रायरबेली। कांग्रेस के अभेद्य किले पर 1998 के बाद से लगातार भगवा लहराने की कोशिश में जुटी बीजेपी लोकसभा के रण में नए प्लान के साथ उतरने जा रही है। कांग्रेस के राजनीतिक समीकरणों की प्रयोगशाला में भाजपा अब पासी-ब्राह्मण वोटरों को साधने की योजना बना चुकी है। इसके लिए भाजपा की कोर कमेटी और सेंट्रल थिंक टैंक पिछले पांच साल से लगा हुआ है। रणनीतिकार इसे अमोघ मान रहे हैं। बताया जा रहा है कि इसकी पहल 2019 के लोकसभा चुनाव में ही हो गई थी।
ब्रह्मण चेहरे पर खेल सकती है दांव
दरअसल, रायबरेली में पासी समुदाय के करीब 27 फीसदी मतदाता है और ब्राह्मण का वोट 11 फीसदी है। भाजपा ने इस निर्णायक वोटबैंक को अपनी तरफ मिलाने के मकसद से पहले से ही जिलाध्यक्ष के तौर पर बुद्धीलाल पासी की नियुक्ति कर चुकी है। वहीं अब चुनाव मैदान में किसी बड़े ब्राह्मण चेहरे को उतारने की तैयारी में है। पार्टी सूत्रों कि मानें तो कद्दावर ब्राह्मण चेहरे का नाम प्रदेश की कोर कमेटी की रिपोर्ट में पहले नंबर पर है।
1998 से इस सीट पर भगवा लहराने की कोशिश में है बीजेपी
उल्लेखनीय है कि वर्ष 1998 के बाद से भाजपा रायबरेली में भगवा लहराने के लिए पूरा जोर लगा रही है। हालांकि 2004 से 2009 तक बीजेपी का जिले में प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा। इस दौरान हुए लोकसभा चुनावों में पार्टी प्रत्याशी की जमानत तक नहीं बच सकी। इसके बाद वह दौर आया जब मोदी मैजिक ने रायबरेली में भाजपा को मजबूती दी। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी ने 21.05 फीसदी मत हासिल किए जो 2009 की तुलना में 17.23 फीसदी ज्यादा था। इसके बाद वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस प्रत्याशी सोनिया गांधी को कड़ी टक्कर दी।
इस चुनाव में सोनिया गांधी 1,67,178 वोटों से जीतीं। वहीं भाजपा का वोट प्रतिशत 17.31 फीसदी से बढ़कर 38.35 तक पहुंच गया। सूत्रों की मानें तो इस चुनाव में भाजपा ने पिछड़ों और क्षत्रिय मतदाताओं के बीच पैठ बनाने के लिए बेहतर होमवर्क किया। दरअसल, रायबरेली में पिछड़ों का वोटबैंक 23 फीसदी है और क्षत्रिय करीब छह फीसदी हैं। भाजपा ये चुनाव तो हार गई, लेकिन रणनीतिकारों को जीत के लिए जरूरी समीकरण का सूत्र मिला, अब वह उसी पर प्रयोग करने की तैयारी में है।
एससी वोटर पर कांग्रेस की रही पकड़
रायबरेली में इंदिरा गांधी के जमाने से ही कांग्रेस की एससी वोटरों पर मजबूत पकड़ रही है। यही कारण रहा कि 2004 से 2019 तक कांग्रेस प्रत्याशी सोनिया गांधी को यहां से लगातार जीत मिलती रही। भाजपा ने इसी वोटबैंक के एक बड़े धड़े को अपनी तरफ करने के लिए पिछले पांच सालों में रणनीतिक रूप से काम किया है। यह धड़ा पासी समाज का है। जिले में पासी समुदाय की संख्या करीब 4.5 लाख हैं और फीसदी 27 वोटर है। बीजेपी ने इसी जातीय समीकरण को साधने के लिए पहले जिले में बुद्धीलाल पासी को बतौर जिलाध्यक्ष नियुक्त किया।
साथ ही यहां जितने भी रात्रि प्रवास और जन योजनाओं से जुड़ी चौपाल हुई वह अधिकतर पासी जाति बहुल क्षेत्रों में की गई। बता दें कि कांग्रेस हमेशा से ब्राह्मण-मुस्लिम-दलित (बीएमडी) फार्मूले का इस्तेमाल कर जिले के मतदाताओं को साधने का काम करती थी और अब भाजपा ने भी उसके इस फार्मूले को अपना लिया है। बीजेपी ने इस फार्मूले से नया जातीय समीकरण तैयार कर व्यूह रचना शुरू कर दी है। अमेठी के बाद पार्टी कांग्रेस के इस गढ़ पर भी कब्जा करना चाहती है।
2019 में भाजपा का वोट शेयर 38.35 फीसदी हुआ
उल्लेखनीय है कि साल 2019 में भाजपा को 38.35 फीसदी वोट मिले थे, जो वर्ष 1996 और 1998 के लोकसभा चुनाव से अधिक थे। 1996 और 1998 में भाजपा ने रायबरेली में जीत दर्ज की थी। इस तरह भाजपा के थिंक टैंक को लगने लगा है कि 21 साल बाद भाजपा का वोट प्रतिशत जीत के लायक आ गया है। यही वजह थी कि पार्टी वर्ष 2019 की कमी को नए प्लान के जरिए पूरा करने को तैयार हो रही है।
रायबरेली प्रत्याशी को लेकर हुआ गहन मंथन
पार्टी सूत्रों की मानें तो रायबरेली के रण में जीत दर्ज करने के लिए बीजेपी सियासी समीकरण को फिट करने लिए ब्राह्मण चेहरे पर दांव खेलने की योजना बना रही है। मार्च में भाजपा की कोर कमेटी की बैठक में रायबरेली प्रत्याशी को लेकर गहन मंथन हुआ था, जिसमें पांच नाम शामिल किए गए थे। इनमें से अभी हाल में एक को राज्यसभा भेजा गया है जबकि दो अन्य ब्राह्मण चेहरे हैं। इनमे से एक मंत्री और एक केंद्रीय कार्यसमिति से जुड़े हैं।
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