गोंडा। चुनावी रंगत में राजनीतिक पार्टियों जमीन मजबूत करने में जुटी है । अविभाजित गोंडा जिले की बलरामपुर ( अब श्रावस्ती ) लोकसभा सीट कभी देश में चर्चा की केंद्र बिंदु रहती थी । जनसंघ और भाजपा के शिखर पुरुष रहे अटल बिहारी वाजपेयी और प्रख्यात समाजसेवी नानाजी देशमुख को पहली बार संसद तक पहुंचने वाली यह सीट किसी एक दल की विरासत नहीं बनी । यहां के मतदाताओं ने कई दिग्गजों के साथ ही अपनी महारानी लक्ष्मी कुंअरी को भी हरा दिया । चुनाव हारने के बाद महारानी और राजपरिवार ने राजनीति से ही किनारा कर लिया।
नेपाल की तलहटी में थारू ( आदिवासी ) मतदाताओं वाली बलरामपुर लोकसभा सीट ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है । ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान भी बलरामपुर में राज परिवार ने वर्चस्व बनाए रखा । आजादी के बाद गोंडा नॉर्थ के नाम से बनी बलरामपुर क्षेत्र की राजनीति तबके राजनीतिक धुरंधर पंडित जवाहरलाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी से संचालित होती रही है । साल 2009 में बलरामपुर को समाप्त कर श्रावस्ती के नाम से नए क्षेत्र का गठन हुआ, जिसमें बलरामपुर, गैसेंडी और तुलसीपुर के अलावा श्रावस्ती जिले की भिगना और इकौना विधानसभा क्षेत्र को शामिल किया गया।
नानाजी बने सांसद
बलरामपुर लोकसभा सीट पर तीन बार महिला प्रत्याशी मैदान में उतरी। हालांकि जीत सिर्फ एक को ही मिली । 1962 में कांग्रेस से सुभद्रा जोशी इस सीट की पहली महिला सांसद निर्वाचित हुई , जबकि 1977 में कांग्रेस के सिंबल पर पहली बार राजनीति में किस्मत चमकाने बलरामपुर के महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह की पत्नी महारानी लक्ष्मी कुंअरी चुनाव मैदान में उतरी तो उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा । आपातकाल से कांग्रेस के विरोध से उपजी लहर के चलते जनता पार्टी के प्रत्याशी नानाजी देशमुख ने बलरामपुर की महारानी को 1 लाख 16 हजार मतों से पराजित कर दिया । करारी हार का परिणाम रहा की महारानी कई दिनों तक एकांतवास में चली गई और उनका राजनीति से मोह भंग हो गया । दोबारा महारानी या राजपरिवार के किसी सदस्य ने राजनीति का रुख नहीं किया ।
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