भोपाल। दहेज न मिलने पर विवाहिता को खाना न देना शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना की श्रेणी में आता है। यह बात मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कही। मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस गुरपाल सिंह आहलुवालिया की पीठ ने कहा, दहेज की मांग पूरी न करने पर महिला को उसके माता-पिता के घर में रहने के लिए मजबूर करना मानसिक प्रताड़ना है और ये दंडनीय अपराध है। दरअसल, महिला के पति ने उसके खिलाफ धारा 498ए, 506 और 34 के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में अर्जी डाली थी लेकिन कोर्ट ने उसकी अर्जी खारिज कर दी।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पीड़िता ने बताया कि उसकी शादी अप्रैल 2018 में हुई थी। शादी में उसके पिता ने अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान दहेज दिया था लेकिन ससुराल वालों को एसी कार चाहिए थी, जिसे देने के उसके मायके वाले असमर्थ थे। इसके लिए उन लोगों उसे खाना देना बंद कर दिया। ससुराल में वह कई-कई दिनों तक भूखी रहती थी।महिला ने बताया कि वह एक साल से अपने माता-पिता के साथ रह रही है क्योंकि उसका पति उसे घर नहीं ले जा रहा है। इस एफआईआर के खिलाफ पति और उसके परिवार वालों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और उसे रद्द करने की मांग की थी।
महिला के ससुराल पक्ष वालों का कहना है कि यह एफआईआर पति द्वारा तलाक की अर्जी दाखिल करने के ठीक एक दिन बाद दर्ज की गई है। दरअसल पति ने एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर और क्रूरता का आरोप लगाते हुए पत्नी से तलाक मांगा था। वहीं, महिला द्वारा दर्ज की गई एफआईआर को संज्ञान में लेते हुए कोर्ट ने कहा, दहेज की मांग पूरी न होने पर किसी महिला को खाना न देना निश्चित रूप से शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न है। कोर्ट ने कहा, तलाक की याचिका दाखिल करने के बाद एफआईआर दर्ज की गई है, इसका मतलब यह नहीं है कि इस आधार पर एफआईआर को खारिज कर दिया जाए।
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