देश में आम चुनाव का बिगुल बजने साथ ही राजनीतिक विश्लेषकों ने भी सियासी गणित बैठाने शुरू कर दिए हैं। इसी क्रम में उत्तर प्रदेश की सीतापुर सीट को लेकर भी अटकलों का बाजार गर्म है। कहा जा रहा है कि इस सीट से कमल खिलेगा या फिर पंजा, इस बात का फैसला हाथी करेगा। दरअसल इस सीट से कांग्रेस और भाजपा ने तो अपने-अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं लेकिन बसपा ने भी तक पत्ते नहीं खोले हैं। ऐसे में हर किसी की नजर अब बसपा पर है
सीतापुर। बता दें कि सीतापुर संसदीय सीट पर बसपा ने तीन बार जीत का परचम लहराया है। 2019 के चुनाव में बसपा यहां दूसरे नंबर पर थी लेकिन इस बार चुनावी बिसात बिछने के बाद भी बसपा अभी चुप्पी साधे हुए हैं। लिहाजा, सीतापुर लोकसभा की सियासी तस्वीर अभी पूरी तरह से साफ नहीं हो पा रही है।
सीतापुर सीट से बसपा ने 1989 में पहला चुनाव लड़ा। इसमें बसपा के टिकट पर सय्यद नासिर ने किस्मत आजमाई। पहले ही चुनाव में हाथी ने दमदार प्रदर्शन करते हुए 1,16,680 मतों के साथ तीसरा स्थान हासिल किया। इसके बाद 1991 के चुनाव में इस सीट से मैदान में उतरे बसपा के अजीज खान 35,670 मतों के साथ पांचवें नंबर पर रहे थे लेकिन 1996 के चुनाव में बसपा ने ताकत दिखाई और उसके टिकट से चुनाव मैदान में उतरे प्रेमनाथ 1,17,791 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे।
प्रेमनाथ ने 1998 में एक बार फिर बसपा के टिकट पर ताल ठोंकी और 1,88,954 मत पाकर रनर रहे। बसपा ने यहां 1999 में जीत का स्वाद चखा। बसपा के टिकट से इस साल चुनाव लड़े राजेश वर्मा ने एससी व पिछड़ा वर्ग के मतों के सहारे चुनाव नैया पार की और 2,11,120 वोट पा कर दिल्ली का सफर तय किया। 2004 के चुनाव में भी राजेश वर्मा इस सीट से विजयी रहे। 2009 के चुनाव में बसपा ने यहां से अपना प्रत्याशी बदल दिया लेकिन इस सीट पर उसका कब्जा बरकरार रहा। इस सीट से राजेश वर्मा की जगह कैसरजहां ने चुनाव लड़ा और मुस्लिम व एससी वोट बैंक के सहारे जीत दर्ज की। इस चुनाव में कैसरजहां को 2,41,106 मत मिले थे।
इसके बाद आया 2014 का आम चुनाव। इस चुनाव में भी बसपा के टिकट से कैसरजहां मैदान में थीं और उन्होंने 3,66,519 हासिल किए लेकिन इस बार उन्हें जीत नहीं मिली। वे दूसरे नंबर पर रही। 2019 में बसपा-सपा गठबंधन प्रत्याशी के तौर पर नकुल दुबे मैदान में उतरे। वह 4,13,695 मतों के साथ दूसरे नंबर पर रहे, लेकिन इस बार यानी 2024 का चुनाव बसपा अकेले लड़ रही है। 2014 में राजेश वर्मा ने बीजेपी का दमन थाम लिया था। अब भाजपा ने इस सीट से उन पर दांव खेला है। कांग्रेस-सपा गठबंधन ने नकुल दुबे का टिकट काटकर पूर्व विधायक राकेश राठौर पर दांव लगाया है। बसपा ने अभी इस सीट से किसी को मैदान में नहीं उतारा है। ऐसे में फिलहाल समीकरण उलझे नजर आ रहे हैं। राजनीति के जानकारों का मानना है कि यहां के चुनावी समीकरण काफी हद तक हाथी की चाल पर निर्भर हैं।
डेढ़ दशक से इस सीट पर है बसपा का कब्जा
सीतापुर लोकसभा क्षेत्र में लगभग 28.1 फीसदी एससी-एसटी वोटर हैं। यह वर्ग आमतौर पर बसपा का कैडर वोट बैंक माना जाता है। इसके अलावा करीब 23 फीसदी सामान्य, 27.9 फीसदी पिछड़ा वर्ग एवं 21 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। बीते करीब डेढ़ दशक तक सीतापुर सीट बसपा पर बसपा का कब्जा रहा है। इस सीट से बसपा के टिकट पर पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति के सहारे लगातार दो बार राजेश वर्मा तो एक बार मुस्लिम व एससी की जुगलबंदी से कैसरजहां ने जीत दर्ज की। यानी पिछड़ा वर्ग अथवा मुस्लिम प्रत्याशी बसपा के तुरुप का इक्का है। इस लिहाज से बसपा का दांव नए चुनावी समीकरण बना सकता है।
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