चुनावी सीजन शुरू हो चुका है, तो कुछ लोगों की कमाई का सीजन भी शुरू हो चुका है। वहीं मनरेगा मजदूरों के लिए भी ये मुफीद साबित हो रहा है। उन्हें भी भरी दोपहरी में दिहाड़ी करने की बजाय नेताओं के लिए प्रचार करना ज्यादा रास आ रहा है। जी हां मनरेगा मजदूरों की एक खेप विभिन्न दलों के कार्यकर्ताओं के रूप में दिहाड़ी कर रही है। ग्रामीण इलाकों में तो ठेकेदार सस्ते में इनकी सप्लाई भी कर रहे हैं। नेताओं के लिए नारेबाजी करने और उनके पक्ष में चुनाव प्रचार करने के बदले में श्रमिकों को 300 रूपए नकद और खाना पीना फ्री मिल रहा है जो दिहाड़ी मजदूरी से ज्यादा सुविधाजनक लग रहा है। रोजाना 300 रूपए नकद और खाना पीना फ्री के चक्कर में मनरेगा मजदूरों को कार्यकर्ता बनना रास आ रहा है। वहीं प्रत्याशियों को भी ये पैकेज करीब 40 फ़ीसदी तक सस्ता पड़ रहा है।
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300 रुपए नगद और खाना पीना फ्री के चक्कर में मनरेगा मजदूर बन रहे कार्यकर्ता
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40% तक सस्ता पड़ रहा मजदूरों से प्रचार कराना
उत्तर प्रदेश में मनरेगा मजदूरों को 337 रुपये दिहाड़ी दिए जाने का प्रावधान है। अप्रैल से पहले उन्हें 330 रुपये मिलती थे लेकिन अप्रैल में इसमें सात रुपये का इजाफा किया गया, लेकिन चुनावी सीजन शुरू होते ही मजदूरों की सहालग शुरू हो गई। उन्हें दिन भर कड़ी धूप में मेहनत करके 337 रुपये कमाने की बजाय 300 रुपये में नारेबाजी करना ज्यादा भा रहा है। इलाकाई नेताओं के लिए भी यह मजदूर मुफीद साबित हो रहे हैं क्योंकि दूसरे कार्यकर्ताओं के मुकाबले इन पर खर्च कम हो रहा है। दरअसल प्रत्याशियों का मानना है कि मनरेगा मजदूर भाव नहीं खाते और मेहनकश होने की वजह से इन्हें गर्मी भी ज्यादा परेशान नहीं करती।
उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात, मिश्रिख, इटावा, घाटमपुर, हमीरपुर, महोबा से लेकर सहारनपुर, मेरठ, गजरौला , उतरौला, सोनभद्र, बलरामपुर तक में विभिन्न राजनीतिक दलों के उम्मीदवार मनरेगा मजदूरों की सेवाएं ले रहे हैं। तीन प्रत्याशियों को प्रचार में सेवाएं देने वाली लखनऊ स्थित मैनपॉवर सप्लाई करने वाली एक कंपनी के एमडी बताते हैं कि गर्मी के चलते गली-गली में प्रचार करना पार्टी नेताओं के लिए चुनौती है। वैसे तो प्रत्याशियों और राजनीतिक दलों के पास कार्यकर्ताओं की लंबी चौड़ी फौज है, लेकिन झुलसाती गर्मी में वे गांव और गली में जाने से बचते हैं। ऐसे में मतदाता पर्ची, पंपलेट, दो टू डोर कैंपेन के लिए मनरेगा श्रमिकों को हायर किया जा रहा है।
पैकेज अच्छा है
