नई दिल्ली। शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो जो कोरोना वायरस का मंजर भूल पाया हो, अगर बात करें दिसंबर 2019 की तो चीन के वुहान शहर से निकली इस महामारी ने धीरे-धीरे पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया। इस महामारी ने चीन के वुहान शहर में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में तबाही मचा दी थी। क्या विकसित, क्या विकासशील देश सभी इस महामारी की चपेट में आये। इस महामारी से हर किसी ने अपने-अपने स्तर पर युद्ध लड़ा। लाखों की तादाद में लोग मर रहे थे, अपनों के सामने अपनों की जान जा रही थी और बेवस परिवार सिर्फ और सिर्फ देख रहा था। चाहकर भी कोई कुछ नहीं कर पर रहा था। देखते ही देखते यह दृश्य इतना भयानक हो गया की देश-दुनिया में शव दफ़नाने की जगह तक नहीं बची। वहीं भारत की बात की जाए तो यहां भी लोगों ने अपनों को बड़ी संख्या में खोया। भारत में एक दिन में हजारों की तादाद में केस आने लगे। ऐसे में सरकार ने 150 करोड़ जनता की जान बचाने का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया। लोगों में भी कोविड-19 को लेकर तरह-तरह के सवाल थे। साथ ही मौत का डर भी दिलो दिमाग पर हावी हो रहा था। वहीं विपक्ष भी लगातार सत्ता पक्ष से सवाल कर रहा था कि सरकार जनता को इस महामारी से बचाने के लिए क्या उपाय कर रही है।
भारत में कोरोना का पहला केस आया तो तुरंत सरकार एक्टिव हुई और खुद प्रधानमंत्री मोदी ने कमान संभाली। पीएम ने देश में इस महामारी को बढ़ने से रोकने के लिए जनता कर्फ्यू का ऐलान कर दिया। उन्होंने देश भर की जनता से 22 मार्च 2020 को घरों से बाहर न निकलने की अपील की और सबसे सहयोग मांगा। जनता कर्फ्यू के ठीक दो दिन बाद 24 मार्च को पीएम ने एक बार फिर से देश को संबोधित किया और 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा कर दी। साथ ही यह भी आग्रह किया की आप सभी जहां भी हैं वहीं रुक जाएं, देश में 21 दिनों का लॉकडाउन लगाया जा रहा है। इस दौरान कोई भी किसी से न मिले, सोशल डिस्टन्सिंग अपनाएं और अपना ख्याल रखे।
लॉकडाउन लगते ही सभी कॉलेज, स्कूल, कारखाने, दफ्तर बंद कर दिए गए। 21 दिनों के लिए देश में पहला लॉकडाउन लगता है लेकिन इन दिनों में न तो हालात काबू में आते हैं और न ही बीमारी का इलाज मिलता है। ऐसे में सरकार लॉकडाउन की समय सीमा बढ़ा देती है। इधर स्वास्थ मंत्रालय लगातार जनता को इस मारामारी से जागरूक कर रहा है और कोरोना नियमों का पालन करने की अपील कर रहा है। इतना कुछ होने के बाद भी महामारी बढने लगी थी। इस दौरान पुलिस का एक ऐसा चेहरा सामने आया जिसने सबको हैरान कर दिया। पुलिस विभाग ने वह किया जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। जी हां हमेशा से लोगों की नाराजगी झेलने वाली पुलिस बिना अपनी जान की परवाह किये सड़कों पर उतर आई और लोगों को कोरोना के प्रति जागरूक करने लगी और उनसे घर में रहने की अपील करने लगी।
महामारी इतनी ज्यादा फ़ैल चुकी थी की अपने-अपनों से दूर होने लगे थे। ऐसी भी तस्वीरें देखने मिली, जिसने मानवता को शर्मसार कर दिया। वहीं हॉस्पिटल्स में बेड तक अब मिलना मुश्किल हो गया। आए दिन बढ़ते मामलों ने पूरा का पूरा सिस्टम हैक कर लिया। अगर किसी मरीज को बेड मिल भी जाए तो डॉक्टर्स की कमी की वजह से काफी ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। प्रधानमंत्री मोदी भी लगातार इस पूरे मामले पर नज़र बनाए हुए थे। सबसे बड़ा सवाल यह था की इस महामारी को कैसे ख़त्म किया जा सकता है क्यूंकि इस महामारी ने अपना विकराल रूप ले लिया था। आलम ये था कि लोगों का इलाज करने वाले डॉक्टर्स भी इसकी चपेट में आने लगे थे। आए दिन मरीजों की मौत हो रही थी। दूसरी तरफ विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर हो रहा था। देश के कोने-कोने से डराने वाली तस्वीरें सामने आ रही थीं। अब सरकार पर दोहरी जिम्मेदारी आ गई थी , जहां एक तरफ आम जनता की जान बचाना था तो दूसरी तरफ विपक्ष को खामोश करना। दरअसल विपक्ष लगातार सरकार को इन मौतों का जिम्मेदार ठहरा रहा था।
