लखनऊ। सेतु निगम के अधिकारियों ने ठेकेदारों को दो अरब रुपये का बोनस बांट दिया। निगम के अधिकारियों को बोनस बांटने की इतनी जल्दी थी कि प्रोजेक्ट के मद में पैसा नहीं था तो दूसरे मद से भुगतान कर दिया गया। दरअसल,प्रोजेक्ट से जुड़े एक अधिकारी के खिलाफ चल रही पुरानी जांच की कमेटी के सदस्यों को इस फर्जीवाड़े की शिकायत मिली और जब इस मामले में पड़ताल की गई तो सारा खेल सामने आ गया। सेतु निगम के महाप्रबंधक (वाणिज्य) संदीप गुप्ता ने प्रबंध निदेशक धर्मवीर सिंह को पत्र भेजकर निगम के दो करोड़ के नुकसान की आशंका जताई है और इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की भी सिफारिश की है।
महाप्रबंधक के पत्र के अनुसार, सोनभद्र में रेनू नदी पर बने पुल तक अप्रोच रोड बनाने का काम वाराणसी अंचल में स्थित मित्तल बदर्स नाम की कंपनी को दिया गया था। काम पूरा होने के बाद ठेकेदार को भुगतान के साथ दो करोड़ रूपये का बोनस भी दिया गया था। जब शिकायतकर्ता की जांच समिति ने निविदा अनुबंध और भुगतान के प्रमाण प्रस्तुत करने का अनुरोध किया, तो पुष्टि हुई कि बोनस का भुगतान किया जा चुका है। मामला स्पष्ट होने के बाद टेंडर से जुड़े दस्तावेज तलब कर जांच के आदेश दिए गए हैं। साथ ही जिन प्रोजेक्ट्स में बोनस की शर्त जोड़कर टेंडर करवाया गया है उनकी रिपोर्ट तलब की गई। यह भी कहा गया कि किसी भी नए टेंडर में ऐसी शर्त नहीं जोड़ी जानी चाहिए।
सूत्रों की मानें तो यह खेल इलाहाबाद, मेरठ और प्रयागराज में भी खेला गया था। हालांकि भुगतान की पुष्टि वाराणसी में की गई थी। इस मामले में सेतु निगम के एमडी धर्मवीर सिंह कहते हैं कि बोनस देने की शिकायतें आई थीं। रिपोर्ट तलब कर ली गई है। बोनस के क्लॉज वाले टेंडरों को वापस लेने और नए टेंडर में बोनस की शर्त न जोड़ने का निर्देश दिया गया है। वित्तीय अनियमितता या नुकसान की पुष्टि होने के बाद जिम्मेदारों पर कार्रवाई होगी।
बोनस के पीछे क्या है खेल
सेतु निगम में टेंडर की नियम शर्तों के लिए मानक दस्तावेज है। इसमें किसी तरह के बोनस का जिक्र नहीं है। मुख्यालय से जारी निर्देशों में भी बोनस देने का कई जिक्र नहीं है। बावजूद इसके प्रोजेक्ट से जुड़े अफसरों न सिर्फ बोनस की शर्त के साथ टेंडर निकाला, बल्कि उसका भुगतान भी कर दिया। महकमे में इसे लेकर घूसखोरी और अफसरों की भूमिका पर सवालिया निशान उठ रहे हैं।
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