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खत्म होती नजर आ रही टंडन परिवार की राजनीतिक विरासत, BJP ने छोटे बेटे को नहीं दिया टिकट

Lalji Tandon

ये साल दूसरा था, ये साल दूसरा है… इस गाने की ये चंद पंक्तियां बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालजी टंडन पर सटीक बैठती हैं। आरएसएस से जुड़कर सलाहकार से राज्यपाल तक का सफर तय करने वाले लालजी टंडन आज इस दुनिया में नहीं हैं। एक समय था जब वे उत्तर प्रदेश की राजनीति में ख़ासा दमख़म रखते थे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बेहद करीबी रहे लालजी टंडन ने 1990 के दशक में बीजेपी-बीएसपी गठबंधन सरकार के गठन में अहम भूमिका निभाई थी। मायावती उन्हें अपना बड़ा भाई मानती थीं और उन्हें राखी भी बांधती थीं, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि टंडन परिवार की राजनीतिक विरासत ख़त्म हो रही है।

20 मई को होना है उपचुनाव

दरअसल, पूर्व राज्यपाल लालजी टंडन के बड़े बेटे आशुतोष टंडन के निधन के बाद लखनऊ पूर्वी विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है। इस सीट पर लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में यानी 20 मई को वोटिंग होनी है। माना जा रहा था कि आशुतोष टंडन के निधन के बाद इस सीट से बीजेपी लालजी टंडन के सबसे छोटे बेटे अमित टंडन को मौका देगी। अमित टंडन को भी भरोसा था कि बीजेपी उन्हें मौका देगी। इसी भरोसे के साथ वे चुनाव की तैयारी भी कर रहे थे, लेकिन बीजेपी नेतृत्व ने उन्हें टिकट नहीं दिया। इस बार बीजेपी ने कायस्थ वोट बैंक को साधने के मकसद से ओपी श्रीवास्तव को टिकट दिया है। हालांकि इससे अमित टंडन को बड़ा झटका लगा है।

अटल बिहारी बाजपेयी के करीबी थे टंडन

बताते चलें कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के बेहद करीबी रहे लालजी टंडन का राजनीतिक करियर काफी लंबा रहा है। टंडन अपने जीवन के शुरुआत से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े रहे। उनकी राजनीतिक यात्रा 1960 में शुरू हुई थी। वे दो बार नगर परिषद के लिए चुने गए। इसके बाद वह पहली बार 1978 में एमएलसी बने और 1984 में अपना कार्यकाल पूरा किया। इसके बाद उन्होंने 1990 से 1996 तक विधान परिषद में संसद के नेता के रूप में कार्य किया। टंडन पहली बार बीजेपी-बीएसपी गठबंधन सरकार में मंत्री बने। वे दो बार एमएलसी भी बने थे। लालजी टंडन 1996 से 2009 तक लगातार तीन बार विधायक रहे। इसके बाद टंडन 2003 से 2007 तक यूपी विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे। कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह सरकार में भी उन्हें मंत्री पद से नवाजा गया था।

लखनऊ लोकसभा सीट से लगाकर दर्ज की जीत

लालाजी टंडन ने पहली बार साल 2009 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की सीट लखनऊ से लोकसभा चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी को बड़े अंतर से हराया। दरअसल, अटल बिहारी वाजपेयी 1991 से लखनऊ लोकसभा सीट से चुनाव जीतते रहे हैं लेकिन 2014 में लालाजी टंडन को यहां से टिकट नहीं दिया गया। उनके स्थान पर इस सीट से राजनाथ सिंह ने चुनाव लड़ा और जीते। 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने राजनाथ सिंह को गृहमंत्री का जिम्मा सौंपा। हालांकि 2018 में लालजी टंडन को बिहार का राज्यपाल बनाया गया। इसके कुछ दिन बाद ही उन्‍हें एमपी का गवर्नर बना दिया गया था।

बेटे आशुतोष टंडन को दिया मौका

इधर लखनऊ पूर्वी विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में बीजेपी ने लालजी टंडन के बेटे आशुतोष टंडन को मौका दिया लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव में आशुतोष टंडन गोपाल अपनी लखनऊ उत्तरी सीट से बुरी तरह हार गए। वे तीसरे स्थान पर रहे। इस चुनाव में उन्हें कांग्रेस के नीरज बोरा से कम वोट मिले जबकि सपा के अभिषेक मिश्रा ने जीत दर्ज की। बाद में लखनऊ पूर्वी सीट पर हुए उपचुनाव में आशुतोष टंडन ने जीत हासिल की। इसके बाद 2017 में फिर आशुतोष ने लखनऊ पूर्वी से जीत हासिल की तो पार्टी ने उन्हें उसका इनाम भी दिया। उन्हें योगी सरकार के पहले कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया था, लेकिन 2022 में गोपाल जी चुनाव तो जीते लेकिन सरकार का हिस्सा नहीं बने थे। हालांकि चुनाव जीतने के कुछ समय बाद ही लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया है।

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