मैनपॉवर सप्लाई करने वाली कंपनी के एमडी का कहना है कि मनरेगा श्रमिकों को पढ़ाई और स्मार्टफोन के हिसाब से पैकेज दिया जा रहा है। चुनाव प्रचार में लगे मजदूरों को प्रतिदिन के हिसाब से न्यूनतम 300 रूपए और अधिकतम 500 रुपए दिए जा रहे हैं। साथ ही सुबह नाश्ता, दिन और रात में खाना दिया जा रहा है। इसके अलावा दिन में तीन बार चाय और शाम को शराब की भी व्यवस्था की गई है। हर जिले में 10 गांव के लिए एक टीम तैयार की गई है, जिसमें 5 से 10 मजदूर हैं। आबादी के हिसाब से ये संख्या कम या ज्यादा भी की जाती है। वाहन वालों को पेट्रोल भत्ता भी दिया जाता है।
धूप में भी रहते हैं फील्ड में
नोएडा स्थित एक इलेक्शन मैनेजमेंट कंपनी के संस्थापक बताते हैं, मनरेगा मजदूरों को कार्यकर्ता बनाने का ट्रेंड सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं, बल्कि बिहार, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी खूब है। उनका कहना है कि मनरेगा मजदूरों में ‘नखरे’ कम होते हैं। साथ ही ये शारीरिक रूप से फिट और मेहनती होते हैं। इनमें गर्मी और लू के थपेड़े झेलने की क्षमता होती है। ये लोग भरी दोपहरी में भी गांव में प्रचार के लिए निकल जाते हैं।
कंपनी के फाउंडर का कहना है कि अकेले उन्होंने तीन राज्यों में एक राजनीतिक दल के लिए 4000 से ज्यादा मनरेगा श्रमिकों की सप्लाई की है। मजदूरों को एकत्र करने के लिए उन्होंने स्थानीय स्तर के गांव प्रधानों की मदद ली है और इसके एवज में उन्हें मोटी फीस दी गई।
लोकेशन भी करते हैं ट्रैक
कंपनी फाउंडर का कहना है कि कार्यकर्ताओं से ज्यादा नहीं कह-सुन सकते, लेकिन अनुबंधित मजदूरों के साथ प्रोफेशनल व्यवहार कर सकते हैं। वहीं जिन मजदूरों को चुनाव प्रचार में लगाया गया है और उन्हें इसके लिए पैसा दिया जा रहा है, उनकी लोकेशन भी ट्रैक की जा रही है और उनकी हर गतिविधि पर नजर रखी जा रही है। ये मनरेगा मजदूर किस गांव में और कितने घर में गए, इसकी निगरानी भी कंट्रोल रूम से हो जाती है। यह काम मैनेजमेंट कंपनी करती है। इसका फायदा यह है कि वास्तविक मूवमेंट और प्रचार का पूरा डाटा प्रत्याशी के पास मौजूद रहता है।
इसराइल जाने वाले कुशल कामगार भी कर रहे चुनाव प्रचार
खास बात ये है कि चुनाव प्रचार में सिर्फ मनरेगा मजदूर ही नहीं हैं बल्कि ऐसे कुशल कामगार भी हैं जिनका चयन इसराइल जाने के लिए हो गया है। इजराइल में इन कुशल कामगारों को 1.37 लाख रुपए महीना वेतन मिलेगा, लेकिन जब तक इजराइल जाने के लिए उनका नंबर नहीं आ रहा है वे और कोई कामकाज करने की बजाय चुनाव प्रचार करना बेहतर समझ रहे हैं। लखनऊ में मैनफफ पॉवर सप्लाई करने वाली कंपनी के अधिकारी ने बताया की राजधानी में ट्रेनिंग और परीक्षा के दौरान उन्होंने अधिकांश कामगारों का डाटा तैयार किया था। सेलेक्शन के बाद वे सब इजरायल जाने का इंतजार कर रहे हैं। यह कुशल कामगार काम में तेज है। इन्हें ज्यादातर शहरी क्षेत्र में लगाया गया है। वह कहते हैं ऐसे 250 कुशल कामगारों को उन्होंने चुनाव में लगवाया हैं।
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