इस समय देश भर में सियासत का रंग चढ़ा हुआ है। चुनावी मौसम है, तो रंग तो चढ़ेगा ही और बदलेगा भी। कभी ये रंग तो कभी वो रंग। नेता ही नहीं जनता भी इस समय सियासी खुमार में है। वह भी चौक चौराहों पर बैठ कर पार्टियों और प्रत्याशियों की चर्चा में मशगूल है। उनके बड़े-बड़े सवाल हैं। सवालों पर भी सवाल हैं। बड़ी-बड़ी उम्मीदें हैं। लेकिन जब बात आती है वोट देने कि तो जाति-मजहब भी सामने आने लगता है। नए समीकरण बनने लगते हैं। विकास और मूलभूत जरूरतों पर धर्म और मजहब हावी होने लगते हैं। मुजफ्फरनगर के मतदाताओं का भी कुछ ऐसा ही हाल है।
मुजफ्फरनगर। गन्ना बेल्ट में शामिल पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मुजफ्फरनगर इन दिनों सियासी कड़ाही में उबल रहा है। यहां चुनावी चाशनी पकनी शुरू हो गई है। इसकी मिठास अपने हिस्से में समेटने के लिए तमाम पार्टियों के प्रत्याशियों में जोर आजमाइश शुरू हो चुकी है। कहा जा रहा है कि इस बार के चुनाव में इस सीट पर मुकाबला कड़ा है। चुनावी दंगल में नए राजनीतिक समीकरणों के पेच भी फंसे हुए हैं। जहां एक तरफ पुराने दिग्गजों का कड़ा इम्तिहान है। वहीं उनके चक्रव्यूह को तोड़ना नए सूरमाओं के लिए चुनौतीपूर्ण।
मुजफ्फरनगर जिले का बुढ़ाना कस्बा हमेशा ही गुलजार रहता है। यही वजह है कि हमने सबसे पहले यही दस्तक दी। यहां सजी एक चौपाल में जब हम पहुंचे और बात छेड़ी चुनाव की तो वहां मौजूद मांगेराम ने कहा- इस बार चुनाव आसान नहीं है। बहुजन समाज पार्टी ने यहां से दारा सिंह प्रजापति को मैदान में उतारा है। अगर बसपा कैडर के अलावा उन्हें अपने लोगों के वोट मिल गए तो वे सब पर भारी पड़ेंगे। वह अपनी बात पूरी कर पाते उससे पहले ही वहां मौजूद ब्रम्हा सिंह भौंह सिकोड़ते हुए बोल पड़े। यहां की चुनावी राह इतनी भी आसान नहीं है। देवीदास और पालेराम भी ब्रह्म सिंह की बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, यहां चुनावी मुकाबला तो सभी के बीच है लेकिन बसपा का उम्मीदवार इस बार जरा मजबूत लग रहा है।
वहीं मुस्लिम बहुल बुढ़ाना कस्बे के मुख्य बाजार में कुछ अलग ही माहौल देखने को मिल रहा है। यहां के महबूब अली अलग ही समीकरण पेश करते हुए नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि यहां मुकाबला भाजपा के डाॅ. संजीव बालियान और सपा के हरेंद्र मलिक के बीच ही है। बाकी सब बस चुनाव लड़ रहे हैं। कौन फायदे में दिख रहा, इस सवाल का जवाब देते हुए इरशाद कहते हैं बसपा उम्मीदवार दारा सिंह प्रजापति भाजपा का वोट काट रहे हैं, जिसका सीधा फायदा सपा को मिलेगा। अब बात करें जिले के शाहपुर कस्बे की तो यहां की जनता में भी चुनावी रंग देखने को मिल रहा है। यहां की जनता की मानें तो जिले में इस बार कडा मुकाबला है।
शाहपुर कस्बे में स्थित बस अड्डे पर मौजूद नवाब अली कहते हैं कि इस बार भाजपा और सपा में सीधा मुकाबला है। हालांकि पास में ही खड़े लेखराज, नवाब अली की बातों से इत्तफाक नहीं रखते। उनका मानना है कि बसपा को हल्के में नहीं लेना चाहिए। बसपा प्रत्याशी दारा सिंह की भी जिले में अच्छी पैठ है। इसके बाद आता है बसी कलां गांव। यहां ग्रामीणों का कहना है कि मुकाबला त्रिकोणीय है। लेकिन गांव के रोहताश इस बात से बिल्कुल भी इत्तेफाक नहीं रखते हैं। वह कहते हैं, कुछ भी हो इस बार भी यहां भाजपा ही जीतेगी। वहीं मनोज उनकी बात काटते हुए कहते हैं, इतना आसान भी नहीं। मुकाबला कड़ा होगा।
कानून-व्यवस्था सबसे बड़ा मुद्दा
2013 में हिन्दू-मुस्लिम दंगा झेल चुका मुजफ्फरनगर हमेशा से ही संवेदनशील रहा है। यहां जरा-जरा सी बात पर लोगों का मिजाज बदल जाता है। बावजूद इसके अब यहां का सबसे बड़ा मुद्दा कानून-व्यवस्था है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि कोई किसी को खाने को नहीं देता है। अगर कानून-व्यवस्था अच्छी है तो सब अच्छा है। इस समय इस जिले की कानून-व्यवस्था एकदम चाक-चौबंद है, जिसका फायदा भाजपा को मिल सकता है।
