दौरा कर चुके हैं। अपनी इन यात्राओं के दौरान उन्होंने खुद को आजमगढ़ का निवासी बताया। और तो और वे पड़ोसी जिले सुल्तानपुर को अपनी ससुराल बताना भी नहीं भूले।   विगत चार मार्च को जब वे अयोध्या आए तो उन्होंने कहा कि सैफई परिवार पूरे यादव समुदाय का शोषण कर रहा है।

यादव समाज के बदल रहे विचार

बीजेपी अच्छी तरह से जानती है कि वह यादव वोट बैंक में सेंध लगाकर ही 50 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल कर सकती है। यही वजह है कि वह इस वर्ग को भगवा खेमे में लाने की पुरजोर कोशिश कर रही है। वहीं दूसरी तरफ यादव समाज भी अब सपा में बंधकर नहीं रहना चाहता। इसकी एक झलक फर्रुखाबाद जिले के मोहम्मदाबाद क्षेत्र मे देखने को मिल रही है।  ये क्षेत्र यादवों का गढ़ है। दो पीढ़ियों से सपा की राजनीति कर रहे पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह यादव अब भाजपा में हैं। इसी क्षेत्र के व्यवसायी राजेश यादव कहते हैं कि नेताजी का हमारे ऊपर एहसान है लेकिन अब वे नहीं रहे तो जहां हमें फायदा मिलेगा हम वहां  जाएंगे। कुछ ऐसी ही बात कन्नौज के केपी यादव ने भी कही।  उन्होंने कहा कि हमने हमेशा सपा का झंडा उठाया है, लेकिन अब विचार बदल रहे हैं। विचार बदलने की बात करने वाले केवल मध्य यूपी से ही नहीं हैं बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी यही हालत देखने को मिल रहे हैं। 

दी फाड़ हो चुकी है यादव महासभा

अखिल भारतीय यादव महासभा दशकों तक मुलायम सिंह यादव के साथ रही लेकिन उनके निधन के बाद अब इसके फूट पड़ गई है। एक गुट सपा के साथ है तो दूसरा खेमा बीजेपी के साथ आ गया है। फरवरी में, महासभा के मौजूदा अध्यक्ष अरुण यादव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की और अहीर समाज की मांगों का समर्थन किया।

यादव बहुल प्रमुख लोकसभा सीटें

  • प्रदेश के 12 जिलों में यादवों की आबादी 20 फीसदी से अधिक मानी जाती है। आजमगढ़, देवरिया, गोरखपुर, बलिया, गाजीपुर, वाराणसी, जौनपुर, बदायूं, मैनपुरी, एटा, इटावा, कन्नौज और फर्रुखाबाद में यादव मतदाताओं का दबदबा है। वहीं 10 जिलों में करीब 15 फीसदी आबादी है।
  • सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डवलपिंग सोसाइटीज की एक चुनावी अध्ययन रिपोर्ट बताती है कि 2022 के विधानसभा चुनावों में 83 फीसदी यादवों ने सपा को वोट दिया। लोकनीति-सीएसडीएस की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में 60 फीसदी यादवों ने सपा-बसपा को और 23 फीसदी ने भाजपा को, पांच फीसदी ने कांग्रेस को वोट दिया था। इस बार भाजपा करीब 30 से 35 फीसदी यादवों का वोट हासिल करने का लक्ष्य बनाकर कार्य कर रही है।

 कब हुई प्रदेश में यादव राजनीति की शुरुआत 

उत्तर प्रदेश की राजनीति में यादव समुदाय से आने वाले रघुवीर सिंह यादव 1952 में कांग्रेस के टिकट पर आगरा पूर्व से सांसद चुने गए थे। फिर 1957 में रामसेवक यादव सोशलिस्ट पार्टी से बाराबंकी से सांसद बने। इसके बाद  रामनरेश यादव और मुलायम सिंह यादव ने राजनीति में कदम रखा और जब 1967 में प्रदेश में गैर कांग्रेसी सरकार बनी तो मुलायम सिंह कैबिनेट मंत्री बने। 1977 में रामनरेश यादव, यादव समाज से राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने। मंडल आंदोलन के दौरान मुलायम सिंह उभरे और 1989 में जनता दल से सीएम बने। इसके बाद यादव वोटों की बदौलत वे  तीन बार और उनके बेटे अखिलेश यादव एक बार मुख्यमंत्री बने लेकिन अब हालात ये हैं कि मुलायम सिंह यादव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहने वाले पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह यादव, पूर्व सांसद सुखराम सिंह यादव, पूर्व देवेंद्र सिंह यादव, पूर्व चेयरमैन रमेश यादव और पूर्व सांसद हरिओम यादव भगवा रंग में रंग गए हैं। अब इन सभी ने बीजेपी का दमन थाम लिया है।

अखिल भारतीय यादव महासभा के महासचिव प्रमोद चौधरी बोले  

अखिल भारतीय यादव महासभा के महासचिव प्रमोद चौधरी का कहना है कि सपा नेतृत्व को समझना होगा कि उसकी रीढ़ यादव का वोट बैंक है। अगर इस वोट बैंक ने पार्टी से किनारा किया तो अन्य जातियों का झुकाव भी पार्टी की तरफ से कम हो जाएगा। उन्होंने कहा, यादव वोट बैंक को मजबूत करने की कोशिश की जानी चाहिए, जो नहीं हो रही है। यही वजह है कि इस वर्ग में बेचैनी बढ़ रही है।

 अधिवक्ता व सामाजिक कार्यकर्ता महेंद्र सिंह यादव की प्रतिक्रिया 

वरिष्ठ अधिवक्ता व सामाजिक कार्यकर्ता महेंद्र सिंह यादव कहते हैं कि मुलायम सिंह यादव, यादव समाज को खुलकर सम्मान देते थे। यही कारण था कि यादव वोटबैंक बराबर उनके साथ था, लेकिन अब सपा की सोच बदल चुकी है। अव वह यादव समाज के हक और सम्मान की बात नहीं कर रही है। यादव परिवार के लंबे समय से सत्ता से बाहर रहने से इस वर्ग मे बेचैनी है और वे दूसरा ठिकाना तलाशने में जुटे हैं।

अखिल भारतीय यादव महासभा के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष अरुण बोले

अखिल भारतीय यादव महासभा के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष अरुण यादव कहते हैं कि इस चुनाव में प्रधानमंत्री पद के लिए कोई यादव उम्मीदवार नहीं है।  ऐसे में यादव समुदाय के लोग सबसे पहले अपने समुदाय के जीतने वाले उम्मीदवार को वोट देंगे। अगर कोई सजातीय उम्मीदवार नहीं है तो वोट उसी को दिया जाएगा जो समाज की भावनाओं का सम्मान करेगा।

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