श्रावस्ती। देश-दुनिया में अपनी छाप छोड़ने वाली महाराजां सुहेलदेव व बालार्क ऋषि सहित गौतम व गाजी की धरती को अभी भी विकास की दरकार है। यहां विकास कोसों दूर नजर आ रहा है। प्राचीन काल में देश के दस प्रमुख महानगरों में सबसे अहम स्थान रखने वाला श्रावस्ती व इससे सटे बहराइच व बलरामपुर जिले की गिनती आज देश के आठ अति पिछड़े जिलों में होती है।
उल्लेखनीय है कि श्रावस्ती 2008 तक बहराइच लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा थी। 2008 में हुए परिसीमन के बाद बलरामपुर की गैसड़ी, तुलसीपुर व बलरामपुर सहित जिले की भिनगा और श्रावस्ती विधानसभा क्षेत्र को शामिल कर इसे श्रावस्ती लोकसभा बना दिया गया। बलरामपुर से 1957 व 1967 में चुनाव जीते अटल बिहारी वाजपेयी बाद में देश के प्रधानमंत्री भी बने लेकिन इस जिले की दशा और दिशा में कोई सुधार नहीं हुआ। वहीं 1977 में नानाजी देशमुख ने यहां से जीत दर्ज की और इनका विकास मॉडल पूरे देश में चर्चा का विषय बना रहा है।
बहराइच से 1980, 1984, 1989 व 1998 में चार बार सांसद व 1977 में एक बार विधायक रहे आरिफ मोहम्मद खान दो बार केंद्र सरकार के राज्य मंत्री और दो बार कैबिनेट मंत्री रहे। इस समय वे केरल के राज्यपाल हैं। भिनगा के भंगहा निवासी सरदार जोगिंदर सिंह ने 1952 में कैसरगंज से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कर ली। इसके बाद वे 1971-72 में उड़ीसा और 1972 से 1977 तक राजस्थान के राज्यपाल रहे। सपा के कैसरगंज व गोंडा से सांसद रहे बेनी प्रसाद वर्मा दो बार केंद्र सरकार में मंत्री पद का जिम्मा संभाल रहे हैं।
इसके बाद भी तराई क्षेत्र में शामिल बहराइच, श्रावस्ती व बलरामपुर में विकास का पहिया नहीं दौड़ सका। ‘बहराइच को महाराजा सुहेलदेव, बालार्क ऋषि व गाजी की तो श्रावस्ती को गौतम बुद्ध, श्री राम के पुत्र महाराज कुश की राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। कभी देश के दस महानगरों में शुमार अचरावती की ये धरती आजादी के अमृत काल में भी पिछड़ी हुई है। आलम ये है कि देश के अति पिछड़े आठ जिलों में शामिल है।
नेपाल से मिलती है 247 किमी सीमा
बहराइच, बलरामपुर व श्रावस्ती जिले की 247 किलोमीटर सीमा नेपाल से मिलती है। यही वजह है कि ये क्षेत्र संवेदनशील माना जाता है। जब अटल बिहारी प्रधानमंत्री बने थे तो उन्होंने बलरामपुर के तुलसीपुर, सिरसिया, जमुनहा और नानपारा होते हुए पीलीभीत तक रेल लाइन बिछाने का वादा किया था, लेकिन अभी तक इस पर कोई अमल नहीं हुआ। जिले में भूमि होने के बाद भी यहां अभी तक एक भी बस अड्डा नहीं बन सका है।
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