18,33,312 मतदाता करेंगे भाग्य का फैसला
प्रतापगढ़। प्रतापगढ़ संसदीय सीट के इतिहास की कोई भी चर्चा पूर्ववर्ती शाही राज्यों के उल्लेख के बिना अधूरी होगी। यहां की राजनीति राजपरिवार और रियासतों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। 1957 में सीट के निर्माण के बाद से, यहां सोलह चुनाव हुए हैं, जिसमें राजा दिनेश सिंह चार बार सांसद बने और उनकी बेटी राजकुमारी रत्ना सिंह तीन बार सांसद बनीं। प्रतापगढ़ राजघराने के प्रताप सिंह दो बार और उनके बेटे अभय प्रताप सिंह एक बार जीते।
अक्षय प्रताप की जीत को भी मिला दें तो कुल ग्यारह चुनावों में राजनीति का पहिया राजघराने के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा है। आजादी से पहले देखे तो यहां के इतिहास के पन्नों पर पं मदन मोहन मालवीय की लेखनी की अमिट छाप है। वह छाप जिसने सोई हुई जनता को आजादी के लिए जागने पर मजबूर कर दिया। देश के पहले प्रधानमंत्री पं जवाहरलाल नेहरू ने भी पदयात्रा कर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत इसी जिले से की थी।
बहरहाल दलित, ब्राह्मण, और ओबीसी मतदाता बाहुल्य वाले प्रतापगढ़ की सियासत इन दिनों प्रयोगों और बदलावों के दौर से गुजर रही है। यह सीट पिछले दो बार से भाजपा व उसके सहयोगी अपना दल ( एस ) के पास है। इस बार इस सीट से भाजपा के संगम लाल गुप्ता दोबारा मैदान में है। वहीं एमएलसी रहे एसपी सिंह पटेल सपा से चुनाव मैदान में हैं। बसपा ने ब्राह्मण चेहरे प्रथमेश मिश्रा पर भरोसा जताया है।
मौजूदा समीकरणों को में हर दल के काडर मतदाताओं की भूमिका अहम होगी। भाजपा सहयोगी अपना दल ( एस ) के साथ मिलकर पटेल मतदाताओं को रिझाने में जुटी है, तो वहीं सपा व बसपा ब्राह्मण मतदाताओं में सेंध लगाने की जोर आजमाइश कर रही हैं। यही नहीं ये दोनों राजनीतिक दल दलित मतदाताओं को भी रिझाने में लगे हैं। यहां की जनता में मौजूदा सांसद के प्रति नाराजगी भी है जिसे विपक्ष भुनाने की कोशिश कर रहा है।
यह सीट कितनी चुनौती पूर्ण है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और गृह मंत्री अमित शाह जनसभा कर चुके हैं। वहीं अब एक बार फिर से अमित शाह की जनसभा प्रस्तावित है। वहीं अपना दल ( एस ) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने भी पूरी ताकत लगाए हुए हैं। खराब सड़कें, बेरोजगारी, महंगाई, पेपर लीक, आवला पट्टी में भी एक भी फैक्ट्री ना होने जैसे मुद्दों को लेकर विपक्ष हमलावर है। वहीं सत्ता पक्ष बेहतर कानून व्यवस्था और विकास के नाम पर मतदाताओं को लुभाने की पूरी कोशिश कर रहा है।
जातीय समीकरण
दलित-17.35 फीसदी
ब्राह्मण- 16 फीसदी
मुस्लिम 15 फीसदी
पटेल-13 फीसदी
यादव-11 फीसदी
क्षत्रिय- 8 फीसदी
वैश्य- 8 फीसदी
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