मुद्दे तो बहुत हैं, पर बदल गए समीकरण
वैसे तो इस जिले में मुद्दे बहुत हैं लेकिन भाजपा और रालोद के समीकरण का खासा असर देखने को मिल रहा है। इस जिले के लोग भी गन्ना मूल्य और छुट्टा पशुओं से लोग परेशान हैं, लेकिन जातीय समीकरण हावी है। शिशुपाल कहते हैं, यह गठबंधन दोनों के लिए हितकारी है। वहीं विजय बहादुर यादव की मानें तो यहां की बिगड़ रही हवा का रुख अब ठीक होता दिख रहा है।
डॉ. संजीव बालियान से नाराज हैं ठाकुर और गुर्जर
इस सीट से एक और खबर सामने आ रही है। कहा जा रहा है कि इस चुनाव में डॉ. संजीव बालियान के लिए थोड़ी चुनौती बढ़ी हुई है। लोगों में चर्चा है कि ठाकुर और गुर्जर उनसे कुछ मसलों पर नाराज हैं। ऐसे में मान-मनौवल का दौर चल रहा है। संजीव बलियान की तरफ से गिले-शिकवे दूर करने के लिए पूरी ताकत लगाई जा रही है। वहीं सपा और बसपा इस पर अपनी नजर टिकाए हुए हैं। गुर्जर, जाट, ठाकुर आदि वोटरों को साधने के लिए सभी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
एक भी मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में नहीं है
मुजफ्फरनगर में करीब छह लाख मुस्लिम आबादी है। बावजूद इसके किसी मुख्य दल ने मुस्लिम नेता को टिकट नहीं दिया है। निर्दलीय भी कोई मुस्लिम चुनाव मैदान में नहीं है। पिछले चुनाव में भी कुछ ऐसा हुआ था। यहां के चुनावी मिजाज की बात करें तो वर्ष 1967 में सीपीआई के टिकट पर लताफत अली खां ने जीत दर्ज की थी। उन्होंने कांग्रेस के ब्रह्म स्वरूप को हराया था। साल 1977 में लोकदल के सईद मुर्तजा ने जीत हासिल की थी और संसद पहुंचे थे। 1980 में जनता दल (एस) के गय्यूर अली खां और 1989 में कश्मीर से आए मुफ्ती मोहम्मद सईद ने जीत हासिल की थी। मुनव्वर राना और कादिर राना भी यहां से चुनाव जीत कर संसद तक का सफर तय कर चुके हैं।
ये नेता हैं मैदान में
डॉ. संजीव बालियान, भाजपा
दो बार यहां से चुनाव जीत चुके डॉ. संजीव बालियान इस बार भी चुनाव मैदान में हैं। पिछली बार उन्होंने रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह को हराया था। इस बार वे हैट्रिक लगाने के इरादे से मैदान में हैं।
हरेंद्र मलिक, सपा
सपा उम्मीदवार हरेन्द्र मालिक मुजफ्फरनगर के मैदान में तीसरी बार उतरे हैं। हालांकि वह इस सीट से एक बार भी चुनाव नहीं जीत सके हैं। उनकी नजर मुस्लिम वोटों पर है। साथ ही जाट व अन्य वर्गों में भी वे सेंध लगाने की कोशिश मे जुटे हैं।
दारा सिंह प्रजापति, बसपा
बसपा के टिकट से मुजफ्फरनगर से दारा सिंह प्रजापति मैदान में हैं। भाजपा व सपा के उम्मीदवारों के सामने खुद को स्थानीय साबित करने की चुनौती है। वहीं प्रजापति छिटके हुए बसपा के काडर वोटर को समेटने की क्षमता रखते हैं।
भकियू अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत की राय
यहां के चुनावी माहौल पर बात करते हुए भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत कहते हैं कि वैसे तो यहां मुद्दे तमाम हैं, पर अब मुद्दों पर चुनाव होते कहां हैं। बहरहाल लोग तो यही कह रहे हैं कि देश में एक बार फिर से भाजपा की सरकार बन रही है। पर, मेरा अनुमान है कि राह इतनी भी आसान नहीं है। सरकारों को अपने एजेंडे में किसानों को प्रमुखता से शामिल करना चाहिए। रही बात चुनावी समीकरण की तो वह बनते बिगड़ते रहते हैं, लेकिन जनता के बारे में सोचना सबका कर्तव्य है। मुजफ्फरनगर की बात करूं तो यहां तीनों उम्मीदवारों के बीच कड़ा मुकाबला होगा। अब ये देखना है कि ऊंट किस करवट बैठेगा।
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