मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से दो बड़े जाट नेता मैदान में हैं। यहां भाजपा के टिकट से केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान और समाजवादी पार्टी से हरेंद्र मलिक आमने सामने हैं। वहीं बसपा ने दारा सिंह प्रजापति को टिकट दे दिया। ये तीनों ही चुनाव जीतने का माद्दा रखते हैं। ऐसे में यहां मुकाबला दिलचस्प हो गया है। अब देखना ये होगा कि जनता किस पर प्यार लुटाती है और संसद भेजती है।
मुजफ्फरनगर। उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर सीट पर मतदान होने को अब एक हफ्ते से भी कम समय बचा है। वहीं ठाकुर समाज की नाराजगी से यहां की सियासत में हलचल मची हुई है। इस सीट से दो बड़े जाट नेता मैदान में हैं। यहां भाजपा के टिकट से केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान और समाजवादी पार्टी से हरेंद्र मलिक आमने सामने हैं। वहीं बसपा ने दारा सिंह प्रजापति को टिकट दे दिया। ये तीनों ही चुनाव जीतने का माद्दा रखते हैं। ऐसे में यहां मुकाबला दिलचस्प हो गया है।
बीजेपी के संजीव बालियान पिछली दो बार से लगाातार इस सीट से सांसद रहे हैं। वे इस सीट से तीसरी बार ताल ठोंक रहे हैं। हालांकि सुरेश राणा से उनके विवाद के चलते यहां की ठाकुर बिरादरी उनसे नाराज है, जो इस चुनाव में उनके सामने मुश्किल खड़ी कर सकती है। कहा जा रहा है ठाकुरों ने इस बार बीजेपी को वोट नहीं देने का ऐलान किया है। हालांकि बीजेपी के दिग्गज नेता ठाकुरों की मान मनौव्वल में जुट गए हैं। रालोद के साथ गठबंधन से बीजेपी को राहत मिल रही है। उधर समाजवादी पार्टी के टिकट से ताल ठोंक रहे हरेंद्र मलिक भी जाटों के बड़े नेता माने जाते हैं। हरेंद्र मलिक जिले की खतौली विधान सभा सीट से वर्ष 1985 में और बघरा सीट से 1989, 1991 और 1983 में विधायक रह चुके हैं। इसके बाद 2002 से 2008 तक राज्यसभा सदस्य रहे हैं। उनके बेटे पंकज मलिक चरथावल से समाजवादी पार्टी से विधायक हैं।
हरेंद्र मलिक पिछली बार कांग्रेस के टिकट से चुनाव मैदान में थे लेकिन तब उन्हें उन्हें महज़ 70 हज़ार वोट मिले थे। इस बार वे सपा-कांग्रेस गठबंधन के तहत सपा के टिकट से चुनाव लड़ रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में रालोद ने सपा-बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, जिसमें संजीव बालियान ने जयंत चौधरी के पिता अजित सिंह को करीब साढ़े छह हजार वोटों से हराया था। इस बार रालोद ने सपा का साथ छोड़ दिया है। वह बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है लेकिन ठाकुरों की नाराजगी और किसान आंदोलन के बाद जाट वोटर बीजेपी से ज्यादा खुश नहीं है, जिसका असर इस बार के चुनाव में देखने को मिल सकता है। हालांकि बीजेपी जाट, ओबीसी, ठाकुर और ग़ैर जाटव दलित वोटरों पर नजर गड़ाए हैं और उन्हें अपने पक्ष में करने की पुरजोर कोशिश कर रही है। भाजपा अपने इस मकसद में कितना सफल होती है ये तो मतगणना के बाद ही पता चल पायेगा।
ये है मुजफ्फरनगर का जातीय समीकरण
सपा के टिकट से चुनाव लड़ रहे हरेंद्र मलिक भी जाट, मुस्लिम और त्यागी समाज के वोटों पर नजर गड़ाए हैं। वहीं बसपा के टिकट से ताल ठोंक रहे दारा सिंह प्रजापति अपने स्वजातीय व दलित वोटरों के सहारे मैदान में टिके हैं। आकड़ों पर गौर करें तो मुजफ्फरनगर में 18 लाख वोटर हैं, जिनमें 20 फीसदी मुस्लिम, 12 फीसदी जाट, 18 फीसदी दलित वोटर हैं। इस सीट पर जाट और मुस्लिम वोटर्स की भूमिका अहम होती है। इस समुदाय के वोट जिसके पक्ष में जाते हैं, वहीं सत्ता का स्वाद चख पाता है।
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