वाराणसी। पूर्वांचल में वाराणसी के बाद दूसरी हॉट सीट गाजीपुर है। अंसारी परिवार के प्रभाव वाली यह सीट मुख्तार अंसारी की जेल में मौत के कारण पूरे देश में इस समय चर्चा में है। इस सीट से 2019 में मनोज सिन्हा जैसे कद्दावर नेता को हार का सामना करना पड़ा था। वह भी तब जब वे मोदी सरकार में रेल राज्यमंत्री रहे। गाजीपुर में तमाम विकास कार्य उनकी ही बदौलत हुए बावजूद इसके वे मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी से चुनाव हार गए थे। अफजाल ने मनोज सिन्हा को एक लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया था। अफजाल अंसारी इस बार सपा प्रत्याशी के रूप में इस सीट से मैदान में हैं। बीजेपी ने इस बार उनके सामने भाजपा ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से दशकों से जुड़े शिक्षक पारसनाथ राय को उतारा है। बताया जाता है कि पारस नाथ मनोज सिन्हा के करीबी हैं। मनोज सिंह इस समय जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल हैं। बीजेपी ने पारसनाथ के नाम का ऐलान उस वक्त किया, जब वे अपने विद्यालय में कक्षा 7 के विद्यार्थियों को संस्कृत पढ़ा रहे थे। वहीं बसपा ने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
पूर्वांचल की बदहाली को देश-दुनिया के सामने लाने और संसद को झकझोरने वाले विश्वनाथ प्रसाद गहमरी की कर्मभूमि गाजीपुर में समय के साथ वैसे तो काफी कुछ बदला, लेकिन मतदाताओं की जातिवादी सोच नहीं बदली, यही वजह है कि यहां के लोगों के हालात में भी कोई खास बदलाव नहीं आया। गाजीपुर की जनता की जातिवादी सोच का नतीजा यहां के चुनाव परिणामों में हमेशा देखने को मिलता है। इस जिले में यादव मतदाता पहले पायदान पर हैं तो गैर यादव पिछड़े और दलित मतदाता दूसरे नंबर पर आते हैं। वहीं मुस्लिम मतदाता भी निर्णायक की भूमिका में हैं। राजपूत, ब्राह्मण, भूमिहार, वैश्य आदि मतदाता की संख्या कुल मिलाकर यादव मतदाताओं के आसपास है। 2022 के विधानसभा चुनाव को ही लें तो सपा व सहयोगी दल की साइकिल भगवा को पछाड़कर बहुत आगे निकली थी। जिले की सात में से पांच सीटों पर सपा उम्मीदवार तो बाकी दो पर गठबंधन ( सुभासपा प्रत्याशियों ) ने जीत हासिल की थी। भाजपा की दो महिला विधायक अलका राय व सुनीता सिंह के साथ राज्यमंत्री संगीता बलबत को भी इस सीट से हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि इस बार के चुनाव में सुभासपा ने सपा से किनारा कर लिया है। अब वह बीजेपी की सवारी कर रही है। दलों के इस बदले समीकरण में मतदाताओं का झुकाव किस तरफ होगा, ये कहना अभी मुश्किल है।
गति नहीं पकड़ सके विकास कार्य
सांसद अफजाल अंसारी के पांच साल के कार्यकाल में अदालतों में चल रहे मुकदमों की सुनवाई से लेकर सजा होने, जेल जाने और सदस्यता समाप्त होने और फिर बहाली होने तक में विकास कार्य यहां गति नहीं पकड़ सके। स्थानीय लोगों की मानें तो वे जनता के बीच भी वह कम ही आए। यहां अगर कोई काम ठीक से हुआ तो वह सिर्फ सड़कों का था। यहां पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे, ग्रीन फील्ड परियोजना और गंगा पर बने रेल सह रोड ब्रिज से विकास की राह तो खुली, लेकिन मंजिल तक नहीं पहुंच सकी। गाजीपुर में रोजगार एक बड़ा मुद्दा है। यहां कोई बड़ा कारखाना न होने के चलते लोगों को रोजगार की तलाश में दूसरे शहरों की तरफ रुख करना पड़ता है। ढाई दशक से बंद नंदगंज चीनी मिल और बहादुरगंज कताई मिल के पहिए अब तक नहीं दौड़ सके हैं। क्रैश क्रॉप गन्ने की खेती बंद होने से किसान बेहाल है। यहां विश्वविद्यालय और एयरपोर्ट जैसी सुविधाएं नहीं है। हालांकि रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाने के मकसद से अब सूबे की योगी सरकार पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के किनारे औद्योगिक गलियारा बनाने के लिए जमीन की खरीद शुरू की है। गाजीपुर-बलिया हाइवे के किनारे मंडी का विकास होने से किसानों के उत्पाद को बिक्री का बड़ा बाजार मिलने की भी उम्मीद भी जताई जा रही है।
रिकॉर्ड की बराबरी करने का मौका
इस बार का लोकसभा चुनाव कई मायने में सांसद अफजाल अंसारी के लिए खास होगा। इससे पहले के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी मनोज सिन्हा को हराने में कामयाब रहने वाले अफजाल अंसारी के पास 10 साल पुराने रिकॉर्ड की बराबरी करने का मौका है। अगर इस बार भी वह चुनाव जीत जाते हैं तो मनोज सिन्हा के बाद दूसरे ऐसे सांसद होंगे जो तीसरी बार लोकसभा पहुंचेंगे और चौथे ऐसे सांसद बनेंगे जो लगातार दो बार इस सीट पर जीत दर्ज करेंगे। गाजीपुर के पहले सांसद सरजू पांडे के सानिध्य में राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले अफजाल पहली बार 1985 में मोहम्मदाबाद से भाकपा विधायक बने थे। इसके बाद वे लगातार पांच बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। 2004 के लोकसभा चुनाव में अफजाल अंसारी ने भाजपा के खिलाफ जीत दर्ज की तो 2009 और 2014 में चुनाव हार गए। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद अफजाल ने भाजपा के मनोज सिन्हा को हराकर चुनावी रणनीतिकारों को भी चौंका दिया था।

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