लखनऊ। लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। सभी पार्टियों के उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतर चुके हैं और अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए हर मुमकिन कोशिश में जुट गई हैं। बीजेपी मिशन 80 को ध्यान में रखकर यूपी चुनाव में उतरी है। अपने इस फार्मूले को लेकर वह पूरे विश्वास के साथ आगे बढ़ रही है। उसे भरोसा है कि पीएम मोदी के नेतृत्व में वह एक बार फिर से जीतेगी, लेकिन उत्तर प्रदेश की इस सीट पर उसे अपने इस आत्मविश्वास की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
दरअसल बीजेपी ने कानपुर लोकसभा से नये चेहरे रमेश अवस्थी पर दांव लगाया है। उनके सामने सपा-कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी आलोक मिश्रा हैं। चूंकि रमेश अवस्थी जिले में अभी नया चेहरा हैं, इसलिए संगठन में उनका ज्यादा प्रभाव नहीं है। वहीं, बीजेपी कार्यकर्ता भी जमीन पर उनका मजबूती से साथ नहीं दे रहे हैं। दूसरी तरफ सत्ता से दूर हो चुकी कांग्रेस और सपा इस चुनाव में पूरी ताकत झोंक रही है। चुनाव का ऐलान होने के बाद सब कुछ जनता के हाथ में होता है लेकिन इससे कार्यकर्ताओं के प्रयासों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। चुनाव जीतने की उम्मीदें पार्टी पदाधिकारियों के प्रयासों से मापी जाती हैं। माना जाता है कि जितने अधिक सक्रिय कार्यकर्ता होंगे, चुनाव में उतनी ही मजबूती प्रत्याशी को मिलेगी। जब तक कार्यकर्ता अपनी पार्टी और अपने उम्मीदवार का गली-गली और जिले-जिले तक प्रतिनिधित्व करेंगे, तब तक मतदाताओं के मन में उम्मीदवार के बारे में कोई विचार नहीं बनेगा।
इस बार के चुनाव में कानपुर में बीजेपी की एक अलग ही तस्वीर बन कर सामने आ रही है। इस सीट का समीकरण कुछ और ही बता रहा है क्योंकि भाजपा ने नए चेहरे पर दांव लगाया है। बावजूद इसके क्षेत्र में कोई भी कार्यकर्ता जमीन पर उतर हुआ नहीं नजर आ रहा है। ऐसे में स्थानीय लोग बीजेपी के नये चेहरे यानी रमेश अवस्थी को पहचान नहीं बना पा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ शक्तिहीन सपा और कांग्रेस के कार्यकर्ता धूप और गर्मी की परवाह किए बगैर जनता के बीच जा रहे हैं और अपने प्रत्याशी के लिए समर्थन जुटा रहे हैं। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि अगर बीजेपी कार्यकर्ता इसी तरह से जनता से दूरी बनाए रखेंगे तो यहां से गठबंधन जीत सकता है।
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