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श्रावस्ती: कदों को तराशा पर नहीं बनने दिया किसी का गढ़

श्रावस्ती। हिमालय की तलहटी और सोहेलवा की खूबसूरत वादियों से घिरा बलरामपुर ( श्रावस्ती ) संसदीय सीट इतिहास बनाने के लिए जानी जाती है। 1952 से शुरू हुई सियासी सफर में 2009 में श्रावस्ती के नाम नई पहचान मिली लेकिन पुरानी रवायत कायम रखी । कद्दावरों को तराशने में तो आगे रही , लेकिन किसी व्यक्ति विशेष या फिर दल का गढ़ क्षेत्र बनने नहीं दिया । यहां के मतदाताओं ने सभी दलों को अवसर दिया । लेकिन क्षेत्र की अलग ही पहचान बनाए रखी , कोई खुलकर कभी नहीं कह सका कि यह क्षेत्र उनका या उसकी पार्टी का गढ़ है।

1957 में जनसंघ के पंडित अटल बिहारी वाजपेयी को सदन में पहली बार भेज कर जिले ने अपनी अलग पहचान पूरे देश में बनाई । यह चुनाव इसलिए भी खास था क्योंकि 1952 में कांग्रेस के बैरिस्टर हैदर हुसैन रिजवी ने शानदार जीत दर्ज कर दूसरी पारी के लिए कदम बढ़ाए थे। इस जीत से कांग्रेस का यह क्षेत्र गढ़ बना। इसी तरह 1962 के चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी को भी लगातार जितने नहीं दिया कांग्रेस की सुभद्रा जोशी को चुनकर बड़ा संदेश दिया । यह अलग बात रही कि 1967 में फिर अटल बिहारी वाजपेयी को जनता ने अवसर दिया । लेकिन 1971 में अटल बिहारी वाजपेयी को संघ ने ग्वालियर भेज दिया , उसके बाद कभी भी यहां से न अटल चुनाव लड़े और न ही सुभद्रा जोशी । 1971 में कांग्रेस के चंद्रभाल मणि त्रिपाठी को जीताकर जनसंघ को गढ़ होने का भ्रम भी तोड़ा गया। यह अलग बात रही की 1977 में भारतीय लोकदल व जनसंघ के संयुक्त उम्मीदवार नानाजी देशमुख को जीत देकर इतिहास में फिर अपना नाम बनाया । फिर 1980 व 1984 में कांग्रेस उम्मीदवारों को जीत दी लेकिन 1989 में निर्दलीय फसीउर्रहमान को जिताकर फिर पार्टियों के दबदबे की हवा निकाल दी ।

हर माहौल में बना रहा जिले का तेवर

बात राम लहर की करें तो भाजपा के सत्यदेव सिंह को 1991 में व 1996 में संसद चुना ,लेकिन जीत का सिलसिला आगे नहीं बढ़ सका। 1998 में सत्यदेव सिंह को भी पराजित कर सपा के रिजवान जहीर पर विश्वास जताया । 1999 में भाजपा के प्रत्याशी बदल कर कुशल तिवारी को मैदान में उतारा । इसके बाद भी रिजवान जहीर को ही जनता ने चुना । लेकिन 2004 में रिजवान को भी किनारे कर दिया और एक बार फिर भाजपा को मौका दिया।

साल 2008 में श्रावस्ती सीट बनी और 2009 में आम चुनाव हुए, इस बार 1977 में थमी कांग्रेस की जीत को 31 साल बाद मौका देते हुए विनय कुमार पांडेय को जिताया । 2014 में फिर 16 साल बाद भाजपा को मौका दिया और दददन मिश्र को संसद चुना ।

 

  • बलरामपुर संसदीय क्षेत्र की जनता ने बड़े- बड़ों को दिखाई वोट की ताकत

 

  • हर दल को दिया मौका व्यक्तित्व को दिया महत्व

 

  • 05 विधानसभा क्षेत्रों की 19,14,491 है कुल मतदाताओं की संख्या 

 

  •   बसपा को जिताकर कायम की बादशाहत

 

 

लोकसभा चुनाव में सबको अवसर देने की परंपरा कायम करते हुए जिले के मतदाताओं ने सभी दलों को ताक पर रखते हुए बसपा को मौका दिया ।साल 2019 में मंडल की चार सीटों में तीनों पर भाजपा प्रत्याशी जीते, लेकिन श्रावस्ती सीट से बसपा ने राम शिरोमणि वर्मा को जीतकर एक नया अध्याय लिखा । इस तरह संसदीय सीट ने अपने परिणामों से जहां लोगों का कद गढ़ा , वही अपनी एक अलग छवि भी बनाए रखी चुनाव में दल व व्यक्ति के बजाय अपनी बादशाहत कायम रखी जिसके सियासतदान आज भी कायल है।

 

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