सहारनपुर। देवबंद स्थित इस्लामिक इदारा दारुल उलूम यूं तो मजहबी तालीम और विश्व में देवबंदी विचारधारा के लिए जाना जाता है, लेकिन राजनीति और राजनीति से जुड़े लोगों का यहां से पुराना नाता रहा है। एक या दो बार नहीं, बल्कि ऐसा कई बार हुआ जब राजनीतिक दलों के धुरंधरों ने दारुल उलूम पहुंचकर अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने की कोशिश की है लेकिन एक घटनाक्रम ने कुछ ऐसा माहौल बना दिया कि अब दारुल उलूम को हर बार चुनाव से पहले एक बार एक बयान जरूर जारी करना पड़ता है कि जिसमें लिखा होता है यहां पर राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है।
दरअसल, साल 2009 में एक पार्टी के बड़े नेता दारुल उलूम पहुंचे थे। उन्होंने वहां के तत्कालीन कुलपति मौलाना मरगूबुर्रहमान का हाथ पकड़कर अपने सिर पर रख लिया था और इसकी फोटो भी खिंचवा ली थी। इस तस्वीर का इस्तेमाल उन्होंने चुनाव प्रचार में इस तरीके से किया, जैसे दारुल उलूम ने उन्हें अपना समर्थन दे दिया हो। यह मामला उस समय काफी चर्चित रहा था।
1866 में हुई थी दारुल उलूम की स्थापना
बता दें कि दारुल उलूम देवबंद की स्थापना 30 मई 1866 हाजी सैयद मोहम्मद आबिद हुसैन, फजलुर्रहमान उस्मानी और मौलाना क़ासिम नानौतवी ने की थी। दारुल उलूम देवबंद के पहले उस्ताद यानी शिक्षक महमूद देवबंदी और पहले छात्र महमूद हसन देवबंदी थे। मौजूदा समय में देश के कोने-कोने से करीब साढ़े चार हजार छात्र यहां इस्लामी तालीम हासिल करते हैं। देश के हर मुसलमान का दारुल उलूम के साथ भावनात्मक जुड़ाव है। दारुल उलूम की तरफ से कोई फतवा जारी किया जाता है तो हर मुस्लिम उसका पालन करता है। नेता भी इसी सोच के साथ दारुल उलूम के दरवाजे पहुंचते हैं कि उन्हें एक समुदाय का समर्थन मिल सके।
कब-कब पहुंचे राजनेता
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2009 में मुलायम सिंह यादव यहां पर आए थे
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2006 में राहुल गांधी भी दारुल उलूम में पहुंचे थे
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2011 में अखिलेश यादव भी यहां आए
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इसके अलावा मौलाना अबुल कलाम आजाद, फारुख अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी दारुल उलूम का दौरा कर चुके हैं।
तीन बार राज्यसभा सांसद रह चुके हैं मौलाना असद मदनी
दारुल उलूम देवबंद भले ही अपनी जमीन से राजनीतिक गतिविधियों की इजाजत नहीं देता है, लेकिन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी के पिता मौलाना असद मदनी कांग्रेस पार्टी से तीन बार राज्यसभा सांसद रह चुके थे। वे समाजवादी पार्टी से 2006 से 2012 तक राज्यसभा सांसद रहे थे।
अशरफ उस्मानी, उप प्रभारी तंजीम-ओ-तरक्की विभाग दारुल उलूम कहते हैं कि संस्था दीनी इदारा है। इसका राजनीति से कोई वास्ता नहीं है। यही वजह है कि संस्था के जिम्मेदारों ने चुनाव के समय दारुल उलूम में नेताओं की एंट्री बैन कर दी है। अगर कोई नेता यहां आता भी है तो संस्था को कोई जिम्मेदार उनसे मुलाकात नहीं करेगा।
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