लखनऊ। माफिया मुख्तार अंसारी अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके संदिग्ध लेन-देन के किस्से हमेशा सुर्खियों में रहेंगे। मुख्तार अंसारी की 28 मार्च को बांदा जेल में सजा काटते समय मौत हो गई थी। लखनऊ के कद्दावर नेता अजीत सिंह और मुख्तार अंसारी के बीच लड़ाई से जुड़ी एक बेहद मशहूर घटना है। कहा जाता है कि यह विवाद इतना बढ़ गया कि तत्कालीन कैबिनेट मंत्री रघुराज प्रताप सिंह (राजा भैया) को पंचायत बुलाकर बीच-बचाव करना पड़ा। इस पंचायत में यूपी के तमाम माफिया मौजूद थे। राजा भैया के पंचायत कार्यालय में हुई बैठक में मुख्तार अंसारी, अजीत सिंह, धनंजय सिंह, सोनू और मोनू के अलावा अतीक अहमद और हरिशंकर तिवारी के गिरोह के सदस्य भी शामिल हुए थे। यूपी के सियासी गलियारों में इस ‘डॉन पंचायत’ की खूब चर्चा हुई थी।
उस दौरान की क्राइम रिपोर्टिंग करने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार ने एक बातचीत में मुख्तार अंसारी और अजीत सिंह की अदावत पर विस्तार से बात की। उन्होंने बताया कि पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब मुख्तार अंसारी ने अपनी पत्नी अफशां अंसारी के नाम पर लखनऊ के कृष्णानगर में जमीन खरीदी। वह उस जमीन पर घर बनाना चाहता था, लेकिन लखनऊ के नेता अजित सिंह ने इसका विरोध किया। अजीत ने मुख्तार से कहा कि घर मऊ या ग़ाज़ीपुर में बनना चाहिए, लेकिन लखनऊ में नहीं।
वह बताते हैं कि अजित सिंह ने कहा कि विधायक के तौर पर मुख्तार अंसारी के पास लखनऊ में सरकारी आवास है, तो फिर उन्हें अलग घर बनाने की क्या जरूरत है? अजित ने साफ कहा है कि लखनऊ में मुख्तार अंसारी की हुकूमत बिल्कुल नहीं चलेगी। उधर, मुख्तार अंसारी लखनऊ में घर बनाने पर अड़े रहे। दोनों बाहुबलियों के बीच विवाद और ज्यादा बढ़ गया। मामला तूल पकड़ता देख प्रतापगढ़ के कुंडा जिले के बाहुबली विधायक राजा भैया ने दोनों माफियाओं के बीच मध्यस्थता की भूमिका निभाई और पंचायत कराई। उस वक्त राजा भैया तत्कालीन सरकार में कैबिनेट मंत्री थे।
पत्रकार ने बताया कि ‘डॉन पंचायत’ में राजा भैया ने कहा था कि अगर सभी बाहुबली लड़ेंगे तो सबका अस्तित्व खत्म हो जाएगा। सभी बाहुबली अपने-अपने दायरे तक ही सीमित रहें, जिस क्षेत्र में टेंडर हो रहा हो, वहां के माफिया को प्राथमिकता दी जाए, चाहे वह पीडब्ल्यूडी का हो, राजकीय निर्माण निगम का हो या फिर सिंचाई विभाग का हो। उदाहरण के तौर पर अगर गोरखपुर के लिए कोई ऑफर आता है तो हरिशंकर तिवारी को प्राथमिकता दी जाएगी। अगर फैजाबाद से टेंडर निकलता है तो अभय सिंह को मिलना चाहिए। अगर लखनऊ में कोई टेंडर आता है तो अजित सिंह उस पर निर्णय लेंगे। यदि वह नहीं ले रहे हैं तो कोई भी डाल सकता है, लेकिन सबसे पहले वे ही रहेंगे।
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