वैक्सीन को लेकर शुरू हुआ बवाल
कोविड के बढ़ते मामलों को देखते हुए सरकार ने वैक्सीन बनवाने का फैसला लिया, जिसके बाद कई दवा कंपनियों को इसकी जिम्मेदारी भी मिली। वहीं इस महामारी से बचाव के लिए कई दवाएं बनायीं गई, जिनमें ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका कोविड-19 टीका, कोडनाम AZD1222 और ब्रांड नाम कोविशील्ड और वैक्सज़ेव्रिया के तहत बेचा जाता है, कोविड-19, की रोकथाम के लिए एक वायरल वेक्टर टीका (वैक्सीन) बनाई गई। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित इस टीके को इंट्रामस्क्युलर इंजेक्शन द्वारा लगाई जानी थी और इसमें एक वेक्टर के रूप में संशोधित चिंपांज़ी एडेनोवायरस ChAdOx1 के रूप को उपयोग किया जाता है। वहीं इसकी पहली खुराक के बाद 22 दिनों में रोगसूचक कोविड-19 को रोकने की वैक्सीन की प्रभावशीलता 76.0% है और दूसरी खुराक के बाद इसे 81.3% दर्ज किया गया है। ऐसे तमाम तरीके के दावे किये गए, जब भारत में कोविशील्ड बनी तो सरकार ने सभी को इसका टीका लगवाने और इसके फायदे भी जमकर बताये।
लोगों को टीका के दो डोज़ लेने थे जिसके बाद बूस्टर डोज़ शामिल किया गया। अब बारी थी वैक्सीन लगवाने की। तमाम तरीके के विज्ञापन वैक्सीन को लेकर चलाये गए लोगों को जमकर अवेयर भी किया गया। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के साथ कार्यकर्ताओं ने भी वैक्सीन लगवाई और लोगों को लगवाने के लिए भी अवेयर किया। अब जनता भी वैक्सीन लगवाने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाने लगी और अपने रजिस्ट्रेशन पर दिए गए तारीख पर अस्पताल पहुंचकर वैक्सीन लगवाने के लिए लंबी- लंबी कतारों में खड़े होकर वैक्सीनेशन कराया। देखते ही देखते 80 करोड़ लोगों ने वैक्सीन लगवाई। वहीं सरकार की तरफ से जारी गाइडलाइन में कहा गया कि वैक्सीन को लगवाने से कोई भी साइड इफ़ेक्ट नहीं होगा। उधर विपक्ष सरकार पर वैक्सीन को लेकर हमलावर था। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव भी वैक्सीन को लेकर बीजेपी पर सवाल उठाते रहे कि अभी तक जापान, अमेरिका जैसे विकसित देश इस महामारी की दवा नहीं बना पाए, तो भारत ने कैसे दावा कर दिया की हमने वैक्सीन का निर्माण कर लिया है। कुछ भी हो जाए मैं और मेरी पार्टी के लोग बीजेपी द्वारा न बनवाई गई इस वैक्सीन नहीं लगवाने वाले।
अब वैक्सीन वॉर शुरू होता है। ब्रिटेन की अदालत से, जहां वैक्सीन निर्माता कंपनी एस्ट्राजेनेका से वैक्सीन को लेकर सवाल पूछे गए तो कंपनी ने अदालत में हाल ही में स्वीकार किया है कि उसकी वैक्सीन दुर्लभ स्थितियों में टीटीएस नामक समस्या का कारण बन सकती है। टीटीएस एक ऐसी बीमारी है जिसमें रक्त का थक्का बनाने वाली समस्या होती है, जिससे हार्टअटैक और ब्रेन स्ट्रोक होने का भी खतरा बढ़ जाता है। हालांकि स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि वैक्सीन के कारण होने वाले इस तरह के दुष्प्रभाव काफी दुर्लभ हैं। वहीं स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने यह भी कहा है कि प्रत्येक 10 लाख में से एक-दो व्यक्तियों में इसका खतरा हो सकता है। एस्ट्राजेनेका के बयान ने अचानक लोगों की नींद उड़ गई। वहीं विपक्ष को एक और मौका मिल गया सरकार को घेरने का। विपक्ष ने बीजेपी पर मासूम जनता को पैसों के लिए जहर बेचने का आरोप तक लगा दिया। अब सरकार इस पूरे मामले को कैसे बैलेंस करती है ये देखने वाला होगा क्योंकि इस समय देश में लोकसभा चुनाव चल रहा, तो वहीं विपक्ष इस मुद्दे को गरमाने में लगा हुआ है।
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