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कैसरगंज लोकसभा सीट: कहीं बीजेपी के गले की फांस तो नहीं बन गए हैं बृज भूषण शरण सिंह?

कैसरगंज
 अखाड़ा, कुश्ती, करिश्माई रुतबा और जिले में मज़बूत स्थिति… कुछ ऐसा ही था राजनीति में कैसरगंज सांसद बृज भूषण शरण सिंह का दबदबा, लेकिन बीते साल महिला पहलवानों द्वारा लगाए गए यौन शोषण के आरोप ने एक ही झटके में इन सब पर पानी फेर दिया। अब स्थिति ये है उन्हें बीजेपी से टिकट के लिए भी मशक्कत करनी पड़ रही है।हालात ऐसे हो गए हैं कि चुनावी शतरंज की बिसात पर अपनी हरकतों से चौंका देने वाले इस दिग्गज के माथे पर पहली बार बल पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। हालांकि भाजपा ने अभी तक कैसरगंज से प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है, लेकिन बृज भूषण को टिकट मिलेगा या नहीं इस पर संशय बना हुआ है। उधर बृजभूषण ने काफिलों और अघोषित रैलियों के जरिए दबाव बनाने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। कुल मिलाकर कहा जाए तो बृजभूषण बीजेपी के लिए गले की फांस बनते नजर आ रहे हैं। पार्टी उन्हें न तो किनारे कर पा रही है और न ही उन्हें साथ लेकर चल पा रही है।

चुनाव के पहले कैसरगंज के माहौल में नीति के साथ ही रणनीति पर भी चर्चा शुरू हो गई है।  यहां के पूर्व प्रधानमंत्री मुलायम सिंह यादव के चरखा दांव की भी खूब चर्चा हो रही है। हालांकि मुलायम सिंह अब नहीं रहे, लेकिन एक और राजनीतिक योद्धा के रूप में बृजभूषण शरण सिंह सुर्खियां  बटोर रहे हैं। यही वजह है कि जब पार्टी ने टिकट देने में देरी करनी शुरू की तो वह ख़ुद मैदान में उतर गए, लेकिन जब पहलवान के पुराने पन्ने पलटे जाएंगे तो कई दिलचस्प किस्से सामने आएंगे। उनकी बीजेपी से अच्छी दोस्ती थी, लेकिन कई बार पार्टी से विवाद भी सामने आया।  चाहे वह घनश्‍याम शुक्‍ला की रहस्‍यमय मौत का मामला हो या फिर ह्विप के उल्लंघन की बात। बृजभूषण शरण की पार्टी नेतृत्‍व से कई बार अनबन हुई, लेकिन इस बार नजारा कुछ अलग ही है। इस बार बीजेपी उसने खासी नाराज नजर आ रही है, वहीं बिना हाईकमान की परवाह किए वे चुनावी समर में प्रचार करने कूद पड़े हैं।

पार्टी के खिलाफ जा कर यूपीए सरकार के पक्ष में की थी वोटिंग 

बीजेपी के वरिष्ठ नेता प्रेम नारायण तिवारी एक घटना का जिक्र करते हुए कहते हैं कि वाकया जुलाई 2008 का है।
यूपीए सरकार लोकसभा में विश्वास मत हासिल करने की कोशिश में थी लेकिन उस वक्त पूरा विपक्ष भारत-अमेरिका परमाणु संधि को लेकर उसके खिलाफ खड़ा था, तब विश्वास मत पर मतदान के क्रम में दुर्लभ ‘दलबदल’ का उदाहरण देखने को मिला था। दरअसल, बृजभूषण ने पार्टी ह्विप का उल्लंघन करते हुए यूपीए के पक्ष में वोटिंग की। इसके बाद भाजपा ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया।

हरियाणा फैक्टर भी अहम

बीते साल महिला पहलवानों द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के बाद पूरे हरियाणा और पश्चिमी यूपी में बृज भूषण के खिलाफ जमकर विरोध प्रदर्शन हुआ। खासकर जाट समुदाय में बृज भूषण को लेकर खासी नाराजगी देखने को मिल रही है। हरियाणा की आबादी का लगभग 28% (मतदाताओं का एक चौथाई) जाट हैं। उत्तरी हरियाणा को छोड़कर राज्य के हर इलाके में जाटों की आबादी अधिक है। ऐसे में चुनाव में यह नाराजगी भाजपा पर भारी भी पड़ सकती है। इस कारण पार्टी एक सीट के लिए पूरे हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश को प्रभावित नहीं होने देना चाहेगी।

विधानसभा चुनाव भी हो सकता है प्रभावित 

पश्चिमी यूपी की राजनीति को अच्छी तरह से समझने वाले भूपेन्द्र सिंह कहते हैं कि जाट बहुल हरियाणा के लगभग हर गांव में पहलवान हैं। बृजभूषण के खिलाफ कार्रवाई न होने से ये तबका कहीं न कहीं बीजेपी से असन्तुष्ट हैं,जिसका असर इस चुनाव में देखने को मिल सकता है। वहीं अगर अगर विपक्ष इस मुद्दे को ठीक से उठाता है तो अगले साल हरियाणा में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी ये पार्टी को प्रभावित कर सकता है।

 

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Author: nyaay24news

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