यूपी की प्रमुख विपक्षी पार्टी सपा इन दिनों अपने ही नेताओं की गुटबाजी में उलझ कर रह गई है। एक को खुश करने के चक्कर में उसे दूसरे की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। उसे बार-बार टिकट बदलने पड़ रहे हैं, जिसका परिणाम उसे चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। सपा अब तक पहले चार चरणों की कुल सात सीटों पर प्रत्याशी बदल जा चुकी है। इसमें गौतमबुद्धनगर, मिश्रिख और मेरठ ऐसे जिले हैं जहां पर उसने दो-दो बार उम्मीदवार बदले हैं।
बीजेपी से दो-दो हाथ करने के चक्कर में समाजवादी पार्टी पूरी तरह से उलझ चुकी है। यही वजह है कि वह बार-बार प्रत्याशी बदल रही है। 30 जनवरी को जारी अपनी पहली सूची में सपा ने बदायूं से धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा था। लेकिन फिर उसने 20 फरवरी को धर्मेंद्र का टिकट काट कर उस सीट से शिवपाल यादव को मैदान में उतार दिया। कहा जा रहा है कि शिवपाल यादव शुरुआत से ही यह चुनाव लड़ने के मूड में नहीं थे। यही वजह है कि टिकट घोषणा के एक पखवाड़े से ज्यादा समय तक वे चुनाव क्षेत्र में नहीं गए। ऐसे में उनके बेटे आदित्य यादव को टिकट देने का स्थानीय पार्टी कार्यकर्ताओं की ओर से प्रस्ताव आया है। इस प्रस्ताव के पीछे कौन है, ये जगजाहिर है।
डॉ. एसटी हसन ने जताई नाराजगी
मुरादाबाद सीट पर पहले तो उम्मीदवार उतारने में देरी हुई लेकिन जब 24 मार्च को सांसद डॉ. एसटी हसन को मैदान में उतार दिया गया और उन्होंने नामांकन भी कर दिया, तभी सपा ने इस सीट से भी प्रत्याशी बदल दिया। उसने डॉ. एसटी हसन का टिकट काट कर रुचि वीरा को दे दिया। कहा जाता है कि यह परिवर्तन आजम खां को खुश करने के लिए किया गया। इस फैसले का जहां मुरादाबाद में डॉ. एसटी हसन के समर्थकों ने विरोध किया, वहीं नाराज हसन ने भी कहा कि वे मुरादाबाद में पार्टी के लिए प्रचार नहीं करेंगे। इसी तरह से गौतमबुद्धनगर में पहले डॉ. महेंद्र नागर को टिकट दिया गया था लेकिन चार दिन बाद ही इस सीट से राहुल अवाना को मैदान में उतार दिया गया। बाद में एक बार फिर से डॉ. महेंद्र नागर को प्रत्याशी घोषित कर दिया गया। सपा के ही एक प्रमुख नेता का कहना है कि यह स्थिति बताती है कि टिकट वितरण से पहले ठीक से होमवर्क नहीं किया गया था। इसी तरह से मिश्रिख में पहले रामपाल राजवंशी, फिर उनके बेटे मनोज कुमार राजवंशी और फिर उनकी बहू संगीता राजवंशी को टिकट दिया गया।
अतुल प्रधान ने दी इस्तीफे की धमकी
इसी तरह से मेरठ भी सपा काफी समय तक असमंजस की स्थिति में रही। पार्टी ने मेरठ में 15 मार्च को भानु प्रताप सिंह को उम्मीदवार घोषित किया। इसके साथ ही उनका टिकट काटने की भी चर्चा राजनीतिक गलियारों में शुरू हो गई। 1 अप्रैल को यहां से विधायक अतुल प्रधान को टिकट देने का ऐलान कर दिया गया, लेकिन दूसरे चरण के नामांकन के अंतिम दिन यानी 4 अप्रैल को पूर्व मेयर सुनीता वर्मा को सिंबल दे दिया गया। इसके विरोध में पहले तो अतुल प्रधान ने इस्तीफा देने की धमकी दी, लेकिन बाद में उनका बयान आया जो राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का निर्णय है, हमें स्वीकार है। उन्होंने सोच-समझकर ही निर्णय लिया होगा।
सपा नेता बोले- पहले होमवक करे, फिर टिकट दे पार्टी
यही स्थिति बागपत में भी देखने को मिली। यहां 20 मार्च को सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष मनोज चौधरी को चुनावी मैदान में उतारा गया लेकिन नामांकन के अंतिम दिन टिकट बदलकर पूर्व विधायक अमर पाल शर्मा को दिया गया। बिजनौर में भी पूर्व सांसद यशवीर सिंह का टिकट काटकर दीपक सैनी को थमा दिया गया। सपा के ही एक नेता कहते हैं कि टिकट बदले जाने से आपस में विरोध शुरू हो गया है, जिसका सीधा असर चुनाव नतीजों पर पड़ सकता है। पार्टी को अगर अंदरूनी कलह से बचना है तो पूरा होमवर्क करने के बाद ही प्रत्याशी की मैदान मे उतरना चाहिए।
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