लखनऊ। इस बार के चुनाव में इलेक्शन कमीशन की जबरस्दत सख्ती देखने को मिल रही है। इसका नतीजा ये है कि इस चुनाव में इस्तेमाल होने वाले कालेधन का रूप ड्रग्स ने ले लिया है। दरअसल, दो हजार रुपये के नोट बंद होने के बाद कैश लाना-ले जाना रिस्की हो गया है। यही वजह है कि अब लोगों को पैसे के बदले ड्रग्स बांटे जा रहे हैं।
16 मार्च को लगी थी आचार संहिता
बता दें कि ये पहला चुनाव है, जिसमें प्रदेश में ही 238 करोड़ रुपये की ड्रग्स पकड़ी जा चुकी है जबकि नकदी महज 34 करोड़ ही है। इस बार लोकसभा चुनाव को लेकर 16 मार्च को देश में आचार संहिता लगी थी। चुनाव आयोग की ‘मनी पावर वाच टीम’ ने विगत 13 अप्रैल तक ही 4650 करोड़ रुपये की नकदी, शराब, ड्रग्स आदि की बरामदगी की थी, जो 75 साल के संसदीय चुनाव के इतिहास में सबसे ज्यादा था। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2019 के लोकसभा चुनावों के सातों चरणों में 3475 करोड़ रुपये सीज किए गए थे। इससे भी ज्यादा गंभीर बात ये है कि कुल जब्त किये गए रकम और सामान में करीब आधे से ज्यादा ड्रग्स और कोकीन जैसे घातक मादक पदार्थ हैं।
दो हजार रुपये के नोटों का बंद होना है मुख्य वजह
पिछले चुनाव की तुलना में इस बार ड्रग्स की जब्ती सबसे ज्यादा है। पिछले पूरे चुनाव के दौरान देशभर में जहां 1239 करोड़ की ड्रग्स जब्त की गई थी। वहीं इस बार महज तीन चरणों के चुनाव में उत्तर प्रदेश में 238 करोड़ के ड्रग्स पकड़े जा चुके हैं। वहीं कैश की जब्ती पिछले चुनाव के मुकाबले आधी से भी ज्यादा घट गई। पकड़ी गई ड्रग्स में अफीम, चरस, गांजा से लेकर ब्राउन शुगर तक शामिल हैं। इनकी कीमत 50 हजार रुपये से लेकर दो करोड़ रुपये किलो तक बताई जा रही है। सूत्रों की मानें तो कैश के बजाय ड्रग्स की धरपकड़ में अप्रत्याशित तेजी की जो मुख्य वजह है, वह है दो हजार रुपये के नोटों का बंद होना है।
ड्रग्स के बदले मिल जाता है नोट
उनका कहना है कि पहले चुनाव में इस्तेमाल होने वाले कालेधन को पहुंचाने का जरिया दो हजार के नोट थे। केवल दस गड्डी में ही बीस लाख आसानी से पहुंच जाते थे और कहीं भी रख लो किसी को पता नहीं चलता था लेकिन अब पांच सौ के नोटों को लाखों-करोड़ों में ले जाना खुद को जोखिम में डालने जैसा है। इस बार आयोग की टीमें डाटा इंटेलीजेंस और तकनीक के आधार पर ज्यादा काम कर रही हैं। ऐसे में ड्रग्स ने कैश की जगह ले ली। एक किलो मादक पदार्थ को किसी भी रूप में एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया जा सकता है। गंतव्य पर इसके बदले में कैश दे दिया जाता है। फ़िलहाल आयोग ने ड्रग्स की रिकाॅर्ड जब्ती को गंभीरता से लिया है।
कैश और शराब पर भारी चरस-अफीम
- 30 मार्च तक पकड़ा गया 17 करोड़ कैश, 23 करोड़ की शराब और 38 करोड़ की ड्रग्स भी हुई सीज।
- 15 अप्रैल तक पकड़ा गया 24 करोड़ कैश, 36 करोड़ की शराब और 56 करोड़ की ड्रग्स भी हुई सीज।।
- 30 अप्रैल तक पकड़ा गया 32 करोड़ कैश, 46 करोड़ की शराब और 218 करोड़ की ड्रग्स भी हुई सीज।
- 7 मई तक पकड़ा गया 34 करोड़ कैश, 49 करोड़ की शराब और 238 करोड़ रुपये की ड्रग्स भी हुई सीज।
दो करोड़ रुपये KG है कीमत
उल्लेखनीय है कि मार्च महीन में भगवतीपुर के पिंडरा गांव में एसटीएफ ने म्याऊं-म्याऊं ड्रग की बड़ी खेप पकड़ी थी जिसकी कीमत करीब 30 करोड़ रुपये आंकी गई थी। म्याऊं-म्याऊं नाम का ये ड्रग कोकीन या हेरोइन की तरह प्राकृतिक नशीला पदार्थ नहीं है, बल्कि एक सिंथेटिक ड्रग है, ये बेहद जानलेवा होता है। इसका असली नाम मेफेड्रोन है। इसे कुछ खास पौधों के कीड़े मारने के लिए एक सिंथेटिक खाद के तौर पर बनाया जाता था। अब इसे नशे के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा है। सीज किए गए मादक पदार्थों में अफीम, चरस, गांजा आदि है, जिनकी कीमत करोड़ों में हैं।
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